राम की नगरी अयोध्या विवाद मामले में फैसला देने वाली पीठ में शामिल जज एस ए बोबडे 23 अप्रैल यानी आज रिटायर हो जाएंगे। राम मंदिर मामले में फैसला सुनाने वाले पांच न्यायाधीशों में से जस्टिस बोबडे दूसरे न्यायाधीश थे जो अब रिटायर हो रहे हैं। इससे पहले मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई रिटायर हुए थे । जस्टिस बोबडे भारत के 47 वें प्रधान न्यायधीश हैं। गौरतलब है कि जस्टिस बोबडे 1 साल 5 महीने तक प्रधान न्यायाधीश का कार्यकाल संभालने के बाद रिटायर हो रहे हैं।
यहां आपको बता दें कि जस्टिस बोबडे के बाद सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठतम न्यायाधीश एनवी रमना 24 अप्रैल को भारत के 48वें प्रधान न्यायाधीश के रूप में पदभार संभालेंगे। सामान्य तौर पर प्रधान न्यायाधीश का विदाई समारोह एक विशेष कार्यक्रम होता है जिसमें सभी कानूनविद और न्यायधीश भाग लेते हैं लेकिन अभी इस समय देश कोरोनावायरस से जूझ रहा है जिसके कारण इस कार्यक्रम के वर्चुअल होने की संभावना है। दरअसल इस समय सुप्रीम कोर्ट में मुकदमों की सुनवाई भी वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से की जा रही है इसलिए ऐसे में कयास हैं कि विदाई कार्यक्रम वर्चुअल किया जा सकता है।
अगर जस्टिस बोबडे के कार्यकाल की बात करें तो उन्होंने न्यायाधीश के रूप में 29 मार्च 2000 को अपना सफर शुरू किया था। उस समय बोबडे को मुंबई हाईकोर्ट में एडिशनल जज नियुक्त किया गया था। अयोध्या के राम मंदिर के अलावा भी उन्होंने कई अहम फैसले दिए हैं। वहीं 12 अप्रैल 2013 को वे सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश नियुक्त किए गए और 18 नवंबर 2019 को भारत के प्रधान न्यायाधीश बने। खास बात यह है कि जस्टिस बोबडे निजता को मौलिक अधिकार घोषित करने वाली 9 न्यायाधीशों की पीठ में भी शामिल रह चुके हैं। वहीं मिली जानकारी के मुताबिक महात्मा गांधी की हत्या के मामले की दोबारा जांच को लेकर दायर याचिका खारिज करने वाली भी जस्टिस बोबडे की पीठ थी।
जस्टिस गोगोई पर जब यौन उत्पीड़न का आरोप लगाया गया था तो इस मामले की जांच करने वाली तीन न्यायाधीशों की इन हाउस कमेटी में जस्टिस बोबडे भी शामिल थे। इस तीन सदस्यों की पीठ ने जस्टिस गोगोई को क्लीन चिट दी थी। हालांकि धारा 370 हटाने और सी ए ए जैसे मुद्दे जस्टिस बोबडे के कार्यकाल में लंबित रह गए।