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मून ब्रेकिंग असर : करोड़ों का सौदा महज़ लाखों में, फंस सकते हैं आवास विकास के अधिकारी

by admin

आगरा। पिछले दिनों मून ब्रेकिंग की ओर से आवास विकास परिषद के एक भ्रष्टाचार के मामले का खुलासा किया था। यह मामला कमलानगर पॉश कॉलोनी में एमआईजी F 641 भवन से जुड़ा हुआ था। डेढ़ करोड़ की भवन के कीमत के इस भवन को आवास विकास परिषद के अधिकारी गलत तरीके से 70 लाख रुपये में बेचने की तैयारी कर चुके थे लेकिन इस मामले को मून ब्रेकिंग ने गंभीरता से उठाया और इस मामले की गूंज शासन तक गूंजी। इस मामले में शासन ने दोबारा से जांच बैठा दी है। शासन ने मंडलायुक्त आगरा को जांच सौंपी और उन्होंने इस मामले की कार्यवाही के लिए एडीए वीसी आगरा को जांच अधिकारी नियुक्त किया है। सूत्रों के मुताबिक इस मामले को गंभीरता से लेते हुए एडीए वीसी ने एमआईजी F 641 कमलानगर भवन की सभी पत्रावली को आवास विकास परिषद से तलब किया है।

सूत्रों की माने तो परिषद के एक बाबू तुलसीराम इस भवन से जुड़ी हुई सारी पत्रावली लेकर आवास विकास प्राधिकरण पहुँचे थे लेकिन उस दौरान एडीए वीसी के बाहर होने की वजह से मुलाकात नही हो सकी। सूत्रों की माने तो भ्रष्टाचार के इस मामले में बड़े बड़े अधिकारियों की गर्दन फंसी हुई है इसलिए एडीए से भी इस मामले को मैनेज करने की शुरुआत हो चुकी है। मैनेज करने के मामले में विभाग के ही एक अधिकारी का नाम सामने आ रहा है जो अपने प्रभाव से इस मामले को मैनेज कर रहा है।

आपको बताते चले कि इस भवन से संबंधित एफिडेविट तत्कालीन संयुक्त आवास आयुक्त रेनू तिवारी ने हाई कोर्ट में दिया है जिसमे इस भवन की कीमत डेढ़ करोड़ रुपए और इस भवन पर कोई विवाद न होना दर्शाया गया है। आवास विकास परिषद के अधिकारी द्वारा इस भवन को हलेश कुमार नाम के व्यक्ति को बेचा जा रहा है।

बड़ी बात यह है कि यह पूरा मामला सर्वोच्च न्यायालय में है। अधिकारियों के सताए एक पीड़ित ने इस मामले में सर्वोच्च न्यायालय में अपील की है जिस पर सुनवाई चल रही है लेकिन भ्रष्ट अधिकारी अपनी गर्दन बचाने के लिए सर्वोच्च न्यायालय में विचाराधीन मामले को दरकिनार करते हुए अपनी तानाशाही दिखा रहे हैं।

बताया जाता है कि इस भवन से संबंधित भ्रष्टाचार का यह खेल आवास विकास परिषद में 1998 से चल रहा है। संजीव सिसौदिया नाम के व्यक्ति को तत्कालीन कमिश्नर रविशंकर ने विनिमय अधिनियम 48 की पावर का इस्तेमाल करते हुए इस भवन को अलॉट किया था लेकिन कुछ दिनों बाद पुष्पा देवी जिनका विवाद आवास विकास से भूमि अर्जन मामले में चल रहा था, उस विवाद में कोर्ट ने आवास विकास पर ₹41000 की रिकवरी निकाली थी। आवास विकास ने पुष्पा देवी की जमीन को अधिग्रहण किया था लेकिन भुगतान नहीं किया था। इस मामले से बचने के लिए तत्कालीन आवाज विकास के सहायक अभियंता सत्येंद्र कुमार ने कोर्ट में एफ 641 mig कमला नगर को खाली बताकर और कोई विवाद ना होने का हवाला देकर कोर्ट से अटैच करा दिया। इस पूरे खेल में संलिप्त आवास विकास परिषद के अधिकारियों ने सांठगांठ करते हुए इस भवन की पावर ऑफ अटॉर्नी हलेश कुमार के नाम कर दी।

पीड़ित सिसोदिया ने इस मामले की शिकायत तत्कालीन सुपरिटेंडेंट इंजीनियर हरि गोपाल से की थी। उन्होंने अपनी जांच कराई और सहायक अभियंता को दोषी पाया। उन्होंने इस मामले में जिला जज के यहां अपील की और अटैच हुए भवन की नीलामी को गलत बताते हुए उसे निरस्त कराकर स्टे ले लिया। इतना ही नहीं तत्कालीन सुपरिटेंडेंट इंजीनियर हरि गोपाल ने दोषी सहायक अभियंता की एसीआर लिखी और उसमें लिखा कि सहायक अभियंता सत्येंद्र कुमार भू माफिया है और उसे दोबारा आगरा में तैनाती ना दी जाए।

आवास विकास परिषद इस मामले को लेकर हाईकोर्ट पहुंचा। हाईकोर्ट में पीड़ित ने भी अपना पक्ष रखा। 15 मार्च 2015 को हाईकोर्ट के जज ने पूछा कि इस मकान को आवास विकास परिषद के अधिकारियों ने कैसे अटैच कर दिया और इससे संबंधित अधिकारियों पर कार्रवाई करने के भी निर्देश दिए, साथ ही तत्कालीन कमिश्नर को भी तलब किया गया था। हाईकोर्ट के आदेश के बाद भी इस पूरे मामले को ठंडे बस्ते में डाल दिया गया और हाल ही में संयुक्त आवास आयुक्त रेनू तिवारी ने हाईकोर्ट में एफिडेविट दिया कि इस भवन पर कोई विवाद नहीं है और इस भवन की कीमत डेढ़ करोड़ रुपए है।

अब सवाल यह भी उठता है कि जब आवास विकास परिषद की संयुक्त आयुक्त रेनू तिवारी जब एफिडेविट देकर इस भवन की कीमत डेढ़ करोड़ बता रही है तो फिर अधिकारी से 70 लाख में कैसे बेच सकते हैं। इस पूरे मामले को लेकर पीड़ित संजीव सिसोदिया ने हार नहीं मानी। पीड़ित ने 9 अक्टूबर 2019 की बोर्ड की हुई बैठक में भी इस मामले को रखा लेकिन फिर भी कोई उचित कार्यवाही नहीं हुई बल्कि इस पूरे मामले में अधिकारियों द्वारा एफिडेविट दिखाकर रजिस्ट्री का प्रावधान किया जा रहा है।

पीड़ित संजीव सिसोदिया ने बताया कि शासन ने इस पूरे मामले की जांच एक बार फिर शुरू करा दी है। मंडलायुक्त के निर्देश पर एडीए वीसी खुद इस मामले की जांच करेंगे। नए सिरे से मामले की जांच होने से पीड़ित खुश है लेकिन इस मामले में उच्च अधिकारियों की गर्दन फंसना और इतने सालों तक मामले का अटकना उनकी चिंता का विषय बना हुआ है कि इस जांच के बाद क्या उन्हें इंसाफ मिलेगा।

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