आगरा। गर्भावस्था के दौरान गर्भवती के स्वास्थ्य का विशेष ध्यान रखना जरूरी है। इस दौरान उनके खान-पान का ध्यान रखना जरूरी तो है ही इसके साथ ही सबसे जरूरी है कि वे प्रसव पूर्व अपनी जांच कराना जरूरी है। इससे गर्भावस्था में होने वाली कई जटिलताओं से बचा जा सकता है। मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉ. अरूण श्रीवास्तव ने बताया कि गर्भावस्था में जोखिम को कम करने के लिए जनपद में सभी शहरी और ग्रामीण स्वास्थ्य केंद्रों पर गर्भवती महिलाओं की प्रसव पूर्व जांचें मुफ्त की जाती हैं। उन्होंने बताया कि सभी गर्भवती महिलाओं दूसरी और तिमाही में अपनी प्रसव पूर्व जांच अवश्य करानी चाहिए।
एसीएमओ आरसीएच डॉ. संजीव वर्मन ने बताया कि प्रसवपूर्व सभी अहम जांच की मदद से गर्भावस्था की जटिलताएं रोकी जा सकती हैं । इस जांच की सुविधा सभी ग्राम स्वास्थ्य स्वच्छता पोषण दिवस (वीएचएसएनडी), प्रत्येक माह की नौ तारीख को होने वाले प्रधानमंत्री सुरक्षित मातृत्व अभियान दिवस (पीएमएसएमए) और सभी सरकारी अस्पतालों के ओपीडी में निःशुल्क उपलब्ध है। इन जांचों में खून की कमी की जांच काफी अहम है और अगर यह जांच समय से हो जाए और हीमोग्लोबिन की कमी को दूर कर दिया जाए तो प्रसव के दौरान होने वाली मातृ-शिशु मृत्यु दर को कम किया जा सकता है।
जीवनीमंडी नगरीय स्वास्थ्य केंद्र की प्रभारी डॉ. मेघना शर्मा ने बताया कि गर्भ में पल रहे बच्चे के स्वास्थ्य और सही विकास को सुनिश्चित करने के लिए गर्भावस्था के दौरान कम से कम चार बार प्रसव पूर्व जांच जरूरी है। उन्होंने बताया कि पहली जांच गर्भ के तीन माह के भीतर, दूसरी जांच गर्भ के चौथे से छठे महीने के भीतर, तीसरी जांच सातवें से आठवें महीने के भीतर और चौथी जांच नौवें महीने में या प्रसव की तारीख नजदीक आने पर करानी चाहिए। डॉ. मेघना ने बताया कि गर्भावस्था के दौरान वजन की माप, ब्लड प्रेशर की जांच, खून की जांच, पेशाब की जांच, पेट के घेराव की जांच और अल्ट्रासाउंड आदि किए जाते हैं।
उच्च जोखिम की होती है पहचान
डॉ. मेघना ने बताया कि प्रसव पूर्व जांच से उन गर्भवतियों की पहचान हो सकती है जो उच्च जोखिम की कैटेगरी में आती हैं। उनकी पहचान करके उनका सही उपचार करके उन्हें उच्च जोखिम कैटेगरी से बाहर निकालकर स्वस्थ प्रसव किया जा सकता है।
आंकड़ों में प्रसव पूर्व जांच
राष्ट्रीय पारिवारिक हेल्थ सर्वेक्षण (एनएचएफएस)-05, वर्ष 2019-21 के आंकड़ों के अनुसार जिले में 42.7 फीसदी महिलाओं ने प्रसव पूर्व चारो तिमाही में जांच कराई। एनएचएफएस-04 (2015-16) के आंकड़ों के मुताबिक यह 37.2 फीसदी था। पहली तिमाही में भी जांच कराने वाली संख्या बढ़ी है। एनएचएफएस-4 सर्वेक्षण के मुताबिक पांच वर्ष पूर्व जहां यह 61.4 फीसदी था, वहीं यह पांच वर्षों में बढ़ कर 62.1 फीसदी हो गया।