Agra. सेंट्रल अडॉप्शन रिसोर्सेज एजेंसी (कारा) के माध्यम से विदेशी दंपति को बच्चा गोद दिया जाता है। जिनके चलते तमाम निःसंतान दंपत्तियों की गोद भरी गई है। बच्चों को भी परिवार मिल रहे हैं यह एक सकारात्मक पहल है। बच्चे विदेश भी गोद दिए जा रहे हैं लेकिन इसका फायदा कुछ गलत लोग भी उठा सकते हैं। गोद दिए गए बच्चों की फॉलोअप प्रक्रिया लचर है। विदेश गोद दिए गए बच्चों का फॉलोअप तो बिल्कुल भी नहीं हो पाता है। ऐसे में बच्चों की तस्करी, बंधुआ मजदूरी, बालश्रम आदि में बच्चों को लगाने की संभावना है। विदेश गोद दिए बच्चों का बालिग होने तक दूतावासों से फॉलोअप कराए जाने की मांग को लेकर चाइल्ड राइट्स एक्टिविस्ट एवं महफूज संस्था के समन्वयक नरेश पारस ने जिलधिकारी, बाल कल्याण समिति और जिला प्रोबेशन अधिकारी को पत्र लिखा है।
नरेश पारस ने कहा कि मामला सिर्फ गोद लिए बच्चों के बेहतर पालन-पोषण का ही नहीं है। बच्चों की सौदेबाजी के रैकेट से भी इंकार नहीं किया जा सकता है। विदेशों से बच्चों की भारी मांग रहती है और इसकी आड़ में मानव तस्करी के रैकेट संचालित हो सकते हैं। विदेशी दंपति बच्चे के बदले मोटी रकम चुकाते हैं। गोद देने के बच्चे किस हाल में हैं ये कोई नहीं देखता है।
नरेश पारस ने यह मांग की है कि गोद दिए गए बच्चों 18 वर्ष तक का नियमित फॉलोअप कराया जाए। बच्चों का रिकार्ड संरक्षित किया जाए। स्थानीय स्तर पर गोद दिए गए बच्चों का जिला बाल संरक्षण इकाई द्वारा गृह निरीक्षण रिपोर्ट तैयार कराई जाए। साथ ही विदेश गोद दिए गए बच्चों का फॉलोअप कराने के भारतीय दूतावास से पत्राचार किया जाए। जिस देश में बच्चा गोद दिया गया है उस देश में भारतीय दूतावास द्वारा बालिग होने तक बच्चे का फॉलोअप कराया जाए। इससे मानव तस्करी, बंधुआ मजदूरी और बालश्रम जैसे मामलों पर अंकुश लग सकेगा।