सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों ने शुक्रवार को एक मामले की सुनवाई करते हुए रोचक टिप्पणी कर दी।यह रोचक मामला हिमाचल हाईकोर्ट के एक निर्णय को लेकर था।इसके खिलाफ दायर की गई याचिका पर सुनवाई करते हुए जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने साथ बैठे जज से पूछा, “फैसले में क्या लिखा गया है?”जिसके बाद साथी जज एमआर शाह ने कहा, ” मुझे भी समझ में नहीं आया।लंबे-लंबे वाक्य हैं। जगह-जगह काॅमा लगे हैं। इसे पढ़ते-पढ़ते मेरा तो सिर दर्द होने लगा। बाम लगाना पड़ा।”
अलावा इसके जस्टिस शाह ने आगे टिप्पणी करते हुए कहा, “इस फैसले काे पढ़ने के बाद मुझे अपनी समझ पर शक हाेने लगा है। क्योंकि मैं कुछ समझ नहीं पाया।’ उन्होंने आगे कहा, ‘निर्णय (जजमेंट) की भाषा इतनी सरल हो कि आम आदमी को भी आसानी से समझ आ जाए। उसे हर कोई समझ सके। यह किसी थीसिस की तरह नहीं होना चाहिए।”
जस्टिस चंद्रचूड़ ने भी इस फैसले की भाषा को लेकर कुछ इसी तरह से टिप्पणी की। उनका कहना था, “मैं सुबह 10:10 बजे इस फैसले को पढ़ने के लिए बैठा। मैंने इसे 10:55 बजे तक इसे पूरा पढ़ा। मैं आश्चर्यचकित हो गया। आप सोच भी नहीं सकते। अंत में मुझे सीजीआईटी (केंद्रीय औद्योगिक विवाद निवारण न्यायाधिकरण) के आदेश काे देखना पड़ा। ओह, माय गॉड! मैं आपको बता रहा हूं, ये अविश्वसनीय है! यह न्याय की अव्यवस्था है। हर मामले में आप इस तरह के ही निर्णय पाते हैं।”18 पेज के लंबे फैसले में हाईकोर्ट द्वारा बताए गए कारण समझ से भी बाहर बताए गए।
दरअसल यह एक कर्मचारी पर भ्रष्टाचार के आराेप को लेकर मामला था। इस मामले में सीजीआईटी के आदेश को हिमाचल हाईकोर्ट ने पिछले साल 27 नवंबर काे सही ठहराया था। हाईकोर्ट के इस आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में विशेष अनुमति याचिका दायर की गई थी। इसी पर जब शुक्रवार को सुनवाई हो रही थी उसी वक्त सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों ने यह दिलचस्प टिप्पणी की। उन्होंने कहा- ” 18 पेज के लंबे फैसले में हाईकाेर्ट द्वारा दर्ज बताए गए कारण समझ से बाहर हैं। नियोजित तर्क और भाषा जिस तरह की है, वह अक्षम्य है।”सुप्रीम कोर्ट के जज एमआर शाह का कहना है कि फैसले की भाषा इतनी सरल होनी चाहिए कि आम जनता को भी समझ आ सके। लेकिन इस फैसले की भाषा जजों की भी समझ से परे है।