आगरा। भ्रष्टाचार और अपनी दबंगई के लिए सुर्खियों में रहने वाली यूपी पुलिस एक बार फिर सुर्खियों में है। यूपी पुलिस ने इस बार ऐसा कारनामा किया है जिसे जानकर आप भी हैरत में पड़ जाएंगे कि वास्तव में यूपी की पुलिस किस तरह सूझबूझ के साथ अपने कार्य को अंजाम देती है।
मामला 7 वर्षीय बालक से जुड़ा हुआ है। लावारिस अवस्था में मिले 7 वर्षीय बालक को यूपी की पुलिस ने लड़की दर्शा कर अपनी जीडी में दर्ज कर दिया और उसे बाल कल्याण समिति के सामने पेश कर आगरा के बाल संरक्षण गृह भेज दिया गया। गुमशुदा इस बालक के मां बाप लगातार अपने बच्चे को वापस पाने का जतन करते रहे लेकिन किसी का दिल नहीं पिघला।
आगरा के आरटीआई कार्यकर्ता नरेश पारस के हस्तक्षेप के बाद मामले ने तूल पकड़ा और इसका खुलासा हुआ तो पुलिस प्रशासन के भी होश उड़ गए। डीजीपी उत्तर प्रदेश और बाल कल्याण समिति को ट्वीट किया गया तो बालक विकलांग माता पिता को मिल पाया।
मामला हाथरस जिले के सादाबाद थाना क्षेत्र का है। 27 सितंबर को 7 वर्षीय बालक दायमतीन खेलते खेलते दूर निकल गया। बच्चे की गुमशुदगी की रिपोर्ट विकलांग माता पिता ने कई बार दर्ज कराने का प्रयास किया लेकिन क्षेत्रीय पुलिस ने मामला दर्ज नहीं किया। विकलांग पीड़ित माता पिता ने हाथरस के बाल कल्याण समिति से गुहार लगाई तो फोटो देखने पर पता चला कि उन्होंने इस बच्चे को आगरा के बाल संरक्षण गृह भेज दिया है। बाल संरक्षण गृह पहुंचे विकलांग माता पिता ने जब अपने बेटे की जानकारी जुटाई तो पता चला कि वहां दाय मतीन लड़का नहीं लड़की के नाम से है। बाल संरक्षण गृह ने बच्चा देने से मना कर दिया। आरटीआई एक्टिविस्ट नरेश पारस ने पुलिस प्रशासन और बाल कल्याण समिति से जब बात की तो क्षेत्रीय पुलिस को फटकार लगने के बाद इस बच्चे को उसके माता-पिता को सुपुर्द करने का आदेश शुक्रवार शाम को प्राप्त हुआ।
फिलहाल बच्चे के मिलने से विकलांग माता-पिता काफी उत्साहित हैं और इसके लिए आरटीआई एक्टिविस्ट को धन्यवाद भी दिया लेकिन पुलिस की इस कार्य गुजारी ने यह साफ कर दिया है कि पुलिस कभी भी रस्सी का सांप बना सकती है और अपने गले में अगर फंदा पड़ रहा है तो उसे किसी और की गले में भी डालने से वह पीछे नहीं हटेगी।