हरिद्वार में कुंभ मेला 1 अप्रैल गुरुवार से विधिवत प्रारंभ हुआ। यह मेला 30 अप्रैल तक चलने वाला है।बता दें कुंभ मेले में जाने के लिए श्रद्धालुओं को 72 घंटे पहले की कोरोना नेगेटिव रिपोर्ट दिखानी जरूरी होगी।दरअसल कुंभ मेला दुनिया का सबसे बड़ा धार्मिक कार्यक्रम माना जाता है।इसके बारे में अगर विस्तार से बात की जाए तो भारत में हर बार 12 वर्ष बाद हरिद्वार, प्रयागराज, उज्जैन और नासिक में बारी-बारी से कुंभ मेले का आयोजन किया जाता है। लेकिन कुंभ मेले के इतिहास में ऐसा पहली बार हो रहा है कि हरिद्वार में 12 साल की बजाय 11वें साल में कुंभ मेले का आयोजन किया जा रहा है।
मिली जानकारी के मुताबिक अमृत योग का निर्माण काल गणना के मुताबिक किया जाता है और ऐसा तब होता है जब कुंभ राशि का गुरु आर्य के सूर्य में परिवर्तन होता है। इस समय पर गुरु कुंभ राशि में नहीं मौजूद होगा इसलिए इस बार 11 साल में कुंभ मेले का आयोजन किया जा रहा है। करीब 83 वर्ष की अवधि के बाद ऐसा समय आया है कि 12 साल की बजाय उससे पहले ही कुंभ मेले का आयोजन हो रहा है। गौरतलब है कि इससे पहले भी ऐसी घटनाएं सन 1760 ,1885 और 1938 में भी हो चुकीं हैं। इस पावन कार्यक्रम में पहुंच कर लाखों श्रद्धालु पवित्र गंगा में डुबकी लगाकर अपने दोषों की क्षमा के लिए प्रार्थना करते हैं। इस बार महामारी से निपटने के लिए सरकार ने कोरोना से बचाव के सारे उपाय भी अपनाए हुए हैं।इसके लिए एक गाइडलाइन भी सुनिश्चित की गई है। इस बार कुंभ मेले में 4 शाही स्नान होंगे और 13 अखाड़े सहभागिता करेंगे।शाही स्नान की तिथियां 12 अप्रैल यानी सोमवती अमावस्या के अवसर पर, 14 अप्रैल यानी वैशाखी पर, 21 अप्रैल को रामनवमी के उपलक्ष्य में और 27 अप्रैल को चैत्र पूर्णिमा के अवसर पर तय की गई हैं।
इन अखाड़ों से झांकी निकाली जाएगी।इस निकाली जाने वाली झांकी में सबसे आगे नागा बाबा होंगे साथ ही महंत, मंडलेश्वर, महामंडलेश्वर और आचार्य महामंडलेश्वर नागा बाबाओं का अनुसरण करेंगे। एक खास बात और बताना चाहेंगे आपको कि इस बार कुंभ मेले में बच्चे अपने परिजनों से ना बिछड़ सकें इसके लिए भी इंतजाम किए गए हैं और इसकी पूरी रणनीति सोशल एक्टिविस्ट नरेश पारस ने उत्तराखंड सरकार के समक्ष प्रस्तुत की है, जिस पर अमल भी किया जा रहा है।