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बंदरों को शहर से भगाने के लिए लंगूरों पर हो रहा अवैध अत्याचार, जबरदस्ती बांधकर रखने पर हो सकती है सजा

by admin
Illegal atrocities on langurs to drive away monkeys from the city, can be punished for forcibly keeping them tied

अवैध वन्यजीव शोषण के एक और मामले में, उत्तर प्रदेश वन विभाग और वाइल्डलाइफ एसओएस द्वारा लाजपत कुंज, बाग फरजाना, आगरा में एक घर से इंडियन ग्रे लंगूर को सफलतापूर्वक बचाया गया। लंगूर को गले में रस्सी से बांधा गया था। वाइल्डलाइफ एसओएस रैपिड रिस्पांस यूनिट ने सावधानी से रस्सी को हटाया और साइट पर ही मेडिकल परीक्षण के बाद लंगूर को उसके प्राकृतिक आवास में वापस छोड़ दिया। गौरतलब है कि लंगूरों और बंदरों की सदियों पुरानी प्रतिद्वंद्विता का लाभ उठाने के लिए, शिकारी जंगल से लंगूरों को पकड़ते हैं, ताकि उन्हें विभिन्न शहरों में बंदरों से निपटने के लिए प्रशिक्षित किया जा सके।

इस सप्ताह की शुरुआत में हुई एक घटना में, उत्तर प्रदेश वन विभाग और वाइल्डलाइफ एसओएस को उनकी हेल्पलाइन पर पशु कार्यकर्ता और कैस्पर्स होम ट्रस्ट की मुख्य ट्रस्टी विनीता अरोड़ा से लंगूर की शिकायत मिली। आगरा के बाग फरजाना में एक घर की छत पर लंगूर को बाँध कर रखा हुआ था। चूंकि लंगूर वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 की अनुसूची II के तहत संरक्षित है, इसलिए इसे किसी के भी द्वारा स्वामित्व, बेचा, खरीदा, व्यापार या किराए पर नहीं रखा जा सकता। इस कानून के उल्लंघन पर जुर्माना या तीन साल की जेल या दोनों की सजा हो सकती है।

लंगूर को अवैध कब्जे से मुक्त कराने के लिए वन विभाग के साथ वाइल्डलाइफ एसओएस तेजी से कार्रवाई करते हुए घटनास्थल पर पहुंची। टीमों ने वहां लोगों को इस अवैध प्रथा और इसके दुष्परिणामों के बारे में शिक्षित किया। बाद में, उसके गले में बंधी रस्सी को हटा दिया गया और एक त्वरित चिकित्सा मूल्यांकन के बाद, लंगूर को जंगल में छोड़ दिया गया।

आगरा के वन क्षेत्र अधिकारी, राम गोपाल सिंह ने कहा, “यह तीसरा लंगूर है जिसे हमने इस महीने मुक्त कर जंगल में छोड़ दिया। इससे पहले वन विभाग और वाइल्डलाइफ एसओएस ने आगरा के कमला नगर और संजय प्लेस से भी दो लंगूर मुक्त कराए थे। जनता को इस विषय में शिक्षित करने की तत्काल आवश्यकता है, कि यह एक अवैध प्रथा है और किसी भी जंगली जानवर का शोषण नहीं किया जाना चाहिए क्यों की यह कानूनन एक अपराध है।”

वाइल्डलाइफ एसओएस के सह-संस्थापक और सीईओ, कार्तिक सत्यनारायण ने कहा, “यह एक भ्रम है कि बंदर लंगूरों से डरते हैं, जिसका लोगों के दिमाग पर व्यापक प्रभाव है। वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 की अनुसूची II के तहत लंगूरों को संरक्षित किया गया है। अक्सर बंदरों को खतरा माना जाता है। आज शहर पर्याप्त कचरा उत्पन्न करते हैं, जो बंदरों को शहर की और आकर्षित करता है। इसके अलावा, लोग धार्मिक भावनाओं के लिए बंदरों को खाना भी खिलाते हैं, जिसके बाद बंदरों का आतंक शहर में बढ़ता है और उससे निपटने के लिए लंगूरों का शोषण होता है।”

भारतीय ग्रे लंगूर को हनुमान लंगूर भी कहा जाता है l यह काले चेहरे और कानों के साथ बड़े भूरे रंग के प्राइमेट होते हैं जिनकी पेड़ों पर संतुलन बनाये रखने के लिए एक लंबी पूंछ होती है। लंगूर सबसे अधिक भारत, श्रीलंका, बांग्लादेश और पाकिस्तान में पाए जाते हैं। वे रेगिस्तानों, ट्रॉपिकल रेनफौरेस्ट और पर्वतीय आवासों में निवास करते हैं। वे मानव बस्तियां जैसे गांवों, कस्बों और आवास या कृषि वाले क्षेत्रों में भी पाए जाते हैं।

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