आगरा। करवाचौथ पर्व को लेकर महिलाएं काफी उत्साहित रहती हैं। इस व्रत की मान्यता है कि महिलाएं इस व्रत को निर्जला रखती है तो उनके पति की लंबी उम्र होगी लेकिन आगरा जिले के कुछ गांव की कहानी बिल्कुल विपरीत नजर आती है। यहाँ की महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र के लिए इस व्रत को रखती है लेकिन इस व्रत के रखने के बावजूद उनकी मांग का सिंदूर समय से पहले उजड़ जाता है। जिन गांव की बात हम कर रहे है वो जगनेर ब्लॉक के अंतर्गत आते है। इन गांव में पत्थर खदान का काम बहुतायत में होता है। इन पत्थर खदानों में काम करने के कारण ही यहाँ के पुरुषों की मौत समय से पहले हो जाती है।
ब्लॉक जगनेर के दो दर्जन से अधिक गांव (बसई जगनेर,नयागांव, तांतपुर व अन्य) ऐसे है जहाँ सिर्फ खदान के पत्थर खुदाई का ही काम होता है। क्योकि यहाँ के गरीब परिवारों को सिर्फ पत्थर की कारीगरी में ही महारथ हासिल है। ज्यादातर परिवार के लोगों को काम नही मिलता तो अन्य गांव में पत्थर का काम करने चले जाते है। पत्थर खदान के काम करने के कारण यहाँ के अधिकतर ग्रामीण सिलोकोसिस की बीमारी से ग्रसित हो जाते है। जानकारी के अभाव में ग्रामीण इस बीमारी का इलाज नही करा पाते और उनकी मृत्यु हो जाती है।
समाजसेवी तुलाराम शर्मा ने बताया कि कुछ दिन पहले ही उन्होंने इस गांव का दौरा किया था और गांव की स्थिति को देखकर वह भी सहम गए। इन गांव में ऐसा कोई घर नही है जिसमें एक विधवा महिला न हो। करवाचौथ पर्व आते ही भले ही कुछ घरों में इस पर्व की रौनक होती हो लेकिन अधिकतर घरों की महिलाएं अपने भाग्य को कोसती नजर आती है। सिलोकोसिस नाम की बीमारी इन गांव में एक वायरल की तरह फैली है जिसका हर एक व्यक्ति जो पत्थर खदान में काम करता है वो इसकी चपेट में है।
घर के बाहर बैठी एक महिला ने बताया कि 35 वर्ष की उम्र में ही उसके पति की मौत हो गयी। पति पत्थर खदान का काम करते थे। एक दिन उनकी तबियत बिगड़ी। उन्हें डॉक्टरों ने टीबी बताई। कई महीनों तक इलाज चला और उनकी मृत्यु हो गई। वहीं पास बैठी दूसरी महिला ने बताया कि हर घर की यही कहानी है। पति पत्थर खदान का काम करता था। उनको डॉक्टर ने टीबी की बीमारी बताई थी लंबे इलाज के बाद उनकी मृत्यु हो गई। आज यहाँ की महिलाये अपने बच्चों को काम करने के लिए शहर भेज देती है लेकिन पत्थर खदान में काम नही करने देती। पत्थर खदान में काम करने के कारण वो अपने पति को खो दिया लेकिन अब बेटों को नही खोना चाहती।
उत्तर प्रदेश ग्रामीण मजदूर संगठन के अध्यक्ष तुलाराम शर्मा से वार्ता की गई और पूछा गया कि आखिरकार इन गांव में मौत की दहशत क्यों है। टीबी की बीमारी से लोग मर रहे जबकि उसका तो उचित इलाज भी हैं, या कुछ और ही कारण है तो उत्तर प्रदेश ग्रामीण मजदूर संगठन के अध्यक्ष तुलाराम शर्मा ने बताया कि दरअसल पत्थर खदान में काम करने वाले इन श्रमिकों को सिलोकोसिस नाम की बीमारी होती है। टूटे पत्थरों की धूल और धक्कड़ की वजह से सिलिकोसिस बीमारी होती है। धूल सांस के साथ फेफड़ों तक जाती है और धीरे-धीरे यह बीमारी अपने पांव जमाती है। यह खासकर पत्थर के खनन, रेत-बालू के खनन, पत्थर तोड़ने के क्रेशर में कार्य करने वाले श्रमिकों को होती है। इस बीमारी के कारण व्यक्ति को खांसी बहुत हो जाती है तो लोग उसे टीबी समझने लगते है गांव में बेहतर चिकित्सक नही होते और वो टीबी समझ कर इलाज करते रहते है और एक दिन उस व्यक्ति की मौत हो जाती है।
उत्तर प्रदेश ग्रामीण मजदूर संगठन के अध्यक्ष तुलाराम शर्मा ने बताया कि राजस्थान में सिलोकोसिस बोर्ड बना हुआ है। उत्तर प्रदेश में इस बोर्ड के लिए मांग की जा रही है। सरकार से मांग ये भी की गई है कि तांतपुर में इन श्रमिकों के लिए अस्पताल बनाया जाए। इस मांग को लेकर लंबे समय से संघर्ष कर रहे हैं, लेकिन आज तक को सुनवाई नहीं हुई। इसको लेकर जल्द ही एक बड़ा आंदोलन चलाया जाएगा जिससे पत्थर खदान मजदूरों की समस्या को गंभीरता से लें और ताजपुर क्षेत्र में एक बड़ा मल्टी स्पेशलिस्ट सरकारी हॉस्पिटल बनाया जाए जिससे पत्थर खदान में काम करने वाले मजदूरों का बेहतर इलाज हो सके।