Agra. बाल यौन शोषण के खिलाफ दस साल पहले बना कानून बेटियों के लिए कुछ हद तक वरदान साबित हुआ है। पहले बच्चों के लिए अलग से कानून न होने की स्थिति में बच्चों के प्रति हो रहे यौन अपराधों पर प्रभावी कार्यवाई नहीं हो पाती थी, जिसका लाभ अपराधियों को मिल जाता था लेकिन पॉक्सो कानून आने के बाद यौन शोषण की शिकार नाबालिग बेटियों को इंसाफ मिल रहा है और अपराधियों को सजा भी मिल रही है। सरकार ने भले ही पॉक्सो कानून लाकर नाबालिग बच्चियों को सुरक्षित बनाने की कवायद की हो लेकिन इस कानून के आने के बाद भी यौन शोषण के मामले नहीं थम रहे हैं।
प्रतिदिन चार बालिका यौन शोषण की शिकार
आगरा के चाइल्ड राइट्स एक्टिविस्ट नरेश पारस द्वारा दायर की गई आरटीआई के तहत मिली जानकारी से खुलासा हुआ कि उत्तर प्रदेश के 48 जिलों में विगत सात वर्षों में 11902 मामले पॉक्सो के तहत दर्ज किए गए। आंकड़ों का विश्लेषण करने पर ज्ञात होता है कि हर रोज चार से अधिक लड़कियां यौन शोषण की शिकार होती हैं। प्रदेश के पूरे 75 जिलों ने डाटा नहीं भेजा है। यदि सभी जिलों से जानकारी मिल जाती तो ये आंकड़ा और बढ़ सकता है।
इन जिलों में पॉक्सो के सर्वाधिक मामले
ये हैं पांच शीर्ष जिले
लखनऊ – 800
पीलीभीत – 750
सिद्धार्थनगर – 607
बिजनौर – 589
महाराजगंज – 489
पॉक्सों के दस साल
चाइल्ड राइट्स एक्टिविस्ट नरेश पारस ने बताया कि पहले बच्चों के यौन शोषण की रिपोर्ट करने के लिए अलग से कोई कड़ा कानून नहीं था जिसके चलते बच्चों को न्याय नहीं मिल पाता था। पॉक्सो कानून नवम्बर 2012 में लागू हुआ था। बच्चों को यौन अपराधों, शोषण, अश्लील सामग्री से सुरक्षा और हितों की सुरक्षा करने के लिए यह कानून लाया गया। नाबालिग बच्चे के यौन उत्पीड़न की जानकारी होने के बावजूद उसके खिलाफ यौन उत्पीड़न की रिपोर्ट न करना एक गंभीर अपराध है और अपराधियों को बचाने का प्रयास भी है।