आगरा। जब किसी कार्य को दृढ़ संकल्प के साथ किया जाये तो वो कार्य अपने अंतिम लक्ष्य तक जरूर पहुँचता है। इस कार्य में कठिनाई आ सकती हे थोडा वक्त लग सकता है लेकिन संकल्पित व्यक्ति इसे पूरा ही करता है। ऐसा ही कुछ जज्बा दूर देश से आगरा पहुँची दो बेटियां में देखने को मिला। यह दोनों बेटिया भले ही रंग-रूप से विदेशी लगती हो लेकिन इनका जन्म भारत में हुआ। यह दोनों बेटियां अपने माँ-बाप की तलाश करती हुई अमेरिका से इंडिया आयी है।
कानपुर की दो बेटियां अपने उन माँ – बाप की तलाश में जो बचपन में उनसे बिछड़ गए थे। अमेरिका से 43 साल बाद कानपुर पहुंची है। भले ही अब यह अमेरिका की हो गयी हैं लेकिन यह जानना चाहती है की इनके माता पिता कौन हैं। उन्हें नहीं मालूम कि वो कौन थे जिनकी गोद में यह पहली बार खिलखिलाए। यह जानना चाहती है की किस घर में हम पैदा हुए थे। उनके माता पिता का नाम क्या है।
कानपुर की इन बेटियों के नाम है रबैका और स्टेफ़नी। आगरा पहुँची इन दोनों बेटियों से मून ब्रेकिंग की टीम ने वार्ता की। उन्होंने बताया कि दोनों अमेरिका में रहती है और अब दोनों की शादी हो चुकी है। स्टेफ़नी साऊथ कैरोलिना में एनजीओ भी चला रही है वहीँ रबैका वाशिंगटन में रहती। उनका कहना था कि उनका वैवाहिक जीवन अच्छा है लेकिन उनके माता पिता की खोज उन्हें भारत ले आई है।
उन्होंने बताया कि वो दोनों साथ – साथ ही अपने – अपने माता पिता की तलाश कर रही हैं। यह भी एक इत्तेफाक है। उन्होंने बताया कि उन्हें याद है कि वो दोनों सन् 1975 और 76 में कानपुर कैंट में बने चैरिटी ऑफ मिशनरीज के अनाथालय में रहती थी। यंहा से उन्हें दिल्ली स्थित मुख्य शाखा में ले जाया गया था। जंहा से दो अमेरिकन परिवारों ने उन दोनों को अलग – अलग गोद ले लिया था। दोनों बेटियां कानपुर के उस अनाथालय पहुंची जहां उनका बचपन गुजरा लेकिन उस अनाथालय में भी माता पिता के बारे में कोई जानकारी नहीं मिली।
हालांकि उनकी मुलाक़ात कानपुर में सिस्टर एरिना से हुई जो की शिशु भवन में असिस्टेंट इंचार्ज है। उन्हें बताया गया कि बचपन में कैसे आई हमको पता नही है। यंहा से उनको दिल्ली भेजा गया वंहा से उनको गोद लिया गया जहाँ से वो अमेरिका गए। जो बच्चे यंहा आते है हम लोग उनका रिकॉर्ड रखते है और यंहा से ट्रांसफर करते है। दिल्ली और आगे का रिकॉर्ड हम लोग बता नही सकते है। सन् 1975 में इनको यंहा से भेजा गया था ।