आगरा। असंगठित क्षेत्र के मजदूरों की लगभग 2 दशकों से अधिक समय से लड़ाई लड़ रहे उत्तर प्रदेश ग्रामीण मजदूर संगठन के अध्यक्ष तुलाराम शर्मा को मोदी सरकार के इस बजट से काफी उम्मीदें थी कि इस बजट में इस बार तो असंगठित क्षेत्र के मजदूरों के लिए कुछ अच्छी व्यवस्थाएं होंगी या उनके उत्थान के लिए कई योजना की घोषणा होगी लेकिन इन उम्मीदों पर मोदी सरकार की वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने पानी फेर दिया है।
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने जैसे ही लोकसभा सदन में बजट का पिटारा खोला और एक-एक करके योजनाओं के बारे में जानकारी दी लेकिन कोई भी योजना मजदूरों के लिए नहीं आई यह देख इस बजट से तुलाराम शर्मा को निराशा हाथ लगी। उनका कहना था यह बजट असंगठित क्षेत्र के मजदूरों के हित में बिल्कुल नहीं है। वह लगातार सरकार से मांग करते हुए आ रहे हैं कि असंगठित क्षेत्र के मजदूरों के उत्थान और उन्हें समाज की मुख्यधारा से जोड़ने के प्रयास होने चाहिए लेकिन सरकार गंभीर नही है।
उत्तर प्रदेश ग्रामीण मजदूर संगठन के अध्यक्ष तुलाराम शर्मा का कहना था कि भारत सरकार व राज्य सरकार बनानें में पत्थर खदान, भवन निर्माण, ईट भट्टा, घरेलू महिला श्रमिक, ढकेल वाले, रिक्शा चालक, सड़क बनाने वाले बेलदार, पल्लेदार आदि असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों की महत्वपूर्ण भूमिका होती हैं, फिर भी असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों के उत्थान के लिए कोई बात नही करता है। पिछले एक दशक से वो मांग कर रहे है कि
1.पत्थर खदान श्रमिकों के लिए राजस्थान सरकार की तरह उत्तर प्रदेश में भी सिलिकोशिस बोर्ड बनाया जाये तथा आगरा जनपद के तांतपुर क्षेत्र में पत्थर खदान श्रमिकों के लिए स्वास्थय केन्द्र की स्थापना की जायें।
- ठेकेदारी प्रथा को खत्म कर अंसगठित क्षेत्र के श्रमिकों को कम से कम 600 रूपये प्रतिदिन न्यूनतम वेतन दिया जाये तथा 18000रू प्रतिमाह वेतन दिया जाये तथा 8 घण्टे काम लिया जाये। 8 घण्टे से अधिक काम लेने पर ओवर टाईम मजदूर को दिया जाये।
- प्रत्येक ग्राम पंचायत स्तर पर लघु सचिवालय स्थापना की जाये। जिससे गाँव के गरीब श्रमिकों को स्थानीय स्तर पर योजनाओं का लाभ मिल सके।
- प्रत्येक लेबर चैकों पर मजदूरों केे बैठने के लिये स्थाई जगह तथा श्रमिक सहायता केन्द्र खोले जायें। जिससे श्रमिकों को योजनओं का लाभ मिले ,पेयजल व शौचालय की व्यवस्था की जायें।
- असंगठित क्षेत्र की श्रमिक महिलाओं को समान कार्य का समान वेतन व अधिकार दिया जाये तथा कार्य स्थल पर स्वास्थय व सुरक्षा का लाभ मिले।
- बाल श्रमिकों को शिक्षा की मुख्यधारा से जोड़ने के लिए शिक्षा प्रशिक्षण केन्द्र गा्रमीण क्षेत्रों में चलाये जाये जिससे ग्रामीण क्षेत्र के कामकाजी बच्चे एंव जो स्कूल से बाहर हैं ऐसे बच्चों को शिक्षा के प्रति न्याय मिल सकें। जिससे बाल श्रमिकों का मानसिक ,बौद्धिक,शारीरिक, शैक्षिक विकास की ओर अग्रसर होकर देश के विकास के प्रति निष्ठावन बन सकें।
- घरों, कोठियों ईट,भट्टा, कृषि, पशु चराने एंव घरों में अपने परिवार के साथ काम करने पर पाबन्दी लागई जाये। क्योंकि फैक्ट्रियों /कम्पनियों से ठेकेदारी के माध्यमों से माल लाकर घरों में परिवार के साथ बच्चे काम करते रहते हैं जिससे उनका बचपन व शिक्षा छूट जाती है।
- शहरों व ग्रामीण क्षेत्रों में श्रमिक काॅलोनियों का निर्माण कराया जायें। जिससे गरीब श्रमिकों को रहने के लिए घर मिल सें।
- जो निर्माण श्रमिक गाँवों में या लेबर चैकों से निर्माण कार्य में काम करने जाते हैं ऐसे श्रमिक कहाँ से प्रमाण पत्र ठेकेदारों से लाकर देंगे। ऐसे श्रमिकों को स्वंय का प्रमाण पत्र मान्य किया जाये या ट्रेड यूनियन को सत्यापन करने का अधिकार दिया जायें।
- निर्माण क्षेत्रों में कार्यरत श्रमिक महिलाओं को बी ओ सी डब्ल्यू योजना के तहत सिलाई मशीन से लाभान्वित कराया जायें जिससे वे अपना स्वंय का रोजगार चला सकें। निमार्ण श्रमिकों को सौर्य ऊर्जा योजना से लाभान्वित कराया जाये।
- राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारण्टी योजना ( मनरेगा ) के तहत 200 दिन काम दिया जायें। नही तो बेरोजगारी भत्ता दिया जायें।
तुलाराम शर्मा का कहना है कि उन्होंने अभी भी हार नहीं मानी है भले ही मोदी सरकार की इस बजट में असंगठित क्षेत्र के मजदूरों के उत्थान के लिए कोई योजना नही आई हो लेकिन उनकी लड़ाई जारी रहेगी।