आगरा। एनीमिया होने का सबसे मुख्य और बड़ा कारण शरीर में आयरन की कमी होना है। इसलिए, इससे बचाव के लिए उचित पोषण बेहद जरूरी है। मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉ. अरुण श्रीवास्तव ने बताया कि आहार में बदलाव ही इस बीमारी से बचाव का सबसे सरल उपाय है। यह बीमारी खून में पर्याप्त स्वस्थ लाल रक्त कोशिकाएं या हीमोग्लोबिन कम होने से होती है। इसलिए, लक्षण दिखते ही तुरंत इलाज कराएं और चिकित्सक के परामर्श का पालन करें। अन्यथा थोड़ी सी लापरवाही बड़ी मुसीबत खड़ी कर सकती है। ऐसे में समय पर जांच के लिए अस्पताल जाने के साथ चिकित्सकों की सलाह पर अमल करना चाहिए।
एसीएमओ (आरसीएच) डॉ संजीव वर्मन ने बताया कि यह बीमारी महिलाओं में अधिक पाई जाती है खासकर गर्भावस्था में। गर्भस्थ शिशु के विकास के चलते एनीमिया होने की संभावना अधिक हो जाती है। इसलिए गर्भवती को गर्भधारण के दौरान लगातार हीमोग्लोबिन समेत अन्य आवश्यक जांच करानी चाहिए साथ ही चिकित्सक के परामर्श का पालन करना चाहिए।
शहरी प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र जीवनी मंडी की प्रभारी चिकित्सा अधिकारी डॉ. मेघना शर्मा ने बताया कि एनीमिया के दौरान तुरंत किसी अच्छे चिकित्सक से परामर्श लेना चाहिए और आवश्यक जांच करानी चाहिए। उन्होंने बताया कि गर्भवती को प्रसव पूर्व 6 माह तक सुबह शाम आयरन की गोलियां दी जाती हैं। इसी तरह से प्रसव के पश्चात भी 6 माह तक आयरन की गोलियां दी जाती हैं। कुल मिलाकर गर्भवती को प्रसव से पहले और प्रसव के बाद में 720 आयरन की गोलियों का सेवन कराया जाता है।
रतनपुरा निवासी 23 वर्षीय गर्भवती निशा ने बताया कि वह छह माह की गर्भवती हैं। उन्हें फरवरी 2023 में पता चला कि वह दूसरी बार गर्भवती हो गई हैं। उनका पहला बच्चा दो वर्ष पहले हुआ था, जिसकी जन्म के नौवें दिन मृत्यु हो गई थी। जबकि उन्होंने पहली बार गर्भावस्था के दौरान निजी अस्पताल में सभी प्रसव पूर्व जांच कराई थीं। दूसरी बार गर्भवती होने पर भी उनके पति ने प्रसव पूर्व सभी जांच (खून, पेशाब, अल्ट्रासाउंड, बीपी आदि) करवाईं, जिसमें पता चला कि उनमें खून की कमी है और उनका हीमोग्लोबिन का स्तर 5.5 ग्राम प्रति डेसीलीटर है। इसके साथ ही उन्हें पेशाब में संक्रमण भी है।
इसके बाद क्षेत्रीय आशा शिक्षा ने घर पर आकर उनसे संपर्क किया और सरकार की ओर से गर्भवती के लिए चलाई जा रहीं योजनाओं के बारे में जानकारी दी। आशा उन्हें जीवनी मंडी प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र पर ले गई। वहां पर डॉ. मेघना शर्मा ने उनकी जांच रिपोर्ट देखी और आयरन सुक्रोज चढ़ाने की सलाह दी। इसके बाद पति की सहमति के बाद में आयरन सुक्रोज चढ़ाया गया। अब तक उन्हें निश्चित समयांतराल पर तीन से पांच आयरन सुक्रोज चढ़ाये जा चुके हैं।
डॉ. मेघना ने उन्हें आयरन व कैल्शियम की गोलियां देकर नियमित सेवन करने और हरी साग-सब्जियों सहित पांच मेल का आहार लेने की सलाह दी। उसी के अनुसार वह आयरन व कैल्शियम की गोलियां भी खा रही हैं इसके साथ ही वह पालक, तोरई, लौकी, चुकंदर, खीरा, टमाटर, दाल-चावल, दलिया,जूस, मौसमी फल, अंडा, मांस-मछली जैसे पौष्टिक आहार का सेवन कर रही हैं। इसके साथ वह डॉक्टर के परामर्श अनुसार रोजाना दोपहर में दो घंटे आराम भी कर रही हैं। निशा ने बताया कि पहले उन्हें चक्कर आते थे । लेकिन अब वह समस्या दूर हो गई है। अब कमजोरी महसूस नहीं होती है और न ही चक्कर आते हैं। इसके साथ ही अब उनका हीमोग्लोबिन 8.5 हो गया है।
यह हैं एनीमिया के लक्षण
डॉ मेघना ने बताया कि एनीमिया की बीमारी के शुरुआती लक्षण थकान, कमजोरी, त्वचा का पीला होना, दिल की धड़कन में बदलाव, साँस लेने में तकलीफ, चक्कर आना, सीने में दर्द, हाथों और पैरों का ठंडा होना, सिरदर्द, त्वचा सफेद दिखना आदि हैं। ऐसे लक्षण नजर आते ही तुरंत इलाज कराएं।
प्रोटीन युक्त आहार का करें सेवन
एनीमिया के दौरान प्रोटीन युक्त आहार का सेवन करें। जैसे – पालक, सोयाबीन, चुकंदर, लाल मांस, मूंगफली , मक्खन, अंडे, टमाटर, अनार, शहद, सेब, खजूर आदि। प्रोटीन युक्त आहार शरीर के पोषक तत्वों की कमी को पूरा करता है। इससे हीमोग्लोबिन जैसी कमी भी दूर होती है।
लौह तत्व युक्त चीजों का करें सेवन
एनीमिया से बचाव के लिए लौह तत्व युक्त (आयरन) चीजों का सेवन करें। यहाँ तक कि सब्जी भी लोहे की ही कढ़ाई में बनाएँ। लोहे की कढ़ाई में सब्जी बनाने से आयरन की मात्रा काफी बढ़ जाती है।
2020-21 में हुए राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-5 (एनएफएचएस) के अनुसार जनपद में 15 से 49 वर्ष की 61.8 प्रतिशत गर्भवती एनीमिया से ग्रसित थीं। वहीं 59.4 प्रतिशत महिलाएं जो गर्भवती नहीं थी एनीमिक पाई गई।