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यमुना किनारा रोड़ पर चल रही खुदाई के दौरान जमीं में दबे पुराने घाट के मिले अवशेष

by admin
During the ongoing excavation on Yamuna Kinara Road, the remains of the old ghat buried in the ground

आगरा। यमुना किनारा रोड पर गंगाजल की पाइपलाइन बिछाने के लिए खोदाई करने पर जमीं में दबे पुराने घाट के अवशेष निकले हैं। लाल बलुई पत्थरों (रेड सैंड स्टोन) से बने घाट और बुर्जी के अवशेषों को स्थापत्य कला की दृष्टि से उत्तर मुगल काल का माना जा रहा है जो पूर्व में यमुना किनारे पर घाट बने हुए थे। यमुना किनारा रोड के चौड़ीकरण और पार्क बनाए जाने से वो जमीं में दफन हो गए थे।

आगरा स्मार्ट सिटी लिमिटेड द्वारा जीवनी मंडी चौराहा से ताजगंज तक यमुना किनारा रोड पर गंगाजल की आपूर्ति काे पाइपलाइन बिछाई जा रही है। शुक्रवार रात आंबेडकर पुल के नजदीक स्थित यमुना आरती स्थल के सामने जेसीबी से पाइपलाइन बिछाने को खोदाई की जा रही थी। खोदाई के दौरान प्राचीन घाट के अवशेष निकल आए। लोगों को इसकी जानकारी हुई तो वो प्राचीन घाट के अवशेष देखने पहुंच गए।

रिवर कनेक्ट कैंपेन से जुड़े डा. देवाशीष भट्टाचार्य ने बताया कि सड़क की लेयर के नीचे यमुना किनारे बने बुर्ज व घाट के अवशेष नजर आ रहे हैं। करीब पांच दशक पूर्व तक यमुना किनारे पर घाट अस्तित्व में थे। यह धार्मिक कार्यों, स्नान आदि के साथ ही व्यापार के लिए भी उपयोगी थे। मुगल काल में सड़क की अपेक्षा जल मार्ग से अधिक व्यापार होता था। दिल्ली से प्रयागराज तक यमुना में बड़ी-बड़ी नावें चला करती थीं। हाथीघाट के पास नावें रुका करती थीं।

During the ongoing excavation on Yamuna Kinara Road, the remains of the old ghat buried in the ground

इमरजेंसी के समय हुआ था सड़क का चौड़ीकरण

इतिहासविद् राजकिशोर राजे ने बताया कि संजय गांधी ने आगरा में एमजी रोड और यमुना किनारा रोड का चौड़ीकरण इमरजेंसी के समय (वर्ष 1975-77 में) कराया था। यमुना किनारे बने पुराने घाट तब सड़क के नीचे दब गए थे।

उत्तर-मुगल काल का प्रतीत हो रहा निर्माण

एएसआइ के आगरा सर्किल के अधीक्षण पुरातत्वविद् डा. वसंत कुमार स्वर्णकार ने बताया कि सड़क की खोदाई में जो पुराने अवशेष निकलकर सामने आए हैं, वो स्थापत्य कला की दृष्टि से उतर मुगल काल (17वीं-18वीं शताब्दी) के प्रतीत हो रहे हैं। यमुना के तट पर छोटे बुर्ज के अवशेष नजर आ रहे हैं। यह लोगों के बैठने या आराम करने की जगह रही होगी।

यमुना किनारे बने थे घाट

रिवर कनेक्ट कैंपेन के संयोजक ब्रज खंडेलवाल ने बताया कि करीब पांच दशक पूर्व तक यमुना के किनारे पर घाट बने हुए थे, जहां लोग स्नान किया करते थे। बचपन में वो स्वयं यहां कछुओं को दाना डालने जाया करते थे। इमरजेंसी के समय घाटों के ऊपर सड़क बना दी गई थी। यमुना किनारे रिवर बेड में पार्क भी तभी बनाए गए थे।

मुगल काल में थीं हवेलियां और उद्यान

आस्ट्रियाई इतिहासकार ईबा कोच ने अपनी किताब ‘द ताजमहल एंड दि रिवरफ्रंट गार्डन्स आफ आगरा’ में यमुना के दोनों किनारों पर बने 45 मुगल उद्यानों, मकबरों व हवेलियों का उल्लेख किया है। इनमें से यमुना के बायें तट पर वर्तमान में बाग-ए-नूर-अफशां (रामबाग), चीनी का रोजा, एत्माद्दौला, मेहताब बाग ही अस्तित्व में हैं, जबकि दायें तट पर हवेली खान-ए-दुर्रां, ताजमहल, बाग खान-ए-आलम, आगरा किला, दाराशिकोह की हवेली और जसवंत सिंह की छतरी ही हैं। अन्य उद्यानों व हवेलियों का नामोनिशान मिट चुका है।

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