महाकुंभ में बिछड़ने को लेकर कई कहावतें वर्षों से प्रचलित हैं लेकिन अब इन कहावतों को बदलने का बीड़ा आगरा के समाजसेवी नरेश पारस ने उठाया है। बता दें नरेश पारस महफूज संस्था के समन्वयक भी हैं। अगर इनके समाज के प्रति किए गए कार्यों की बात की जाए तो यह महिला उत्पीड़न और बाल हितैषी योजनाओं को लेकर लगातार कार्यरत रहते हैं।कुंभ मेले में आने वाले बच्चों की सुरक्षा का जिम्मा आगरा के सोशल एक्टिविस्ट नरेश पारस ने ही उठाया है।
जब समाज सेवी नरेश पारस से उनके द्वारा तैयार की गई स्ट्रेटजी के विषय में बात की तो उन्होंने बताया कि उन्होंने हरिद्वार प्रशासन के सामने अपनी योजना रखी थी ,जिसे उत्तराखंड सरकार ने मंजूरी दे दी है। साथ ही बताया कि कुंभ मेले को चाइल्ड फ्रेंडली बनाने के लिए इस योजना को लागू किया गया है जिसमें कुंभ मेले में आने वाले सभी बच्चों का बाल सुरक्षा केंद्र पर पहले पंजीकरण होगा उसके बाद उनकी जेब में विवरण की एक पर्ची रखी जाएगी जिसमें माता पिता के नाम सहित उनका पता और मोबाइल नंबर अंकित होगा जिससे अगर बच्चा स्वजनों से बिछड़ जाता है तो कोई भी अधिकारी उसकी जेब में रखी बाल पहचान पर्ची देख कर परिजनों से मिलवा सकेगा। फिलहाल कुंभ मेले में इस योजना का बखूबी से इस्तेमाल किया जा रहा है।
समाज सेवी नरेश पारस महिलाओं के प्रति हो रहे उत्पीड़न और बच्चों से करवाई जाने वाली भिक्षावृत्ति के खिलाफ लगातार आवाज उठाते आए हैं। इस बार उन्होंने कुंभ में खोने वाले बच्चों को उनके परिजनों से मिलाने की जिम्मेदारी का बीड़ा उठाया है।समाज सेवी नरेश पारस द्वारा तैयार की गई बच्चों के रेस्क्यू करने की योजना को उत्तराखंड सरकार ने हरी झंडी दिखाते हुए लागू भी किया है।इस योजना का ट्रायल पहले शिवरात्रि पर किया गया था, जिसमें आए हुए सभी बच्चों को सुरक्षित उनके परिजनों के साथ इस योजना के तहत भेजा गया था।