74 साल की उम्र में, सूज़ी – एक मादा हथिनी – वाइल्डलाइफ एसओएस की देखरेख में रह रही देश की सबसे उम्रदराज हथनियों में से एक है। सूज़ी की आज़ादी की यात्रा और उसकी देखभाल करने वाले बाबूराम के साथ उसके विशेष प्यार के बंधन को उजागर करने के लिए, वाइल्डलाइफ एसओएस ने मथुरा स्थित हाथी संरक्षण और देखभाल केंद्र में उनके इस अटूट भाव पर ‘माई स्वीट पारो’ नामक एक डाक्यूमेंट्री फिल्म का निर्माण किया है।
‘माई स्वीट पारो’ वाइल्डलाइफ एसओएस की एक दिल छू लेने वाली डॉक्यूमेंट्री के माध्यम से एक भावनात्मक यात्रा को दर्शाता है। फिल्म एक समर्पित देखभालकर्ता बाबूराम और 74 वर्षीय सूजी, एक अंधी हथिनी, जिसे वह प्यार से ‘पारो’ बुलाते हैं, उन दोनों के बीच के प्यार भरे रिश्ते को संवेदनशील ढंग से चित्रित करती है।
एक देखभालकर्ता के रूप में 50 से अधिक वर्षों तक काम करने के बाद, बाबूराम इस वृद्ध नेत्रहीन हथिनी के जीवन के बारे में जानकारी प्रदान करते हैं, जिसे 2015 में आंध्र प्रदेश के एक सर्कस से बचाया गया था। हथिनी ने इस साल वाइल्डलाइफ एसओएस के साथ अपनी स्वतंत्रता के नौ साल पूरे कर लिए हैं, लेकिन साथ ही इस समय वह बाबूराम के साथ नौ वर्षों के लंबे सहयोग को भी मानती है।
दोनों के शांतिपूर्ण और करुणा से भरे जीवन को केंद्र के वातावरण में महसूस किया जा सकता है, जो पिछले नौ वर्षों से उनके इस अटूट बंधन के दृश्यों को एकत्रित करने का परिणाम है। यह फिल्म, सूज़ी के लिए बाबूराम की देखभाल, उनकी भावुक अपील के साथ मिलकर, हमें हाथियों के प्रति प्यार के लिए अपनी उल्लेखनीय क्षमता को अपनाकर मानवता की खामियों को दूर करना सिखाती है।
वाइल्डलाइफ एसओएस के सह-संस्थापक और सीईओ, कार्तिक सत्यनारायण ने कहा, “यह फिल्म धरती पर चलने वाले सबसे बड़े जानवर, हाथी की आत्मा का एक उल्लेखनीय चित्र है। यह मार्मिक ढंग से दर्शाता है कि एक शारीरक और मानसिक ढंग से टूटे हुए जानवर को ठीक करने और अंततः उससे दोस्ती बनाने और करुणाभाव कितनी दूर तक उनको साथ ले जा सकती है।
वाइल्डलाइफ एसओएस की सह-संस्थापक और सचिव, गीता शेषमणि ने कहा, “सूज़ी और बाबूराम का लगाव एक ऐसी कहानी है जो हर उम्र के लोगों के दिलों को छू जाएगी। यह खूबसूरती से दर्शाती है कि कैसे उनका जुड़ाव एक जानवर और इंसान के बीच सभी सीमाओं को पार कर एक अटूट बंधन, प्रेम, और करुणाभाव की उत्तपत्ति करती है।