आगरा जनपद के बाह क्षेत्र से सटी चंबल नदी में संकटग्रस्त जलीय जीव ढोर प्रजाति के 1200 नन्हे कछुए वन विभाग कर्मचारियों द्वारा छोड़े गए हैं। जिससे इनके कुनबा में इजाफा हुआ है। दो महीने पूर्व कछुओं ने बालू के डेढ फीट गहरे गड्ढों में अण्डे अंडे दिए थे, वन विभाग द्वारा जीपीएस से लोकेशन ट्रेस की गयी थी और लगातार निगरानी रखी जा रही थी। हैचिंग के बाद जन्मे इन दुर्लभ प्रजाति के बच्चों को नदी में छोड़ वन विभाग के कर्मी काफी उत्साहित नज़र आये।
लॉकडाउन में एक अच्छी खबर से वन विभाग का अमला बेहद उत्साहित है। आईयूसीएन की लुप्तप्राय प्रजाति में शामिल कछुओं की ढोर प्रजाति नेपाल, बांग्लादेश, वर्मा में बची है। मार्च अप्रैल में चंबल नदी के विभिन्न घाटों पर कछुओं की नेस्टिंग हुई थी। 150 नेस्ट चिन्हित कर वन विभाग ने जीपीएस से लोकेशन ट्रेस की थी। प्रत्येक नेस्ट में करीब डेढ फीट गहरे गड्ढे में कछुओं ने 25 से 30 अण्डे दिये थे। करीब दो महीने बाद शुरू हुए हैचिंग पीरियड को लेकर वन विभाग का अमला सक्रिय हो गया था। बुधवार को नन्दगवां में 450, चीकनीपुरा में 400, मऊ में 350 कुल 1200 ढोर और कटहवा प्रजाति के बच्चों का जन्म हुआ।
चंबल सेंचुरी बाह रेंजर आरके सिंह राठौड के नेतृत्व में वन कर्मियों की निगरानी में नेस्ट की बालू को कुरेदकर अण्डों से निकले बच्चे नदी में पहुंच गये। उन्होंने बताया कि हैचिंग पीरियड शुरू होते ही मादा कछुआ नेस्टों के आसपास विचरण करने लगती है और नेस्ट की बालू् बैठ जाती है। हैचिंग पीरियड में वन विभाग की पहरेदारी में रिकार्ड हैचिंग हुई है।
रिपोर्ट – नीरज परिहार, आगरा देहात