आगरा। पुलिस कस्टडी में अरुण नरवार की मौत पर जहां वाल्मीकि समाज के लोगों में आक्रोश है तो वहीं सियासत भी जारी है। आगरा से लेकर लखनऊ के गलियारों में सियासतदार उत्तर प्रदेश सरकार के साथ में आगरा पुलिस की कार्यप्रणाली पर सवालिया निशान उठा रहे हैं। पुलिस के आलाअफसरों के दिशा निर्देश पर मृतक अरुण के भाई सोनू की तहरीर पर थाना जगदीशपुरा में अज्ञात पुलिसकर्मियों पर धारा 302 यानी हत्या का मुकदमा दर्ज किया गया है। अभी तक इस मामले में 11 पुलिसकर्मियों को निलंबित कर दिया गया है तो वहीं मृतक अरुण के शव का चिकित्सकों के पैनल द्वारा किये गए पीएम रिपोर्ट में हार्टअटैक दर्शाया गया है।
इस मामले में कानून के जानकारों का कहना है कि भले ही पोस्टमार्टम रिपोर्ट में हार्ट अटैक आया हो लेकिन आरोपी युवक के साथ मारपीट के भी निशान मिले हैं। पुलिस कस्टडी में मौत का मामला काफी संवेदनशील होता है। राजपत्रित अधिकारी द्वारा इस घटना की सभी मौजूदा साक्ष्यों के आधार पर जब जांच की जाएगी। अगर पुलिसकर्मियों पर दोष साबित हुआ तो चार्जशीट दाख़िल की जाएगी जिसके बाद दोषी पुलिसकर्मियों को आजीवन कारावास के साथ जुर्माना भरने की सज़ा मिल सकती है।
वरिष्ठ अधिवक्ता हेमेंद्र शर्मा एडवोकेट का कहना है कि पुलिस कस्टडी में आरोपी की मौत हो जाना एक बड़ी और संवेदनशील घटना होती है। ऐसे मामले में पोस्टमार्टम की रिपोर्ट की जांच में कई बार यह सामने आता है कि आरोपी को इतना प्रताड़ित या उत्पीड़न किया गया कि उसे हार्ट अटैक आ गया और मौत हो गई। अगर जांच में यह साबित होता है तो इस पर भी पुलिसकर्मियों के खिलाफ कड़ी और सख्त कार्रवाई हो सकती है।
साफ़ है कि जो पुलिसकर्मी इस पूरे प्रकरण में दोषी है। अभी उन पर लगा ग्रहण अभी खत्म नहीं हुआ है। इस पूरे मामले में दोषी पुलिसकर्मियों के खिलाफ अगर चार्जशीट दाख़िल होती है और दोष सिद्ध होता है तो पुलिसकर्मियों का भविष्य ख़राब हो सकता है।