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12वीं पास ये सज्जन करते हैं मोची का काम, देते हैं यूनिवर्सिटियों में लैक्चर

by admin
12th pass these gentlemen do cobbler work, give lectures in universities

चंडीगढ़। टांडा रोड के साथ लगते मुहल्ला सुभाष नगर के द्वारका भारती (75) 12वीं पास हैं। घर चलाने के लिए मोची का काम करते हैं। सुकून के लिए साहित्य रचते हैं। भले ही वे 12वीं पास हैं पर साहित्य की समझ के कारण उन्हें लेक्चर देने के लिए कई यूनिवर्सिटी में बुलाया जाता है। कई भाषाओं में साहित्यकार इनकी पुस्तकों का अनुवाद कर चुके हैं। इनकी स्वयं की लिखी कविता ‘एकलव्य’ इग्नू में एमए के बच्चे पढ़ते हैं। वहीं पंजाब विश्वविद्यालय में 2 होस्टल इनके द्वारा लिखित उपन्यास मोची पर रिसर्च कर रहे हैं। वे कहते हैं कि जो व्यवसाय आपका भरण पोषण करे, वह इतना अधर्म हो ही नहीं सकता, जिसे करने में आपको शर्मिंदगी महसूस होगी।

घर चलाने को गांठता हूँ जूते, सुकून के लिए रचता हूँ साहित्य

सुभाष नगर में प्रवेश करते ही अपनी किराए की छोटी सी दुकान पर आज भी द्वारका भारती हाथों से नए नए जूते तैयार करते हैं। अक्सर उनकी दुकान के बाहर बड़े गाड़ियों में सवार साहित्य प्रेमी अधिकारियों और साहित्यकारों की पहुंचना और साहित्य पर चर्चा करना दिन का हिस्सा हैं। चर्चा के दौरान भी वह अपने काम से जी नहीं चुराते और पूरे मनोयोग से जूते गांठते रहते हैं। फुरसत के पलों में भारती दर्शन और कार्ल मार्क्स के अलावा पश्चिमी व लैटिन अमेरिकी साहित्य का अध्ययन करते हैं।

डॉ. सुरेन्द्र की लेखनी से साहित्य की प्रेरणा मिली-

द्वारका भारती ने बताया कि 12वीं तक पढ़ाई करने के बाद 1983 में होशियारपुर लौटे तो वह अपने पुश्तैनी पेशे जूते गांठने में जुट गए। साहित्य से लगाव बचपन से था। डॉ.सुरेन्द्र अज्ञात की क्रांतिकारी लेखनी से प्रभावित हो उपन्यास जूठन का पंजाबी भाषा में किया गया। उपन्यास को पहले ही साल बेस्ट सेलर उपन्यास का खिताब मिला। इसके बाद पंजाबी उपन्यास मशालची का अनुवाद किया गया। इस दौरान दलित दर्शन, हिंदुत्व के दुर्ग पुस्तक लेखन के साथ ही हंस, दिनमान, वागर्थ, शब्द के अलावा कविता, कहानी व निबंध भी लिखे।

द्वारका भारती ने बताया कि आज भी समाज में बर्तन धोने और जूते तैयार करने वाले मोची के काम को लोग हीनता की दृष्टि से देखते हैं, जो नकारात्मक सोच को दर्शाता है। आदमी को उसकी पेशा नहीं बल्कि उसका कर्म महान बनाता है। वह घर चलाने के लिए जूते तैयार करते हैं, वहीं मानसिक खुराक व सुकून के लिए साहित्य की रचना करते हैं। जूते गांठना हमारा पेशा है। इसी से मेरा व मेरा परिवार का भरण पोषण होता है।

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