आगरा। जिला प्रशासन के साथ साथ स्वास्थ्य विभाग कोरोना संक्रमित मामलों को रोकने व कोरोना संक्रमित मरीजों के इलाज में जुटा हुआ है लेकिन इसके चलते अन्य गंभीर रोगों के मरीजों के जान पर बन आई है। ऐसा ही एक मामला गुरुवार को देखने को मिला।
विमल गुप्ता नाम का एक डायलिसिस मरीज अपनी डायलिसिस कराने के लिए अस्पतालों के चक्कर काटता रहा लेकिन उसकी डायलिसिस नही हो सकी। हार के पीड़ित जिला प्रशासन व स्वास्थ्य विभाग को जमकर कोसता रहा।
डायलिसिस पीड़ित विमल गुप्ता ने बताया कि सुबह से वह शहर के अस्पतालों में डायलिसिस कराने के लिए दर दर भटक रहे हैं। कोई भी प्राइवेट हॉस्पिटल डायलिसिस नही करना चाहता। हर कोई पहले कोविड-19 की जांच कराने के लिए कह रहा है। प्राइवेट हॉस्पिटल कोविड-19 जांच नही कर रहे और कोविड-19 की जांच के लिए जिला अस्पताल के लिए भेज दिया। जिला अस्पताल के भी कई चक्कर लगा लिए। चिकित्सक इधर से उधर भेज रहे है लेकिन कोविड -19 की जांच कोई करने को तैयार नही है, उन्होंने बताया कि यह कोविड-19 की जांच के बाद ही उनकी डायलिसिस हो सकेगी।
पीड़ित ने बताया कि घंटो जिला अस्पताल में भटकने के बाद भी उनकी कोरोना वायरस की जांच नही हुई और न ही उनको डायलिसिस का उपचार मिल पाया। इससे नाराज पीड़ित अपना इलाज का पर्चा जिला अस्पताल में फाड़ कर फेंक दिया और अपने घर पहुंच गए।
वहीं दूसरी ओर शाहगंज निवासी सौरभ महाजन भी अपने पिता की डायलिसिस कराने को लेकर शहर के कई अस्पतालों में घूमते रहे। उन्होंने बताया कि इससे पहले उनकी पिता की डायलिसिस सिनर्जी अस्पताल में होती थी, इस बार होने कोविड-19 की जांच कराने के बाद ही डायलिसिस कराने के लिए कहा गया। जिसके बाद वे जिला अस्पताल पहुंचे तो वहां उन्हें डॉक्टर ना होने के कारण बाद में जांच कराने की बात कहकर टाल दिया गया। काफी मशक्कत के बाद जब स्वास्थ्य विभाग द्वारा उनके पिता को कोरोना संक्रमित ना होने का लेटर जारी किया तब जाकर कहीं सिनर्जी अस्पताल ने डायलिसिस की प्रक्रिया शुरू की।
ऐसे डायलिसिस के मरीज शहर में सैकड़ों है लेकिन देखना यह होगा कि जिला प्रशासन इस ओर क्या कदम उठाएंगे या फिर ऐसे गंभीर रोगों के मरीजों को स्वास्थ्य विभाग की लचर कार्यप्रणाली के चलते अपने जीवन की आहुति देनी होगी।