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लाल किला वापस पाने‌ के लिए महिला ने दायर की याचिका, कोर्ट ने कहा 150 साल बाद याद आया?

by admin
The woman filed a petition to get the Red Fort back, the court said, remember after 150 years?

दिल्ली की ऐतिहासिक इमारत लालकिले (Red Fort) पर एक महिला द्वारा मालिकाना हक जताया गया है। वर्षों से दिल्ली( Delhi) की जिस ऐतिहासिक इमारत (Historical Monument) लाल किले पर हर साल प्रधानमंत्री स्वतंत्रता दिवस के उपलक्ष्य में ध्वजारोहण करते हैं। उस ऐतिहासिक इमारत पर इस तरह मालिकाना हक जताना चर्चा का विषय बन गया। बता दें महिला ने खुद को मुगल साम्राज्य का बताते हुए हाई कोर्ट में याचिका दायर की थी‌।

महिला ने मामले की सुनवाई के दौरान दावा किया कि वह मुगल बादशाह बहादुर शाह जफर के प्रपौत्र की विधवा हैं। जिसके चलते वह परिवार की कानूनी वारिस होने के नाते लाल किले पर मालिकाना हक रखती है। इस दायर की गई याचिका में महिला ने खुद को लाल किले की कानूनी वारिस बताया। हालांकि अदालत ने महिला की याचिका पर विचार किया और बाद में यह याचिका खारिज कर दी गई।

खारिज हुई याचिका

जब याचिका खारिज की गई तो न्यायमूर्ति रेखा पल्ली की एकल पीठ ने कहा कि 150 से अधिक वर्षों के बाद अदालत का दरवाजा खटखटाया गया जिसका अब कोई औचित्य नहीं है। इस पर महिला के पास कोई स्पष्टीकरण नहीं था। इसलिए अनौचित्यपूर्ण बताते हुए इस तरह महिला के मालिकाना हक के दावे को अदालत ने खारिज कर दिया। पल्ली ने कहा, “वैसे मेरा इतिहास बहुत कमजोर है, लेकिन आप दावा करती हैं कि 1857 में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी द्वारा आपके साथ अन्याय किया गया था तो अधिकार का दावा करने में 150 वर्षों से अधिक की देरी क्यों हो गई? आप इतने वर्षों से क्या कर रही थीं।”

महिला का दावा

याचिकाकर्ता सुल्ताना बेगम का कहना है कि वह बहादुर शाह जफर के पड़पौत्र मिर्जा मोहम्मद बेदार बख़्त की पत्नी हैं, जिनका 22 मई 1980 को निधन हो गया था। फिलहाल इस रोचक दावे के दायर की गई याचिका को अदालत की ओर से खारिज कर दिया गया है।

दायर याचिका में दी गई जानकारी

सुल्ताना बेगम ने दायर याचिका में कहा “1857 में ढाई सौ एकड़ में उनके पुरखों के बनवाए लाल किले को ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने जबरन कब्जाया था।कम्पनी में उनके दादा ससुर और आखिरी मुगल बादशाह बहादुर शाह जफर को हुमायूं के मकबरे से गिरफ्तार कर रंगून भेज दिया था। वहीं निर्वासन के दौरान ही 1872 में जफर का देहांत हो गया।गुमनामी में देहांत के करीब सवा सौ साल गुजर जाने के बाद भी आम भारतीयों को जफर की कब्र का पता ही नहीं चला।काफी खोज बीन और साक्ष्य जुटाने के बाद उनकी मौत के 130 साल बाद पता चला कि बादशाह जफर रंगून में कहां गुपचुप दफन किए गए।

इस लाल किले का निर्माण मुगल शासक शाहजहां ने यमुना नदी की धारा के एकदम किनारे 1648 से 1658 के बीच पूरा करवाया। कभी किसी जमाने में घुमाव लेती यमुना इस किले को तीन ओर से घेरती थी। छठे बादशाह औरंगजेब ने लाल किले में सफेद संगमरमर से एक छोटी सी सुंदर कलात्मक मोती-मस्जिद बनवाई। लेकिन 1857 में बहादुर शाह जफर को गिरफ्तार कर अंग्रेजों ने शाही परिवार के साथ किला बदर कर जबरन कलकत्ता भेज दिया। कम्पनी ने लाल किले में शाही खजाना सहित जमकर लूटपाट की और यहां की बुर्जी पर मुगल झंडे की जगह अपना यूनियन जैक लहरा दिया। यानी किले पर अपना कब्जा जमा लिया।”

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