आगरा। 1मई को विश्व भर में मजदूर संगठन व सरकार इसे मजदूर दिवस के रूप में मनाती है। मजदूर दिवस मनाए जाने के पीछे का उद्देश्य हर मजदूर को काम और सामाजिक सुरक्षा का अधिकार देना है लेकिन आज लाखों मजदूर काम धंधे बंद होने के कारण अपने अपने घरों को लौटने के लिए मजबूर हैं। उत्तर प्रदेश ग्रामीण मजदूर संगठन के अध्यक्ष तुलाराम शर्मा का कहना है कि इस बार का मजदूर दिवस भी इतिहास के पन्नों में काले अक्षरों से दर्ज होगा जब देश के साथ साथ विश्व के करोड़ो मजदूर कोरोना संक्रमण के कारण बेरोजगार होकर घर बैठे हुए हैं।
वर्तमान में मजदूरों की दयनीय स्थिति किसी से छिपी नहीं है। मजदूर पूरे दिन कठिन परिश्रम करता है तब जाकर उसे दो जून की रोटी प्राप्त होती है लेकिन पिछले कई वर्षों से व्यापार और व्यवसाय की जो स्थिति बिगड़ी है उससे मजदूर की क्या स्थिति बनी है यह किसी से छिपी नहीं है। पहले नोटबन्दी फिर जीएसटी जैसे विभिन्न कानून और आज कोरोना संक्रमण के कारण हुए लॉक डाउन के हालातों ने मजदूरों को एक बार फिर भुखमरी के कगार पर लाकर खड़ा कर दिया है। आगरा में विभिन्न उद्योग व असंगठित क्षेत्र से जुड़े लगभग 10 लाख श्रमिक होंगे लेकिन सभी की किस्मत इस समय कोरोना संक्रमण के ताले में बंद है।
मजदूर यूनियन इंटक से जुड़े संजय सिंह का कहना है कि लॉकडाउन का दुष्परिणाम तो अभी देखने को ही नहीं मिला है जो लॉक डाउन के बाद देखने को मिलेगा। लॉकडाउन के कारण जिन उद्योग व व्यवसाय की कमर टूटी है वो जल्द ही पटरी पर नही लौटेंगे जिसके कारण बेरोजगारी बढ़ेगी।
उत्तर प्रदेश ग्रामीण मजदूर संगठन के अध्यक्ष तुलाराम शर्मा का कहना है कि नोटबन्दी के बाद से लेकर लॉकडाउन के आज तक के सफर में अगर कोई सबसे ज्यादा प्रभावित हुआ है तो वो देहाड़ी और असंगठित क्षेत्र का मजदूर वर्ग है। नोटबन्दी के दुष्प्रभाव से यह मजदूर वर्ग जैसे तैसे संभल पाया था कि लॉकडाउन ने असंगठित क्षेत्र मजदूर वर्ग को फिर उसी मोड़ पर लाकर खड़ा कर दिया है। असंगठित क्षेत्र का अधिकतर मजदूर निर्माण भवन और ईट भट्टों पर काम करता है लेकिन आज सभी ईट भट्टे और निर्माण कार्य बंद हो गए है।
उत्तर प्रदेश ग्रामीण मजदूर संगठन के अध्यक्ष तुलाराम शर्मा ने बताया कि आज हर मजदूर को भविष्य की चिंता सता रही है। क्योंकि कुछ जमा पूंजी जो एकत्रित की थी वो पिछले लगभग 45 दिनों में खर्च हो गयी। अब उनके पास ना जमा पूंजी है और ना ही काम, ऐसे में वह अपने परिवार का भरण पोषण कैसे करेंगे। किसी मजदूर को अपनी बेटी की शादी की चिंता सता रही है तो कुछ मजदूरों को अपने बच्चों के भविष्य की, क्योंकि दिन भर मजदूरी करने के बाद बहुत 400 से ₹500 कमा लिया करते थे लेकिन लॉक डाउन के बाद प्रतिदिन का काम मिलना भी अब बड़ा मुश्किल हो जाएगा।
तुलाराम शर्मा का कहना है कि देश व प्रदेश के विकास में पंख लगाने वाले दिहाड़ी मजदूरों की दशा किसी से छिपी नही है। उनका कहना है कि मजदूरों के नाम पर सरकार द्वारा घोषणा बड़े पैमाने पर की जा रही है किंतु धरातल पर स्थिति अलग – अलग है, जहां उत्तर प्रदेश सरकार ने प्रत्येक पंजीकृत श्रमिकों ₹1000 की राशि स्थानांतरित की जा रही है जोकि स्वागत योग्य परंतु किसी परिवार के लिए ₹1000 की राशि पूरे माह के खर्च के लिए उपयुक्त नहीं है। उत्तर प्रदेश ग्रामीण मजदूर संगठन सरकार से मांग करता है कि प्रत्येक श्रमिकों ₹5000 की राशि स्थानांतरित की जाए साथ ही जिन मजदूरों का पंजीकरण किन्ही कारणों से नवीनीकरण नहीं हुआ है उनको भी इस योजना में शामिल किया जाए। क्योंकि इसी वर्ग पर मंदी की मार अधिक पड़ी है, साथ ही प्रवासी मजदूरों की आवश्यक व्यवस्था के साथ-साथ उनके गृह प्रदेश भेजने के सरकार का कदम प्रशंसा योग्य है किंतु कोरोना महामारी के प्रकोप को देखते हुए आवश्यक एहतियात के साथ मजदूरों को उनके गृह प्रदेश व जिलों में भेजा जाए।