आगरा। फरवरी 2019 को हुए पुलवामा हमले में आगरा ने भी अपना एक लाल खोया था। कहरई गांव के रहने वाले कौशल कुमार आतंकियों के इस कायराना हमले में शहीद हुए थे। शहादत के बाद सरकार से लेकर प्रशासनिक अधिकारियों की तरफ से बड़ी बड़ी बातें परिवार के लिए हुई, लेकिन वक्त के साथ ही शासन-प्रशासन शहीद के परिवार के प्रति लापरवाह और संवेदनहीन हो गया। ऐसे में हादसे के तकरीबन एक साल पूरा होने जा रहा है। आगरा का कहरई गांव भले ही आज शहीद कौशल कुमार रावत की वजह से जाना जाने लगा हो लेकिन सरकारी उदासीनता और संवेदनहीनता परिवार के ज़ख्म पर भारी है। शहीद की मां सुधा रावत की आंखों से आंसुओं का सैलाब बह निकला। अपने बेटे का देश के प्रति न्यौछावर होने का उनको गर्व था लेकिन सरकारी सिस्टम की संवेदनहीनता और भ्रष्टाचार से मां पूरी तरह निराश दिखीं।

वह अपने बेटे को फोटो को निहारते हुए एक ही बात कह रही थी अब कोई नहीं आता हाल चाल लेने। बात आगे बढ़ी तो घटना के वक्त की गई आर्थिक और अन्य मदद की घोषणा पर भी वो निराश नज़र आई, उनका कहना था कि बहू अधिकारियों के चक्कर लगाकर थक चुकी है लेकिन अभी तक उनके बेटे का शहीद स्मारक बनकर तैयार नहीं हुआ जबकि लगभग एक साल पूरा हो चुका है। सुधा रावत आगे कहती हैं कि जिला प्रशासन ने उन्हें केवल आश्वासन देकर पल्ला झाडा। अभी भी बेटे का शहीद स्मारक सरकारी जमीन पर ना बनकर परिवार की जमीन पर निर्माणाधीन है जबकि सरकारी नियम है कि शहीद स्मारक के लिए सरकार जगह देती है। इसके साथ ही घोषणा के मुताबिक ना गांव के संपर्क मार्ग का नाम शहीद के नाम पर हुआ और ना ही गांव का प्रवेश द्वार। शहीद कौशल कुमार रावत की पत्नी और उनके बच्चे हरियाणा के मानेसर में रहते हैं लेकिन अपने हक की लड़ाई लड़ने के लिए लगातार वो आगरा अपने गांव आती रहती हैं।
कहरई में शहीद के बेटे अभिषेक रावत भी सरकारी सिस्टम से पूरी तरह निराश हैं। शहीद कौशल कुमार के बेटे अभिषेक रावत कहते हैं कि उस समय कई घोषणा हुई थी लेकिन ज्यादातर घोषणा बनकर ही रह गईं। अब स्मारक बनने की शुरुआत ही हुई है जबकि एक साल हो गए कब का बन जाना चाहिए था। हमारे दादा गीताराम रावत भी जनवरी माह में अपने बेटे के गम में चल बसे।
शहीद कौशल कुमार के परिवार की शिकायत पर आर्थिक गबन के आरोप में हाल ही में ज़िला विकास अधिकारी देवेंद्र प्रताप सिंह को मुख्यमंत्री ने निलंबित करने के निर्देश दिए हैं। कुल मिलाकर जिस शहीद ने अपना लहू देश के लिए बहाया उसके परिवार के प्रति प्रशासन की संवेदनहीनता सिस्टम पर कई सवाल खड़े करती है।