Agra. 20 मार्च विश्व गौरैया दिवस के रूप में मनाया जाता है। गौरैया एक ऐसा पक्षी है जो ना केवल पर्यावरण को संतुलित करता है बल्कि मानव जीवन में उल्लास और उत्साह भी भरता है। विकास की दौड़ में कंक्रीट के मकान बनते जा रहे हैं। चाहे गांव हो या शहर हम सभी पर्यावरण की अनदेखी करते रहे जिस कारण जो भारत में गौरैया हर घर में देखी जाती थी वह विलुप्त हो गई। इसी बात को मद्देनजर रखते हुए संस्था लोक स्वर पिछले 11 वर्षों से गौरैया दिवस के ऊपर एक जनजागरूकता कार्यक्रम के माध्यम से आगरा मंडल के लोगों को जागृत कर रही है कि वह अपने यहां गौरैया के पीने के लिए पानी रखें तथा उन्हें आश्रय देने के लिए अपने घरों में घरौंदा लगाए।
शनिवार को लोकेश्वर संस्था की ओर से शहर भर में जगह-जगह पर घरौंदो का वितरण किया गया और लोगों से अपील की गई कि इन्हें घर पर लगाएं ताकि हम अपने क्षेत्र में गौरैया की संख्या बढ़ा सकें।
लोकस्वर संस्था के राजीव गुप्ता ने बताया कि उनकी संस्था अभी तक 1200 घरौंदा बाँट चुके हैं। अनेक घरौंदो में कई कई बार प्रजनन हुआ हैं। संस्था के सचिव नवीन बताते है हमें अपने छत पर पूरे साल पक्षियों के खाने व पीने के लिए कुछ रखना चाहिये।
आज गौरैया दिवस पर एक ऑटो ट्रेडर्स सीताराम मार्केट बेलनगंज में जनजागरूकता कार्यक्रम के माध्यम से सभी दुकानदार और उन उन पर काम करने वाले कर्मचारियों को घरौंदे भेंट किए गए, साथ ही सभी ने अपने क्षेत्र में गौरैया को बचाने का एक प्रण लिया है। इस दौरान मौके पर ही 20 घरौंदे व 20 पानी के बर्तन बांटे गए।
इस दौरान कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे राजेंद्र लूथरा ने विश्व गौरैया दिवस पर अपने विचार रखे और गौरैया के बारे में सभी को जानकारी दी। उन्होंने बताया कि पर्यावरण में पशु पक्षियों का बहुत बड़ा योगदान होता है। गौरैया पर्यावरण को न केवल सुरक्षित और स्वस्थ वातावरण देती है बल्कि अपनी मधुर आवाज से मानव जीवन में एक उत्साह और खुशी का माहौल भी पैदा करती है। उनके संरक्षण हेतु प्रत्येक वर्ष विश्व में 20 मार्च को गौरैया दिवस के रूप में मनाया जाता है.
भारत में गौरैया की स्थिति:-
रॉयल सोसाइटी फॉर द प्रोटेक्शन ऑफ बर्ड्स के एक हालिया सर्वेक्षण के अनुसार पिछले 40 वर्षों में अन्य पक्षियों की संख्या में वृद्धि हुई है, लेकिन भारत में गौरैया की संख्या में 60% की कमी आई है| दुनिया भर में गौरैया की 26 प्रजातियां हैं, जबकि उनमें से 5 भारत में पाई जाती हैं। भारत में वर्ष 2015 की पक्षी जनगणना के अनुसार लखनऊ में केवल 5692 और पंजाब में कुछ क्षेत्रों में लगभग 775 गौरैया थी वर्ष 2017 में तिरुवनंतपुरम में केवल 29 गौरैया की पहचान की गई।
भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के सर्वेक्षण पाया गया कि आंध्र प्रदेश में इसकी संख्या मे 80% की कमी है, भारत का हर भाग गौरैया की कमी से अलग-अलग प्रतिशत में अछूता नहीं है।
गौरैया का पर्यावरण संतुलन में योगदान-
गौरैया पर्यावरण संतुलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। गौरैया अपने बच्चों को अल्फ़ा और कैटवॉर्म नामक कीड़े खिलाती है। ये कीड़े फसलों के लिए बेहद खतरनाक होते हैं। वे फसलों की पत्तियों को मारकर नष्ट कर देते हैं। इसके अलावा गौरैया मानसून के मौसम में दिखाई देने वाले कीड़े भी खाती है।