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हर भाव की अनुभूति है, “अनुभूतिः कुछ भी मैंने न पाया” साहित्यिक कृति

by pawan sharma
  • भाषा की बाधा को भेदती कृति अनुभूतिः कुछ भी मैंने न पाया की रचना हिंदी और रशियन भाषी साहित्यकारों ने की
  • अंतरराष्ट्रीय कवि दीपक श्रीवास्तव और रूसी कवयित्री स्वेतलाना मगानोवा का साझा है संकलन
  • माधुर्य सांस्कृतिक एवं साहित्यिक संस्था की संस्थापिका अध्यक्ष निशिराज ने किया है अनुवाद

आगरा। हृदय से निकले भावों की अनुभूति की कोई भाषा की बाधा नहीं होती। इस बात का प्रमाण है साहित्यिक कृति अनुभूतिः कुछ भी मैंने न पाया”।
अन्तरराष्ट्रीय कवि दीपक श्रीवास्तव और रूसी कवयित्री स्वेतलाना मगानोवा के साझा संकलन अनुभूतिः कुछ भी मैंने न पाया का विमोचन माधुर्य सांस्कृतिक एवं साहित्यिक संस्था के तत्वावधान में रविवार को किया गया।

राजदीप एंक्लेव, दयालबाग स्थित संस्था के कार्यालय पर आयोजित समारोह का आरंभ मां शारदे की वंदना के साथ हुआ। मुख्य अतिथि प्रो वेद प्रकाश त्रिपाठी, विशिष्ट अतिथि गिरिराज किशोर गुप्त, नीरज जैन, डॉ राजीव शर्मा “निस्पृह”, संस्था के संरक्षक डॉ राजेंद्र मिलन और आदर्श नंदन गुप्ता, संस्थापक अध्यक्ष निशिराज ने पुस्तक का विमोचन किया। पुस्तक में रूसी भाषा की कविताओं का काव्यानुवाद माधुर्य संस्था की संस्थापक एवं कवयित्री निशिराज ने किया है।

मुख्य अतिथि प्रो वेद प्रकाश त्रिपाठी ने कहा कि दीपक श्रीवास्तव अपने साहित्य से पूरे विश्व में भारतीय संस्कृति का प्रकाश फैला रहे हैं। संस्था की संस्थापक निशिराज ने कहा कि साहित्य सृजन की प्रतिभा सम्पूर्ण व्यक्तित्व के विकास में सहायता करती है। लेखक दीपक श्रीवास्तव की हर कृति में उनके सधे व्यक्तित्व की झलक है। अपने लेखन से विश्वपटल पर प्रसिद्धि प्राप्त कर चुके कवि दीपक श्रीवास्तव की ये तीसरी साहित्यिक कृति है। उन्होंने बताया कि अंग्रेजी और हिंदी में लिखने के बाद उनकी तीसरी कृति में रशियन भाषा के भाव भी समाहित हैं। पुस्तक में दीपक की प्रेम पर आधारित 30 गजले हैं। वहीं जीवन के हर रिश्ते और राजनीति पर आधारित 15 काव्य रचनाएं भी हैं। दीपक ने कहा कि उनका प्रयास है कि उनकी हर कृति विश्वपटल पर भारतीय संस्कार और संस्कृति की पताका लहरा सके। पुस्तक समीक्षा डॉ राजीव शर्मा निस्पृह ने की।

पुस्तक विमोचन के बाद काव्य की सरस रस धारा प्रवाहित हुई। जिसमें खोल गई चुपके से दरवाजे बंद सभी…. प्रो वेद प्रकाश त्रिपाठी, जरूरी नहीं आदमी का अमीर होना, जरूरी है आदमी का जमीर होना… डॉ.सुषमा सिंह, पी लिया हमने हलाहल कुछ असर तो आएगा, तेरी दिलकश सी अदा में जिक्र मेरा आएगा… डॉ.शशि गुप्ता, यूं ही नहीं हर मंजिल कदमों तले बिछ जाती है, जो रोशनी दे उस दीए की देह तक जल जाती है…निशिराज, जिंदगी के हर गम को मैंने खुशी से पिया है, जिंदगी को पल पल मैंने दुआ में जिया है…. पद्मावती बघेल, कभी नहीं पड़ने दी हम पर, दुःख की काली छाया, दुःख आए तो खुद रो ली पर, हमको नहीं रुलाया, उस मां के उपकार हैं अनगिन, जिसने मुझको जाया… विनय बंसल, काहे मुरली अधर धरी है, मोहे माखन तेरो नाय खानो… राजीव शर्मा निस्पृह, कभी सादगी में पूरी कभी सोलह सिंगार में, रह – रह के देखता था तुझे लाखों बार मैं… प्रकाश गुप्ता बेबाक, आइना क्यूं यूं आज छले जा रहा है शोखियों पर मेरी हाथ मले जा रहा है.. सुधा वर्मा, मैंने तुझे पाला था … अशोक अश्रु, पियर्जन गए… रामा वर्मा, भारत माता मां सबकी है… डॉ हरवीर सिंह परमार आदि ने अपनी रचनाएं प्रस्तुत कीं।

इस अवसर पर संजय गुप्त, रमा रश्मि, यशोधरा यशो, गिरीराज किशोर गुप्त, डॉ परमानंद शर्मा, रेखा शर्मा आदि उपस्थित रहे।

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