आगरा। भले ही हम 21वीं सदी में जी रहे हैं। छोटे-छोटे बच्चे आज कंप्यूटर और लैपटॉप से खेल रहे हो लेकिन इसके बावजूद भी ब्रज की प्राचीन परंपरा और त्यौहारों से बच्चे अछूते नहीं हैं। ब्रज की एक ऐसी अनोखी प्राचीन परंपरा है जो ब्रज की संस्कृति का अहम हिस्सा है और इस परंपरा को निभाते हुए इस पर्व को भी लोग बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाते हैं। यह पर्व टेसू-झांझी का है जिसकी शुरुआत विजयदशमी पर्व के साथ ही ब्रज के गांवों में हो जाती है।
इस पर्व को लेकर ब्रज के बाजार भी खूब सज गए है। मिट्टी के बर्तन बेचने वालों की दुकान पर इस समय टेसू-झांझी खूब नजर आ रहे है और लोग भी टेसू-झांझी की खूब खरीददारी कर रहे है। इस पर्व का समापन शरद पूर्णिमा के दिन होता है।
आगरा शहर के साथ साथ ग्रामीण क्षेत्रों में भी इस पर्व की धूम देखने को मिलती है। छोटे छोटे बच्चे रात के समय गलियों में टेसू को लेकर घूमते है और लोगो के घरों पर पहुँच टेसू रे टेसू घंटा बजाइयो और टेसू मेरा यही खड़ा खाने को मांगे दही बड़ा, दही बड़े में बन्नी, लाओ सेठ अठन्नी जैसे जैसे गीतों को गाते है और बदले में लोग उन्हें पैसे देते है।
विजयदशमी से शुरू होने वाला यह पर शरद पूर्णिमा को जाकर समाप्त होता है। उस दिन टेसू के साथ झांझी की शादी कराते है और फिर उन्हें सर पर रखकर गोल गोल घूमने के बाद फोड़ दिया जाता है।
बताया जाता है कि यह लोक परंपरा महाभारत काल से जुड़ी है। भीम के बेटे घटोत्कच के पुत्र बर्बरीक को महाभारत में सेना का विनाश करते देख श्रीकृष्ण ने सुदर्शन चक्र से उनका सिर काटकर पहाड़ी पर एक पेड़ रख दिया था। युद्ध के बाद बर्बरीक की इच्छा पूरी करने के लिए शरद पूर्णिमा को विवाह निश्चित किया। तभी से यह लोक परंपरा चली आ रही है।