महाराष्ट्र के सत्ताधारी दल शिवसेना ने मोदी सरकार पर निशाना साधा है। शिवसेना ने अपने मुखपत्र सामना के माध्यम से बड़े सवाल केंद्र सरकार के खिलाफ खड़े कर दिए हैं। शिवसेना ने सामना केस संपादकीय में लिखा कि आठ दौर की वार्ता हो जाने के बाद भी कोई नतीजा नहीं निकला फिलहाल किसानों का आंदोलन जारी रखना ही इनकी नीति है। शिवसेना ने केंद्र सरकार पर आरोप लगाते हुए कहा कि किसानों से वार्ता करना सरकार का नाटक है।
शिवसेना ने मुखपत्र सामना के संपादकीय में लिखा, “दिल्ली की सीमा पर धमके किसानों और सरकार के बीच की चर्चा फिर एक बार बेनतीजा रही। किसानों और केंद्रीय मंत्रियों के बीच चर्चा के आठ दौर हो जाने के बावजूद यदि कोई नतीजा नहीं निकल रहा होगा तो सरकार को इसमें कोई रस नहीं है।किसानों के इस आंदोलन को जारी रखना है और यही सरकार की राजनीति है।”
मुखपत्र सामना में आगे लिखा, ”दिल्ली में कड़ाके की ठंड पड़ रही है। उसमें भी तीन दिनों से मूसलाधार बरसात हो रही है।किसानों के तंबुओं में पानी घुस गया और उनके कपड़े और बिस्तर भीग गए।फिर भी किसान पीछे हटने को तैयार नहीं हैं।कृषि कानून को रद्द करवाने को लेकर किसान डटे हुए हैं। दिल्ली की सीमा पर अब तक 50 किसानों ने अपनी जान गंवाई है। सरकार की नजर में इन किसानों के बलिदान की कोई कीमत नहीं है।सरकार में इंसानियत होती तो कृषि कानून को तात्कालिक रूप से स्थगित करवाती और किसानों की जान से खेले जाने वाले इस खेल को रोकती।”
4 जनवरी को हुई बैठक को लेकर सामना में लिखा, ”कृषि मंत्री नरेंद्र तोमर और वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री पीयूष गोयल तथा राज्यमंत्री सोमपाल शास्त्री के साथ किसान नेताओं की बैठक सोमवार को दिल्ली के विज्ञान भवन में हुई। इस बैठक में 40 किसान नेता उपस्थित थे।लेकिन नतीजा क्या हुआ? तीनों मंत्रियों को निर्णय लेने का अधिकार नहीं है और किसान नेता पीछे हटने को तैयार नहीं हैं। किसान नेताओं ने विज्ञान भवन की सीढ़ियों पर खड़े होकर कहा, ये क्या तमाशा लगा रखा है? सरकार हमसे ‘बैठक-बैठक’ खेल रही है क्या? इसका क्या फायदा होगा?’”
सामना में चर्चा को लेकर नाटक कहने पर लिखा गया, ”एक तरफ सरकार किसानों से चर्चा करने का नाटक करती है।उसी समय किसानों पर दबाव तंत्र का प्रयोग करती है। किसानों का विरोध कृषि क्षेत्र में कॉर्पोरेट कंपनी की घुसपैठ को लेकर है।किसानों को डर है कि नए कृषि कानून से उनकी खेती-व्यवसाय कॉर्पोरेट कंपनियों के हाथों में चला जाएगा और जमीन का टुकड़ा भी उनके हाथों से निकल जाएगा। किसानों की फसलों को न्यूनतम समर्थन मूल्य मिलना चाहिए लेकिन न्यूनतम मूल्य की गारंटी देनेवाली कृषि उत्पन्न बाजार समिति के समक्ष कॉर्पोरेट कंपनियों को खड़ा कर दिया गया।”
शिवसेना मुखपत्र में लिखा, ”नए कृषि कानून के अंतर्गत किसानों को फंसाया जा रहा है।किसानों के मन में डर है। अंबानी और अडानी उद्योग समूह खेती की ठेकेदारी में घुसेंगे और भविष्य में किसान को भीख मांगना पड़ेगा। पंजाब और हरियाणा के रिलायंस जियो कंपनी के टॉवर्स को किसानों ने तोड़-फोड़ डाला। अब रिलायंस कंपनी की ओर से सफाई दी जा रही है कि हमारी कंपनी को खेती-बाड़ी के धंधे में कोई भी रस नहीं है। अंबानी के बाद ऐसा ही बयान अब अडानी उद्योग समूह ने दिया तो दिल्ली की धधकती सीमा शांत हो जाएगी। किसानों के मन में दो उद्योगपतियों को लेकर डर बैठा हुआ है। इसका मतलब ये है कि सरकार द्वारा जबरन लादे गए तीनों कृषि कानूनों पर उन्हें विश्वास नहीं है।”
सामना के जरिए शिवसेना ने प्रधानमंत्री मोदी से आंदोलन खत्म करवाने के लिए दखल देने की मांग की है। सामना में लिखा है, ”किसान आंदोलन को लेकर प्रधानमंत्री मोदी को हस्तक्षेप करना चाहिए। आठ जनवरी को किसान संगठन और सरकार के बीच फिर एक बैठक होनी है। चर्चा के मुद्दे वहीं हैं।एमएसपी अर्थात न्यूनतम समर्थन मूल्य तथा तीनों कृषि कानूनों को हटाना।किसान संगठन कल की बैठक में यह स्पष्ट कर ही चुके हैं, कानून वापस लिए बिना हम घर वापस नहीं लौटेंगे।किसान नेताओं ने सरकार को हर बैठक में चेताया है कि हमें तीन कृषि कानूनों में चर्चा करने में कोई रस नहीं है।हमें कृषि कानून में बदलाव नहीं चाहिए।कानून वापस लोगे तब ही आंदोलन समाप्त होगा।”
शिवसेना ने बीजेपी पर हमला बोलते होते हुए मोदी सरकार पर अहंकारी होने का भी आरोप लगाया।सामना में लिखा, ”किसान जिद से तमतमाए हुए हैं और भाजपा की मोदी सरकार अहंकार में जल रही है। कड़ाके की ठंड में और मूसलाधार बारिश में भी किसान जल उठा है। ऐसी प्रेरणादायी तस्वीर स्वतंत्रता के पहले भी देखने को नहीं मिली थी। उस समय आंदोलनकारी किसानों को ब्रिटिशों ने देशद्रोही साबित करके मार दिया था। आज भाजपा की केंद्रीय सरकार किसानों को देशद्रोही और आतंकवादी साबित करके मार रही है।पिछले कुछ दिनों से ‘बैठक-बैठक’ का दमदार खेल शुरू है। खेल में भाग लेने वाले मंत्रियों को अब अर्जुन तथा खेल रत्न पुरस्कार मिलने में कोई हर्जा नहीं है।”