आगरा। आगरा की भूमि मुगलकालीन राजाओं, बेगमों, उच्च पदस्थ लोगों और साधु महात्माओं के स्मारकों, महलों, बाग-बगीचों व बगीचियों से भरी पड़ी है। मुगल पूर्व बागों में कैलाश रेनुकता, सूरकुटी, बृथला व बुढ़िया का ताल आदि प्रमुख हैं। मुगलकालीन बागों की एक लम्बी श्रृंखला यहां देखने को मिलती है।
बुढ़िया का ताल आगरा-टूण्डला राजमार्ग पर ताज महल से महज लगभग 23 किमीं की दूरी पर एत्माद्पुर तहसील में एत्माद्पुर कस्बे से थोड़ा पहले स्थित है। कस्बे के पश्चिम में ईंटों व लाल बलुए पत्थरों से निर्मित एक विशाल वर्गाकार तालाब है। जिसके बीचोबीच में बना हुआ एक दो मंजिला अष्टभुजाकार भवन है जिस पर गुम्बद बना हुआ है। भवन तक पहुँचने के लिए 21 मेहराबों पर बना एक पक्का पुल है। तालाब के पास 5 पक्के घाटों के अवशेष भी मिले है। इस स्थान को अकबर के दरबारी ख्वाजा एत्माद्खान का निवास बताया जाता है।
बोधि ताल से हुआ बुढ़िया का ताल-
पास ही में उसका एक मंजिली मकबरा भी बना हुआ है। यहां तालाब के तल में खुदाई में अनेक बौद्धकालीन मुर्तियां व संरचनायें भी प्राप्त हुई हैं। प्रारम्भ में इसका बोधि ताल का नाम था। बाद में बिगड़कर बुढ़िया का ताल हो गया।
यह स्मारक यमुना एकसप्रेस वे से महज चार किलोमीटर जबकि नगर एत्मादपुर से केवल 500 मीटर की दूरी पर राष्ट्रीय राजमार्ग पर स्थित है लेकिन इस स्थान की वर्तमान स्थिति बदतर बनी हुई है। इमारत चारों ओर से कटीली झाड़ियों और कटीले बृक्षों से घिरा हुआ। यहां दिन मे अकेले जाने में भी डर लगता है। तालाब में वषों से पानी नहीं है। शराबी इसे अपनी रंगशाला के रूप में प्रयोग कर रहे हैं वहीं प्रेमी जोडे आए दिन यहां छिपकर आते हैं और अराजक तत्वों द्वारा छेड़खानी का शिकार होते हैं।
बात अगर सुरक्षा व्यवस्था की करें तो स्थानीय पुलिस केवल इस स्मारक के बाहर के रास्ते से ही औपचारिकता पूरी कर लौट जाती है जो भविष्य में किसी बड़ी घटना सबब बन सकता है।
पेशवा बाजीराव का रहा है पड़ाव-
बुढ़िया से समबन्धित अनेक किस्से व किंवदन्तिया भी सुनी जाती है। यहां 1773 ईण् में पेशवा बाजीराव ने अपना पड़ाव डाला था। 1857 में हिम्मतपुर के जोरावर सिंह ने यहां पड़ाव डाला था। इस स्मारक पर अंग्रेजों द्वारा खुदे हुए नाम के निशान आज भी देखे जा सकते है। यहां सिंगाड़े की खेती के साथ आम, जामुन आदि के फसलों की नीलामी भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा की जाती है।
अनदेखी के चलते हुए अवैध कब्ज़े –
वर्तमान समय में यह स्मारक चारों ओर से घिरता चला आ रहा है। अनेक अवैध निर्माण तथा पूजा स्थल इसको घेरने के उद्देश्य से किये जा रहे हैं। पास ही में होटल और पेट्रोल पम्प भी खुल गये हैं जो पुरातत्व अधिनियम की अनदेखी करके बनवाया गया है। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा विशेष स्वच्छता पखवाड़े में 27 अप्रैल 2017 को यहां सफाई अभियान सफलता पूर्वक चलाया गया। कार्यालयाध्यक्ष अधीक्षण पुरातत्वविद् भुवन विक्रम के कुशल निर्देशन में अधिकारियों और कर्मचारियों ने विभिन्न संस्थाओं व संगठनों के सहयोग से खूब बढ़चढ कर भाग लिया है।
बुढ़िया का ताल प्रायः सूख जाया करता है। इस कारण आस पास के गांवों में जल का स्तर नीचे चला गया है। इन गांवों में गिरते जलस्तर व दूषित पानी का एक मात्र कारण बुढ़िया ताल का सूख जाना है।
ऐतिहासिक बुढ़िया का ताल चावली माइनर का टेल प्वाइंट है। चार दशक पहले तक यहां 300 घनमीटर से अधिक का जल संचय होता था जिसके चलते आसपास के गांव व एत्मादपुर का जलस्तर 70 से 80 फीट था। धीरे-धीरे नहरों का अस्तित्व खत्म होता गया और यह विशाल जलाशय सूख गया। आसपास का पानी दूषित हो गया है तथा जलस्तर घटकर 200 फीट से नीचे पहुंच गया है।
इस स्मारक के चार किलोमीटर की परिधि मे चार बड़े डिग्री व इंजीनियरिंग कालेज बने हुए हैं। अगर सम्बन्धित विभाग इसके जीर्णोद्धार के लिए गंभीर हो जाए तो ये ताजनगरी की चमक में चार चांद लगा सकता है।
अब दिलचस्प बात होगी कि कब तक पुरातत्व विभाग या कोई जनप्रतिनिधि इस ओर अपना ध्यान आकर्षित कर इस स्थान को अपनी पहचान वापस दिला पाता है।
एत्मादपुर से देशदीपक बघेल के साथ पवन शर्मा की रिपोर्ट