आगरा। भारतीय जनता पार्टी द्वारा देश के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई के जन्मदिन को सुशासन दिवस के रुप में मनाए जाने पर कांग्रेस ने निशाने पर लिया है। कांग्रेस कार्यकर्ताओं का कहना है कि जो अपने नेता पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के ना हो सके वो किसानों और देश की जनता के क्या होंगे। ऐसी पार्टी की सरकार देशवासियों के क्या भला करेगी।
देश के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई के जन्मदिवस के अवसर पर कांग्रेस कार्यकर्ताओं व पदाधिकारियों की ओर से किसानों के समर्थन में एक विचार गोष्ठी का आयोजन किया गया। इस विचार गोष्ठी में वरिष्ठ कांग्रेसी अनवार सिद्दीकी का कहना था कि आज भारतीय जनता पार्टी का हर कार्यकर्ता और बड़ा नेता पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजयेपी के जन्मदिवस को सुशासन दिवस के रूप में मना रहा है लेकिन आज से तीन साल पहले उनकी मृत्यु के दौरान भाजपा नेतृत्व, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने उनकी स्मृतियों को संजोए रखने के लिए उनके पैतृक गांव बटेश्वर के लिये जो घोषणा की थी वो आज तक धरातल पर नहीं उतर पाई है।
अटल बिहारी वाजपेयी ने 1974 में बटेश्वर की बदहाली को उजागर किया। मार्च, 1974 के धर्मयुग के अंक में अटलजी ने बटेश्वर शौरीपुर की बदहाली पर लिखा था कि यहां के कण-कण में इतिहास समाया है, विरासत पर जमी धूल की परत हटाई जानी चाहिए। उनके जाने के बाद भी बटेश्वर में उनकी स्मृति को सहेजा नहीं गया। उनके घर के खंडहर में बबूल के पेड़ उगे हुए हैं। अटल जी के अस्थि विसर्जन के समय मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने बटेश्वर का नक्शा बदलने की बात बोली थी, पर अब तक कुछ नहीं हुआ। 14 करोड़ के प्रस्ताव पर बटेश्वर के लोगों को भरोसा नहीं है।
युवा कांग्रेस के प्रदेश महासचिव अजय वाल्मीक ने भी सूबे के मुखिया योगी आदित्यनाथ देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर सीधे हमला बोलते हुए कहा कि जिस पार्टी के लोग अपने ही नेता को सम्मान नहीं दे पाए और उनके गांव की समस्याओं को हल नहीं कर पाए, ऐसे लोग किसानों के दर्द को क्या जानेंगे, देश वासियों की सेवा क्या करेंगे। ऐसे लोग सिर्फ कॉरपोरेट जगत को बढ़ावा देते हैं। इन्हें सिर्फ अपने निजी स्वार्थ से ही सरोकार होता है।
वरिष्ठ कांग्रेसी प्रेम सिंह ने भी अपने विचार रखते हुए भाजपा सरकार पर जमकर हमला बोला। उनका कहना था कि इस समय सिर्फ तानाशाही देखने को मिल रही है। विपक्ष किसानों की आवाज उठा रहा है तो तानाशाही रवैया अपनाए हुए सरकार के लोगों को इसमें राजनीति नजर आ रही है जबकि किसान पूरी तरह से केंद्र सरकार के कृषि बिलों के विरोध में है।