“यह बात साफ होती जा रही है कि यदि विदेशों से आने वाले लोगों को फरवरी से रोका गया होता, तो भारत इस तरह कोरोना का शिकार न बनता। एयरपोर्ट्स पर भी चैकिंग में खासी कमियां रह गई। कोरोना की विभीषिका से जूझने का वक्त सीएए विरोध और दिल्ली दंगों में उलझ गया। कोरोना घुस आया।
सवाल यह भी उठता है कि विश्व के अमीर और सुविधा संपन्न देशों में जा बसे भारतीय अपने देश की ही मुसीबत बनने भारत क्यों चले आये ? वे हिंदुस्तान में पैदा हुए, पले-बढ़े, छात्रवृत्तियां लेकर उच्च शिक्षा प्राप्त की। जब तक लेने का समय था, भारत में रहे। जब अपनी सेवाओं के माध्यम से राष्ट्र को कुछ देने और उन्नत बनाने का समय आया तो भारी दौलत और बेहतर सुविधाओं के कारण वतन छोड़कर विदेशों में जा बसे?
भारत में रहकर जो सीखा, उस प्रतिभा का लाभ उन्होंने चीन, जापान, अमेरिका, ब्रिटेन, यूरोप आदि को दिया। अपने देश को अपने ज्ञान से आगे बढ़ाने के बजाय पश्चिम को आगे बढ़ाया। भारत के अस्पतालों, शिक्षण संस्थाओं, व्यवस्था, यहां की जमीन और यहां के कल्चर तक को पिछड़ा बताना शुरू कर दिया। वहीं की सरकारों को ऊंचा उठाने के लिए राजनीति तक में प्रवेश कर लिया ?
भारत की ओर देखकर नाक भौं सिकोड़े। देश की प्रतिभा का इस तरह पलायन हुआ कि 4 करोड़ भारतीय भारत से बाहर जाकर कभी न लौट आने के लिए बस गए। बेशुमार दौलत कमाई और मौजमस्ती में उड़ाई।
तो कोरोना आते ही क्या हुआ ? अकेले पंजाब में एक लाख से ऊपर भारतीय विदेशों से भागकर आये और साथ में कोरोना ले आये। केरल में भी करीब डेढ़ लाख भारतीय लौटे हैं, जिनमें हजारों के पास कोरोना विषाणु हैं। यही हाल महाराष्ट्र का है। इन प्रवासियों को अचानक भारत की धरती अच्छी लगने लगी। भारत के अस्पताल उम्दा लगने लगे। भारत की व्यवस्थाएं अच्छी लगने लगी।
अजीब विडम्बना है। हमारा देश प्रेम भी एक अजूबा है। चलो, हम तो तुम्हें अपना मानते हैं, तभी डबल नागरिकता भी सम्मान सहित दी है। कोरोना से ठीक होकर वापस लौट जाओ तो सोचना कि भारत का कितना बड़ा दिल है। सोचना कि अपनी धरती फिर अपनी है, अपनी खुशबू फिर अपनी है। यह भी सोचना कि देश ने तुम्हें कितना दिया और मातृभूमि को खुद तुमने कितना दिया ??
सौजन्य – वरिष्ठ पत्रकार कौशल सिखौला जी की फेसबुक वॉल से