आगरा। इस दुनिया में बहुत कुछ है जानने को, बहुत कुछ है करने को… हमेशा कुछ ना कुछ नया करना और कुछ नया समझना। यह दुनिया बहुत खूबसूरत है, सुंदर है… तुम्हें इसे और भी सुंदर बनाना है। यह पंक्तियां किसी किताब की नहीं बल्कि पर्वतारोही मेघा परमार की है जो विश्व की सबसे ऊंची चोटी माउंट एवरेस्ट और सबसे ऊंचे पर्वत माउंट एलब्रुश पर विजय पताका फहरा चुकी है। पर्वतारोही मेघा परमार एकलव्य स्टेडियम में आयोजित 15वें मून स्कूल ओलिंपिक के उद्घाटन समारोह में बतौर मुख्य अथिति भाग लेने आगरा आई हुईं थीं। उद्घाटन सत्र में उद्बोधन के दौरान मेघा परमार ने विचार रखते हुए अपने जीवन व खेल से जुड़े अनुभवों को खिलाड़ियों के साथ साझा किया।
मेघा परमार ने बताया कि उन्हें ये उपलब्धियां इतनी आसानी से नहीं मिली हैं। भोपाल से 50 किमी दूर एक छोटे से गाँव भोजनगर की वह रहने वाली हैं। बचपन में परिवार की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी और एक लड़की होने के कारण घर से निकलने या घूमने-फिरने की कोई इजाज़त नहीं थी लेकिन विपरीत परिस्थितियों में भी कुछ नया करने का जज़्बा और मजबूत इरादे आज उन्हें यहां तक ले आये। यही सीख उन्होंने महिला खिलाड़ियों को दी। मेघा ने कहा कि हमेशा कुछ नया करने की सोचो और उस पर अमल करो। जब तक कुछ करोगे नहीं तो तुम्हें अपनी काबिलियत का पता नहीं चलेगा। जो भी तुम्हारे पास संसाधन है उसी में संतुष्ट रहकर उसका सही इस्तेमाल कर हमेशा आगे बढ़ने का प्रयास करो।
बचपन के दिनों के अनुभव शेयर करते हुए मेघा परमार ने बताया कि आर्थिक संसाधन के अभाव में उनकी पढ़ाई पर अवरोध लगा। परिवार में लड़का-लड़की का भेद झेला। खाने में हमेशा सूखी रोटी खाने को मिलती थी जबकि भाई को माँ घी लगाकर रोटी देती थी। सवाल पूछने पर ज़वाब मिला कि तू तो पराया धन है। शायद इसलिए पढ़ाई के लिए भी कहीं जाने नहीं दिया लेकिन हिम्मत नहीं हारी। चार भाई गाँव से दूर शहर में पढ़ाई करते थे। उनके लिए खाना बनाने की शर्त पर मुझे घर से बाहर पढ़ाई के लिए कहा तो मैंने तुरंत हाँ कर दी। क्योंकि खाना बनाने से ज्यादा मुझे पढ़ाई करने की ख़ुशी थी।
मेघा परमार ने बताया कि जब वह स्कूल में नयी-नयी दाख़िल हुई तो अच्छे कपड़े न होने और अच्छी इंग्लिश न बोल पाने के कारण हमेशा लाइन में पीछे रहती थीं लेकिन एक प्रतियोगिता के माध्यम से जब उन्हें ईनाम राशि जीतने की बात मालूम हुई तो उन्होंने प्रतियोगिता मंच पर जाने का साहस जुटाया। एक बार मंच पर चढ़ जाने के बाद फिर कभी उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा। यह अनुभव बताते हुए मेघा ने एकलव्य स्टेडियम में मौजूद सभी खिलाड़ियों को हमेशा बढ़-चढ़कर प्रतियोगिता में भाग लेने के लिए प्रेरित किया।
मेघा ने बताया कि उन्होंने भोपाल में रहकर एक इंस्टिट्यूट से पर्वतारोही का प्रशिक्षण लिया। जब पहली बार उन्होंने पर्वत पर चढ़ाई शुरू की तो कुछ दूर चढ़ने के बाद वह एक जगह 10 फ़ीट की ऊंचाई से एक ठोस पत्थर पर गिरीं जिसके चलते उनके शरीर में तीन जगह फ़्रैक्चर आया। लगभग 3 महीने तक घर पर बिस्तर पर पड़ी रहीं। उनके पिता ने पर्वतारोही छोड़ शादी करने के लिए दवाब डाला लेकिन उन्होंने अपने जीवन में कुछ नया करने के लिए मजबूत इरादे बना रखे थे इसलिए वो दवाब में नहीं झुकी। इस मामले में उनके कोच ने उनका पूरा साथ दिया और पिता को यह कहकर मनाया कि उन्हें मेघा पर विश्वास है कि वो ऊंचा मुकाम जरूर हासिल करेगी। यह बात कहते हुए मेघा ने कहा कि आपको अपने जीवन में हमेशा गुरु व कोच का सम्मान करना चाहिए क्योंकि वह जानते हैं कि आप क्या कर सकते हो।
आगे बोलते हुए मेघा ने बताया कि इसी बीच उनकी एक स्कूल में सरकारी नौकरी लग गयी। लेकिन उनके कोच ने लक्ष्य से कभी भटकने नहीं दिया। उनके कोच कहते थे कि मेघा जब दुनिया सोती है और तुम जागते हो तभी अपने सपने सच कर पाओगे। तभी से उन्होंने कड़ी मेहनत शुरू की और सुबह 4:00 बजे से ही लगभग 5 घंटे और शाम 4 घंटे का नियमित अभ्यास शुरू किया। उसी की मेहनत का यह नतीजा रहा कि उन्होंने विश्व के सबसे ऊंचे पर्वत पर सफ़ल पर्वतारोहण कर मध्य प्रदेश की पहली महिला पर्वतारोही का तमगा हासिल किया।
माउंट एवरेस्ट और माउंट एलब्रुश पर सफ़ल चढ़ाई के अनुभव शेयर करते हुए मेघा ने बताया कि जब उन्होंने सबसे ऊँची छोटी पर कदम रख पूरी दुनिया को देखा तो वह किसी सपने से कम नहीं था। आसमाँ के वास्तविक सतरंगी रंग उन्होंने देखा। उस समय उन्हें एक गाना याद आया, ‘आज मैं ऊपर आसमाँ नीचे…’। उन्होंने देखा कि सभी पहाड़ कितने छोटे-छोटे हैं। तब महसूस हुआ कि इंसान की शक्ति से ताकतवर कुछ भी नहीं। हालांकि इस दौरान उन्हें कड़वे अनुभव भी हुए और पर्वत पर ऑक्सीजन की कमी के चलते उन्होंने मौत को करीब से भी देखा।
मेघा ने बताया कि इस अनुभव के बाद वे दो बातें हमेशा जेहन में रखती हैं। एक ऑक्सीजन का महत्व और दूसरा, जब तक जिंदगी है वे दूसरों की मदद करती रहेंगी। यही कारण है कि उन्होंने एक अभियान चलाते हुए उन्होंने 5 हज़ार पौधरोपण करवाये और उचित देखभाल के चलते सभी पौधे आज भी जिंदा हैं। अंत में मेघा ने एक कविता सुनाकर सभी खिलाड़ियों को हमेशा आगे बढ़ने का प्रयास करते रहने के लिए प्रेरित किया और इस जिम्मेदारी का भी अहसास दिलाया कि जो कुछ भी तुम्हारे आस-पास है उसे और बेहतर व सुंदर बनाने का प्रयास करो।