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‘कन्हैया झूले पलना नेक धीरे झोंटा दीजो…’, भगवान कृष्ण के जन्म के साथ ही गूंजे नंदलाल के जयकारे

by admin

आगरा। कथा स्थल गोकुल धाम और श्रद्धालु गोप गोपी सदृष्य थे। श्रीहरि ने कृष्ण रूप में जैसे ही गोकुल में जन्म लिया। हर तरफ श्रीराधा-कृष्ण और नंद के लाला के जयकारे गूंजने लगे। बधाईयां गवने लगीं। हर भक्त भक्ति में झूमने नाचने लगा। फतेहाबाद रोड स्थित राज देवम रिसार्ट में आयोजित श्रीमद्भागवत कथा में आज श्रीजन्मोत्सव की धूम थी। नंदबाबा और यशोदा मैया ने प्रसाद स्वरूप उपहार भक्तों में खूब लुटाए। कन्हैया के स्वरूप के चरण स्पर्श और दर्शन को हर भक्त व्याकुल था। कथा वाचन डॉ. श्यामसुन्दर पाराशर ने श्रीराम कथा व श्रीकृष्ण जन्मोत्सव की कथा का भक्तिमय वर्णन किया तो हर तरफ भक्ति के सतरंगी बिखर गए।

व्यासपीठाचार्य डॉ. श्यामसुन्दर पाराशर ने कहा कि कहा कि जो सबको आनंद दे वह नंद और जो सबको यश दे वह यशोदा। प्रह्लाद चरित्र की व्याख्या करते हुए कहा कि एक वैष्णव भक्त अपनी 21 पीढ़ियों को तार देता है। राजा मरीष व दुर्वासा ऋषि की कथा का वर्णन करते हुए बताया कि श्रीहरि सिर्फ अपने भक्तों के पराधीन होते हैं। श्रीकृष्ण कथा भवरोग की वह मीठी दवा है है जन्म मरण की व्याधि को समाप्त करती है। भस्मासुर की कथा के माध्यम से कहा कि आतंकवादी भस्मासुर की तरह होते हैं। जो उन्हें श्रय देता है, सबसे पहले उसे ही मारते हैं।

कथा स्थल पर वामन रूप में पहुंचे श्रीहरि के स्वरूप को देख हर श्रद्धालु का सिर नके चरण में झुक गया। भिक्षा के रूप में भक्तों ने वामन अवतार के स्वरूप को उपहार व दक्षिणा प्रदान की। देख सबन सुख पायो, हरि ने आज वामन रूप बनायो… भजन पर जहां भक्त भ्तिमय नृत्य में झूमते नजर वहीं श्रीहरि के विराट रूप की कथा सुन श्रीनारायण के जयकारों से कथा गूंज उठा।

शरीर वस्त्र और नर्क हैं धोबी घाट

व्यासपीठाचार्य डॉ. श्याम सुन्दर पाराशर ने संत कबीर के भजन चदरिया छीनी रे छीने… के विस्तार से वर्णन करते हुए कहा कि शरीर वस्त्र और नर्क शरीर रूपी वस्त्र को स्वच्छ करने वाले धोबीघाट हैं। वस्त्र को कितना भी सावधानी से पहनों, गंदा होता ही है। शरीर रूपी पर वस्त्र व संसार में आने पर लगने वाली गंदगी को या तो मनुष्य खुद साफ कर ले अन्यथा इसे नर्क रूपी धोबीघाट पर धोया जाता है। मनुष्य खुद करे तो सफाई कोमलता से करेगा, परन्तु नर्क रूपी धोबीघाट में धुलाई के साथ धुनाई भी अच्छी होती है। शरीर रूपी वस्त्र पर लगे पाप के दागों को प्रायश्चित से दूर कर सकते हैं। परन्तु शर्त यह है कि आगे फिर से पाप न हों। संगत की रंगत का महत्व बताते हुए कहा कि इस शरीर रूपी वस्त्र के रंगरेज संत हैं। संतों की संगत में रहकर भक्ति की रंग चढ़ाओ या राक्षस प्रवृत्ति के लोगों के साथ रहकर आतंक का रंग।

इस अवसर पर वृन्दावन की मंडली द्वारा मयूर नृत्य व फूलों की होली का भक्तिमय सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किए गए। संतोष शर्मा व उनकी धर्मपत्नी ललिता शर्मा ने ने कन्हैया व वामन रूप में पहुंचे स्वरूपों का पूजन कर आरती की। नंदबाबा व यशोदा के रूप में संजय शर्मा व रजनी शर्मा व वामन भगवान के स्वरूप में थे।

वृन्दावन से आए संतों में बलराम राज देवाचार्य, फूलडोल महाराज, सच्चिदानंद महाराज, अतुल नन्द के साथ कथा में मुख्य रूप से चौधरी उदयभान सिंह, विधायक पुरुषोत्तम खंडेलवाल, श्याम भदौरिया, संघ के विभाग प्रचारक आनंद, प्रांत संयोजक दिनेश लवानिया, मधु बघेल, प्रशान्त पौनिया आदि उपस्थित रहे।

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