आगरा। लॉकडाउन के कारण कई जगह सेनेटरी पैड की अनुपलब्धता ने महिलाओं एवं लड़कियों को डिस्पोजेबल पैड की जगह कपडे के पैड इस्तेमाल करने पर बाध्य किया है। रेगुलर सेनेटरी पैड के विकल्प के रूप में कपड़े से बने पैड को भी समान रूप से प्रचारित किया जा सकता है। जैसे कपड़ों से बने पैड को 4-6 घंटे तक इस्तेमाल किया जाए, पैड बदलने से पूर्व एवं बाद में हाथों की सफाई की जाए, साफ़ सूती कपडे से बने पैड ही इस्तेमाल में लाये जाएं और पैड को अच्छी तरह धोने के बाद धूप में सुखाया जाए ताकि किसी भी तरह के संक्रमण के प्रसार का खतरा कम हो सके।
प्रभारी चिकित्सा अधिकारी डॉ. मेघना शर्मा ने बताया कि कई राज्यों एवं जिलों में सरकार द्वारा स्कूलों में सेनेटरी पैड का वितरण किया जाता है लेकिन लॉकडाउन के कारण स्कूलों के बंद होने से बहुत सी लड़कियों एवं उनके परिवार के अन्य सदस्यों को सेनेटरी पैड उपलब्ध नहीं हो पा रहे हैं। लॉकडाउन के कारण सेनेटरी पैड का निर्माण भी बाधित हुआ है जिससे ग्रामीण स्तर के रिटेल पॉइंट्स पर पैड की उपलब्धता भी बेहद प्रभावित हुयी है। गाँव के जो लोग जिला स्तर से सेनेटरी पैड की खरीदारी कर सकते थे, वह भी लॉकडाउन के कारण यातायात साधन उपलब्ध नहीं होने से वहां तक आसानी से पहुँच नहीं पा रहे हैं ।
सेनेटरी पैड की आसान उपलब्धता में होल सेलर्स को भी दिक्कत का सामना करन पड़ रहा है, निरंतर दो महीने तक देशव्यापी लॉकडाउन के कारण सेनेटरी पैड का होलसेल वितरण काफी प्रभावित हुआ है। यद्यपि धीरे-धीरे इसे पुनः नियमित करने का प्रयास किया जा रहा है लेकिन अधिक यातायात कॉस्ट (रोड एवं हवाई भाड़ा) अभी भी चुनौती रहने वाला है। अभी सेनेटरी पैड के सीमित उत्पादन की संभावना बनी रहेगी, क्योंकि फैक्ट्री के अंदर मजदूरों को सामाजिक दूरी का ख्याल रखना होगा। इसके साथ ही जिन फैक्ट्रियों में प्रवासी मजदूरों की संख्या अधिक थी, वहाँ मजदूरों की कमी की समस्या बढ़ सकती है।
महामारी के बाद 67% संस्थानों को रोकनी पड़ी सामान्य कार्रवाई
कोविड-19 के पहले माहवारी स्वच्छता जागरूकता एवं उत्पाद से जुड़े 89% संस्थान सामुदायिक आधारित नेटवर्क एवं संस्थान के माध्यम से समुदाय तक पहुँच रहे थे, 61% संस्थान स्कूलों के माध्यम से सेनेटरी पैड वितरित कर रहे थे, 28% संस्थान घर-घर जाकर पैड का वितरण कर रहे थे, 26% संस्थान ऑनलाइन एवं 22% संस्थान दवा दुकानों एवं अन्य रिटेल शॉप के माध्यम से सेनेटरी पैड वितरण कार्य में लगे थे, लेकिन महामारी के बाद 67% संस्थानों ने अपनी सामान्य कार्रवाई को रोक दी है। कई छोटे एवं मध्य स्तरीय निर्माता सेनेटरी पैड निर्माण करने में असमर्थ हुए हैं जिसमें 25% संस्थान ही निर्माण कार्य पूरी तरह जारी किए हुए हैं तथा 50% संस्थान आंशिक रूप से ही निर्माण कार्य कर पा रहे हैं।
दूसरे देशों से आयात रोके जाने से कई सामग्रियों के लिए इससे चुनौती बढ़ी है। विशेषकर माहवारी कप्स के आयात में काफी मुश्किलें आयी हैं, भारत और अफ्रीका के कई मार्केटर्स यूरोप में बने कप्स को ही खरीदते हैं ताकि आइएसओ की गुणवत्ता सुनिश्चित की जा सके। अब इनके आयात में समस्या आ रही है । डिस्पोजेबल सेनेटरी पैड के लिए जरूरी रॉ मेटेरियल वुड पल्प होता है, जिसकी उपलब्धता भी लॉकडाउन के कारण बेहद प्रभावित हुयी है।
महिलाओं एवं लड़कियों की फीडबैक भी जरुरी-
इंटरनेशनल सेंटर फॉर रिसर्च ऑन वीमेन (ICRW) एशिया की टेक्निकल एक्सपर्ट सपना केडिया कहती हैं, माहवारी स्वच्छता कार्यक्रमों के बेहतर क्रियान्वयन के लिए इस संबंध में महिलाओं एवं लडकियों से भी फीडबैक लेनी चाहिए। इस फीडबैक में मासिक धर्म स्वास्थ्य उत्पादों एवं सेवाओं की उपलब्धता, पहुंच, लागत, स्वीकार्यता (गुणवत्ता और अन्य स्थानीय कारक) को शामिल करना चाहिए।