आगरा। गुरुद्वारा श्री मिट्ठा खूह साहिब, महर्षिपुरम, सिकंदरा पर समूह गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी एवं रामगढ़िया एसोसिएशन आगरा के तत्वावधान में महान सिख जनरैल महाराजा जस्सा सिंह रामगढ़िया की 301वी जन्मशताब्दी बड़े सत्कार के साथ मनाई गई। श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी के भव्य दीवान सजे ,संगतों ने मत्था टेका। गुरुद्वारा श्री मिट्ठा खूह साहिब पर विशेष कार्यक्रम का शुभारंभ महावाक्य ‘साबत सूरत दस्तार सिरा’ के अनुसार सिख युवा वर्ग को दस्तार (पगड़ी ) बांधना सिखाने द्वारा किया गया।
प्रातः से सिख नौजवान बच्चो को रामगढ़िया एसोसिएशन के मेंबर्स द्वारा पगड़ी सिखाई गयी और साथ ही एसोसिएशन के प्रधान सरदार बलजिंदर सिंह सग्गु द्वारा दस्तार (पगड़ी) का महत्त्व समझाते हुए बताया की दस्तार (पगड़ी) का सिख धर्म में बहुत महत्व है। यह सिखों के पाँच ककारों में से एक है और इसे गुरु गोविंद सिंह ने 1699 में बैसाखी के दिन अपने खास लोगों को उपहार के रूप में दिया था।
संस्था से अमनप्रीत सिंह ने बताया की पगड़ी सम्मान, स्वाभिमान, साहस और आध्यात्म का प्रतीक है। यह सिखों की पहचान और उनके अस्तित्व का अभिन्न अंग है। गुरु जी के उपदेश का पालन करते हुए एसोसिएशन के मेंबर्स द्वारा सिख युवा वर्ग को पगड़ी उपहार के रूप में प्रदान की गयी। युवा बच्चो व लड़कियो ने दस्तार (दुमाला) सीखने में रुची दिखाई। इसके उपरांत श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी की हजूरी में विशेष कीर्तन दरबार का प्रारम्भ हुआ। जिसमे सिख पंथ के प्रसिद्ध कीर्तनकार भाई हरजोत सिंह हजूरी रागी (गु. श्री मिट्ठा खूह साहिब) और भाई हरप्रीत सिंह, भाई अमनदीप सिंह मधुनगर वालो ने अपनी मधुर वाणी से शब्द कीर्तन का गायन किया।
शब्दः 1, सोभा पावै प्रभ कै द्वार, धन गुरु धन गुरु पिआरे, हरि के नाम की वडिआई का गायन किया और साथ ही सरदार हरविंदर सिंह ऑस्ट्रेलिया वालो ने बताया कि सरदार जस्सा सिंह रामगढ़िया ने अपनी फौज के साथ 11 मार्च 1783 में 30 हजार सिक्खों के साथ दिल्ली पर हमला किया और लाल किले पर निशान साहेब फहराया। इसके बाद जिस तख्त पर बैठकर जालिम मुगल बादशाह ने शहीदों के फतवे जारी किए थे उसको जस्सा सिंह रामगडीया ने नींव समेत उखाड़कर दरबार साहेब, अमृतसर में स्थापित किया, जो कि आज भी परिक्रमा मार्ग में रामगडीया बुंगे में उपस्थित है। सरदार जस्सा सिंह रामगडीया पूर्ण गुर सिक्ख थे। वे अपनी वीरता के साथ साथ अपनी निर्मलता के लिए भी जाने जाते थे। इसकी मिसाल उन्होंने अपना बैठने का स्थान ( रामगढ़िया बुंगे ) को भी गुरु रामदास जी के स्थान से 14 फीट नीचे बनाया। सरदार जस्सा सिंह ने कई जंग लड़ी। महाराजा जस्सा सिंह के राज्य में 360 किले और कोर्ट थे। वह पहले राजा फिर महाराजा बने। इसके बाद महाराजा रंजीत सिंह का शासन आया। कीर्तन के उपरांत ज्ञानी जी द्वारा अरदास हुकमनामा सुन के संगतो ने गुरु घर कि खुशिया प्राप्त की। पूर्ण समाप्ति के उपरांत गुरु का अटूट लंगर बांटा गया।
इस मौके पर बलजिंदर सिंह, हरज्योत सिंह, कमल भोजवानी, अर्जिंदर पाल सिंह, प्रभजोत सिंह, स्वर्ण सिंह, चरनजीत सिंह, जसपाल सिंह , शेर सिंह, गुरचरण सिंह, रघुवीर सिंह, अमनप्रीत सिंह, देवेंद्र सिंह, बल्प्रीत सिंह, गुरमीत सिंह, इंदरजीत सिंह, जस्वीर सिंह, दलजीत सिंह आदि मौजूद रहे।