आगरा। 21 माह से सीता मानसिक आरोग्यशाला में गुमनामी का जीवन बिता रही थी। यहां उसने बच्चे को भी जन्म दिया जो राजकीय बाल गृह में रह रहा था। पति ने मृत मानकर दूसरी शादी रचा ली लेकिन विधाता को कुछ और ही मंजूर था। सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में एक उम्मीद की किरण जगी और ढाई साल बाद सीता को अपना परिवार मिल सका। 16 महीने बाद अपने लाल को गोद में खिला पाई। बच्चे को पाकर उसे लगातार चूमे जा रही थी। यह नजारा था आगरा मानसिक आरोग्यशाला का।
29 जून 2017 को गौतमबुद्ध नगर पुलिस ने सीता नामक एक महिला को आगरा के मानसिक आरोग्यशाला में लावारिश हालत में भर्ती कराया था। उसका मानसिक संतुलन ठीक नहीं था। उस समय वह गर्भवती थी। चार माह बाद 13 नवबंर 2017 को उसने मानसिक आरोग्यशाला में ही एक बच्चे को जन्म दिया। बच्चे को राजकीय बाल गृह (शिशु) आगरा में भर्ती करा दिया। बाल अधिकार कार्यकर्ता और महफूज सुरक्षित बचपन के समन्वयक नरेश पारस जब राजकीय बाल गृह (शिशु) गए तो बच्चे की मां के बारे में जानकारी मिली। उन्होंने मानसिक आरोग्यशाला जाकर सीता से मुलाकात की और काउंसलिंग की। काउंसलिंग में सीता ने अपना जिला मधुबनी, बिहार बताया। बताए गए टूटे फूटे पते के आधार पर नरेश पारस ने सीता के परिवार को खोजने की मुहिम शुरू कर दी। उन्होंने सोशल मीडिया के माध्यम से सीता का संदेश वायरल किया।
मधुबनी जिले के डाक विभाग के अधीक्षक ने इसे गंभीरता से लिया और सीता संबंधी मैसेज को सभी डाकघरों मेें भिजवाया। डाक विभाग द्वारा सीता के घर को तलाश लिया गया। सीता के भाई कामेश्वर दास और चचेरे भाई घूरन दास ने नरेश पारस से संपर्क किया। नरेश पारस ने उन्हें आगरा बुला लिया। सीजेएम के आदेश पर सीता और उसके बच्चे आयुष को परिजनों के सुपुर्द कर दिया गया। कामेश्वर दास ने बताया किया सीता मंदबुद्धि थी। उसका मानसिक संतुलन खराब हो गया था। वह 19 सितंबर 2016 को घर से लापता हो गई थी। इस संबंध में परिजनों ने थाने में भी सूचना दी लेकिन पुलिस ने गुमशुदगी दर्ज नहीं की। वह अपने स्तर से सीता को तलाश रहे थे। वह पटना, दरभंगा, अंबाला, दिल्ली, हरिद्वार आदि लगभग बीस शहरों की खाक छान चुके थे लेकिन सीता का कोई पता नहीं चल सका था।
नरेश पारस के अथक प्रयासों से सीता को अपना परिवार मिल सका। जब सीता अपने भाई से मिली तो देखते ही उससे लिपट गई और रोने लगी। यह खबर सुनकर सीता की बहन फूलवती भी अंबाला से आगरा आ गई। सीजेएम के आदेश पर सीता को उसका बेटा आयुष सुपुर्दगी में दिया गया। जैसे ही सीता ने आयुष को देखा तो उसे गोद में लेकर उसका माथा चूमने लगी। यह देख सभी की आंखें नम हो गई। शाम को नरेश पारस ने उसको बिहार के लिए रवाना किया।