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सम्मेद शिखर को पर्यटन स्थल घोषित करने पर झारखंड सरकार के ख़िलाफ़ जैन समाज ने निकाला कैंडल मार्च

by admin

Agra. झारखंड स्थित जैन तीर्थक्षेत्र सम्मेद शिखर को पर्यटन क्षेत्र घोषित किए जाने को लेकर जैन समाज ने विरोध शुरू कर दिया है। झारखंड सरकार के इस फैसले और जैन समाज की तपोभूमि को बचाने के लिए के जैन समाज सड़कों पर उतर आया है।

रविवार शाम को सैकड़ों की संख्या में जैन समाज के लोग छीपीटोला स्थित जैन मंदिर पर एकत्रित हुए। फिर हाथों में मोमबत्ती लेकर झारखंड सरकार के इस फैसले के विरोध में कैंडल मार्च निकाला। यह कैंडल मार्च छीपीटोला स्थित जैन मंदिर से शुरू हुआ जो छीपीटोला चौराहे होते हुए सांई की तकिया चौराहे पर पहुँचा। फिर धौलपुर हाउस तिराहे स्टेट बैंक होते हुए छीपीटोला और फिर जैन मंदिर पर जाकर यह कैंडल मार्च समाप्त हुआ।

कैंडल मार्च में पुरूष, महिला, किशोर किशोरी और छोटे छोटे बच्चे भी शामिल हुए। हाथों में कैंडल लेकर झारखंड सरकार का विरोध करते हुए सिर्फ सम्मेद शिखर को बचाने के नारे लगा रहे थे। जैन समाज के लोगों का कहना है कि सम्मेद शिखर जैन मुनियों की तपोभूमि है। इस तपोभूमि को पर्यटन स्थल बनाने से यहाँ पर सभी प्रकार की गतिविधियां होंगी जो तपोभूमि के लिए ठीक नही है। जैन समाज ने दो टूक शब्दों में कहा कि इस तपोभूमि को वह किसी भी कीमत पर घूमने फिरने का स्थान नहीं बनने देंगे।

प्रवीन जैन जैन का कहना था कि सम्मेद शिखर पावन भूमि से 20 तीर्थंकरों ने तपस्या कर मोक्ष प्राप्त किया था। यह भूमि जैन श्रद्धालुओं के लिए अनादि काल से पवित्र रही है। पर्यटन का दर्जा होने से यहां पर मांस, मदिरा, शराब आदि का चलन हो जाएगा और उससे सम्मेद शिखर की पवित्रता नष्ट होगी। इसलिए झारखंड सरकार के इस फैसले का विरोध जैन समाज कर रहा है। उन्होंने कहा कि जैन समाज जान दे देगा लेकिन तपोभूमि को पर्यटन स्थल घोषित नहीं होने देंगे।

शिखर जी जैन धर्म के अनुयायियों के लिए एक महत्वपूर्ण तीर्थ स्थल है। पारसनाथ पर्वत विश्व प्रसिद्ध है। हर साल लाखों जैन श्रद्धालु यहां आते हैं। गिरिडीह स्टेशन से पहाड़ की तलहटी 14 और 18 मील दूर है। पहाड़ की चढ़ाई-उतराई और यात्रा करीब 18 मील की है।

जैन धर्मशास्त्रों के अनुसार, जैन धर्म के 24 में से 20 तीर्थंकरों और अनेक संतों और मुनियों ने यहां से मोक्ष प्राप्त किया था। इसलिए यह ‘सिद्धक्षेत्र’ कहलाता है। जैन धर्म में इसे तीर्थराज अर्थात् ‘तीर्थों का राजा’ भी कहा जाता है। यह तीर्थ भारत के गिरिडीह के मधुबन क्षेत्र में स्थित है। इसे ‘पारसनाथ पर्वत’ के नाम से भी जाना जाता है।

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