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प्रेम को जब शब्द मिले तो गोपी गीत बने और जब प्रेम साकार हुआ तो चैतन्य महाप्रभु बन गए…

by pawan sharma

आगरा। भक्ति संप्रदाय और धर्म से नहीं बंधी, बल्कि भगवान भक्त से बंधे हैं। भक्त तो मुक्त है। मंदिर में भगवान से जो मिले वह भक्त नहीं, भगवान जिसके पास मिले वह भक्त है। बाल लीलाओं में निमाई, युवावस्था में गौरंग और संन्यास लेने पर वह चैतन्य महाप्रभु के नाम से विख्यात हुए। प्रेम अनुभव का विषय है। प्रेम को जब शब्द मिले तो गोपी गीत बने और जब प्रेम साकार हुआ तो चैतन्य महाप्रभु बन गए। ये कहना था रासोत्सव का मंचन करते हुए पदम् श्री हरिगोविन्द महाराज के शिष्य मुकेश हरि शर्मा एंव प्रदीप शर्मा का। जयपुर हाउस स्थित जनक महल पार्क में श्री राधे चैतन्य महाप्रभु सेवा समिति परिवार द्वारा आयोजित रासोत्सव 2018 में छठवें दिन प्रातः के सत्र में निमाई निताई मिलन लीला व संध्या सत्र में मीरा चरित्र की लीला का मंचन किया गया।


श्री गौरांग लीला में श्री हरिरास लीला मंडल द्वारा  मंचन चैतन्य लीला में बलराम जी के अवतार महाप्रभु के बड़े भाई श्री नित्यानंद जिनका बालकपन का नाम कुबेर है, बच्चों के साथ श्रीराम और श्री कृष्ण लीला का खेल खेलते है। एक सन्यासी कुबेर के बलराम रूप को जानकर संत कुबेर को उनके माता-पिता से मांग कर ले जाते है और चारो धाम की यात्रा कराते है। मथुरापुरी में आकर कुबेर को अपने बलराम के होने का अवेश होता है और वह कृष्ण को पुकारने लगते है। तभी आकाशवाणी के द्वारा उन्हें ज्ञात होता है कि श्री कृष्ण कन्हाई निमाई बनकर नवदीप में लीला कर रहे है। नित्यानंद पैदल यात्रा करते हुए नवदीप पहुंच कर निमाई से मिलते है। महाप्रभु निमाई नित्यानंद का संदेह दूर करने के लिए छः भुजा धारण करके दर्शन देते है और बताते है कि मैं ही राम हूं मैं ही कृष्ण हूं और मैं ही गौर निमाई।


श्री कृष्ण लीला मेंमीरा जो की राजस्थान के मेड़ता गॉंव में जन्मी कन्या है जिनके बाबा रावदा जो नित्य भागवत का पाठ करते है जिसे सुनकर मीरा को गोपी भाव प्राप्त होता है। एक संत द्वारा गिरधर के विग्रह के रूप में मानो मीरा को श्रीकृष्ण मिल जाते है जिन्हें वो अपना पति स्वीकार करती है। मीरा का विवाह चित्तोड़ के महाराणा परिवार मे होता है लेकिन कुछ समय बाद ही मीरा का अलौकिक सुहाग उजाड़ जाता है तो मीरा संत स्वरूप में संतो के साथ अपने गिरधर गोपाल का स्वंम पध बता कर कीर्तन करती है। महाराणा विक्रम मीरा को नाना प्रकार के कष्ट देते है और गिरधर गोपाल मीरा की रक्षा करते रहते है। अंत मे महाराणा को मीरा की भक्ति के आगे झुकना पड़ता है और मीरा महल को त्याग कर वृन्दावन चली जाती है अंततः द्वारिका पहुचकर द्वारिकाधीश के विग्रह में मीरा सदेह विलीन हो जाती है। ये देख कर रासोत्सव स्थल पर भक्तों की आंखों से आंसू बहने लगते है।


इस अवसर पर प्रमुख रूप से विधायक चौधरी उदयभान सिंह, विजय शिवहरे, श्याम भदौरिया, केशव अग्रवाल, निर्मला दीक्षित, ब्रजमोहन बंसल, विनय अग्रवाल, दिनेश बंसल कातिब, गौरव बंसल, ओम स्वरूप गर्ग, जेएल वर्मा, रमाशंकर अग्रवाल, नीरज अग्रवाल, मनीष अग्रवाल, आशीष अग्रवाल, बन्टी ग्रोवर, रजत भार्गव, चेतन लवानीया, योगेश अग्रवाल, बद्री प्रसाद, शालू अग्रवाल, विनोद अग्रवाल, मयन्क बंसल, कन्हैया लाल, विपिन बिहारी, पुनीत बंसल, अजय गर्ग जैन, मनोज गोयल, सुमन मंगल, विन्की अग्रवाल, क्षमा जैन सक्सेना, रेखा अग्रवाल, सुनीता बंसल, जुली अग्रवाल, डिम्पल बंसल, नीतू अग्रवाल, अनीता बंसल, अंजू बंसल, रजनी जैन, शिखा अग्रवाल, सीमा अग्रवाल, सरिता अग्रवाल, इंद्रा अग्रवाल आदि मौजूद रहे।

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