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28 साल बाद भी जल त्रासदी के पीड़ितों को नहीं मिला न्याय, तत्कालीन राज्यपाल के आदेश को टांगा खूंटी पर

by admin
Even after 28 years, the victims of the water tragedy did not get justice, hanging the order of the then governor on the peg

Agra. पिछले 28 सालों से उत्तर प्रदेश खटीक समाज के प्रदेश अध्यक्ष व कांग्रेस के वरिष्ठ नेता तजेंद्र राजोरा जल त्रासदी में मारे गए लोगों को इंसाफ दिलाने के लिए लड़ाई लड़ रहे हैं। इस लड़ाई को लड़ते हुए उनकी उम्र भी अब लगभग 58 साल की हो गयी है लेकिन सरकारी व्यवस्था के चलते आज तक जल त्रासदी में मारे गए लोगों को इंसाफ नही मिल पाया है। इन 28 सालों में प्रदेश में कई दलों की सरकार रही और चली भी गई लेकिन जल त्रासदी के कारणों को जानने व दोषियों तक पहुँचने के लिए शुरू हुई जांच आज तक पूरी नहीं हो पाई है। तजेंद्र राजौरा ने मृतकों को इंसाफ दिलाने उनके परिवार के एक सदस्य को सरकारी नौकरी दिए जाने के किये वायदे को पूरा कराने के लिए प्रदेश के मुख्यमंत्री, राज्यपाल, प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति से भी गुहार लगा चुके हैं लेकिन नतीजा ढाक के तीन पात ही है। तजेंद्र राजौरा आज भी सोचते हैं कि ऐसी कौन सी जांच एजेंसी इस घटना की जांच कर रही है जिसकी जांच आज तक पूरी नहीं हुई और उसकी रिपोर्ट तक नहीं बनी।

21 मई 1993 को हुई थी जल त्रासदी:-

उत्तर प्रदेश खटीक समाज के प्रदेश अध्यक्ष तजेंद्र राजौरा ने बताया कि 21 अप्रैल 1993 की तारीख भले ही आगरा के इतिहास में दर्ज न हो लेकिन आगरा के लिए काला दिन जरूर था। आंखों के आगे मौत का वो भयानक मंजर आज भी झकझोर के रख देता है। इसी दिन जल संस्थान के जहरीले पानी पीने से खटीक पाड़ा और आसपास के सैकड़ों लोगों की तबियत बिगड़ गयी। कुछ लोग अस्पताल पहुँच गए उनकी जान बच गयी लेकिन कुछ लोगों को तो अस्पताल पहुँचने का मौका ही नहीं मिला और देखते ही देखते उनके सामने कई लोगों में दम तोड़ दिया। अचानक से लोगों की तबियत खराब होने का कारण पूछा तो पानी पीने के बाद तबियत बिगड़ने की बात सामने आई। यह नजारा केवल खटीक पाड़े में ही नहीं था बल्कि आसपास के इलाकों में भी यही स्थिति बनी हुई थी और लोगों को समझने में देर नहीं लगी कि इन मौतों का कारण जल संस्थान है।

Even after 28 years, the victims of the water tragedy did not get justice, hanging the order of the then governor on the peg

ऑन रिकॉर्ड 21 लोगों की गई जान, उठी एक साथ अर्थी-

तजेंद्र राजौरा ने बताया कि जल संस्थान की संजय पैलेस टंकी से पेयजल आपूर्ति होने के तुरंत बाद जिन जिन लोगों ने पानी पिया उनकी तबियत बिगड़ गयी। जहरीला पानी पीने से 21 लोगों की जान चली गयी। एक साथ कई घरों के चिराग बुझ जाने से चारों ओर मातम छा गया। चारों ओर चीखपुकार मचने लगी। एक साथ कई घरों के बाहर रखी हुई अर्थियों को देख ऐसा लगा कि जैसे यह जीवित लोगों का मोहल्ला नहीं बल्कि शमशान घाट है। एक साथ जली 21 चिताओं का मंजर भुलाए नहीं भूलता है।

तत्कालीन राज्यपाल ने किया था दौरा, मृतकों के परिजनों को नौकरी का दिया था आश्वासन –

तजेंद्र राजौरा बताते है कि जब आगरा में जल त्रासदी हुई थी, उस समय राष्ट्रपति शासन लगा हुआ था। इस घटना की सूचना पर तत्कालीन प्रदेश के राज्यपाल मोतीलाल वोहरा पीड़ित परिवारों से मिलने के लिए आगरा आये थे। उन्होंने मृतकों के परिजनों से मुलाकात की और आर्थिक सहायता। मृतक के एक परिजन को सरकारी नौकरी और इस घटना की निष्पक्ष जांच का आश्वासन दिया था। मृतकों के परिजनों को आर्थिक स
सहायता तो मिली लेकिन आज तक जल त्रासदी में जान गंवाने वाले के परिजन को नौकरी नहीं मिली और न ही इस घटना की जांच आज तक पूरी हो पाई है।

आरटीआई में मिला यह जवाब-

तजेंद्र राजौरा कहते है कि इस घटना के लगभग 14 साल बाद उन्होंने एक आरटीआई डाली और जांच की प्रगति व मृतकों के परिजनों को नौकरी की की स्थिति जाननी चाही तो आरटीआई के जवाब बड़ा ही हास्यास्पद आया। जवाब मिला कि मृतकों के परिजनों को नौकरी दिए जाने से संबंधित कोई शासनादेश नहीं है।

उत्तर प्रदेश खटीक समाज के प्रदेश अध्यक्ष तजेंद्र राजौरा का कहना है कि वे हर साल जल त्रासदी की बरसी पर धरना देकर प्रशासन और सरकार को इस घटना की याद दिलाते हैं और मृतकों के लिए इंसाफ की गुहार लगाते है। पिछले 28 सालों से निरंतर इस कार्य को कर रहे है। घटना की जांच की कार्यवाही पूरी करने के लिए ज्ञापन भी देते है लेकिन नतीजा ढाक के तीन पात ही है। आज तक इस घटना की जांच पूरी नही हुई है और न ही किसी अधिकारी व कर्मचारी के खिलाफ कार्यवाही हुई।

बड़े अधिकारियों की फंस सकती है गर्दन:-

तजेंद्र राजौरा का कहना है कि इस घटना में कई बड़े अधिकारियों व कर्मचारियों की गर्दन फस सकती है इसलिए इतने हंगामे और दिन बीत जाने के बाद भी प्रशासन जांच पूरी नहीं कर पाया है और न ही इसकी रिपोर्ट बन पाई है। जिसके कारण यह पता ही नहीं लग पाया है कि पानी में क्या था जिससें इतनी बड़ी त्रासदी हुई।

आज भी बूढ़ी आंखों को है इंसाफ की दरकार –

जल त्रासदी को आज लगभग 28 साल बीत गए है। कुछ परिवार तो ऐसे है जिन्होंने अपने बेटों को खो दिया है। आज वो वृद्ध अवस्था में पहुँच गए है। ऐसे ही एक इस हादसे के पीड़ित परिवार से मुलाकात हुई। जिन्होंने आंखों के सामने घटे मौत के मंजर को बयां किया। इस त्रासदी की बात करते ही उनकी आंखें भर आईं। एक तरफ वो इस घटना के जिम्मेदारों को कोस रहे थे तो दूसरी ओर कहने लगे कि आज भी इन बूढ़ी आंखों को इंसाफ की दरकार है और उनके कान बस एक बात सुनना चाहते है कि इस त्रासदी के दोषियों को सजा हुई है।

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