आगरा। ‘महारास में प्रवेश पाना आसान नहीं। क्योंकि यह वो परम अवस्था है जहां भक्त का श्रीहरि से मिलन होता है। लेकिन इस परमानन्द में प्रवेश करने के लिए कई सीढ़ियों को पार करना पड़ता है। पहली सीढ़ी भागवत कथा है। दूसरी भक्ति और तीसरी सहज, सरल और सुलभ गुरु की प्राप्ति। लीला वो है भगवान की भक्ति में लीन कर दे।’ भगवताचार्य दिनेश दीक्षित के मुखारविन्द से श्रीमद्भागवत कथा में आज महारास और कंस वध प्रसंग का वर्णन किया गया। महारास में जहां भक्त भक्ति के सागर में डूबा नजर आया वहीं गोपी-उद्धव प्रसंग ने भक्तों की आंखों को नम कर दिया।
सूर्य नगर समाधि पार्क स्थित मंदिर में आयोजित श्रीमद्भगवत कथा में आज महारास का उत्सव था। बाजी रे मुरलिया यमुना के तीर…, मुरली की धुन मेरा मन मोह लीनो चित हरत नहीं धीर…, ऐसे रास रचो वृन्दावन… जैसे भजनों पर भक्त गोपी और सखा बनकर भक्ति में खूब झूमें। महारास में गोपी बनकर पहुंचे महादेव की कथा के साथ वृंदावन में विराजमान गोपेश्वर महादेव की कथा भी सुनाई। गोपी गीत का भी भक्तिमय वर्णन किया।
अक्रूर जी द्वारा श्रीकृष्ण को मथुरा ले जाने पर कृष्ण वियोग में बिलखती गोपियां, उद्धव के साथ यशोदा, राधा और गोपियों के संवाद सुन भक्तों की आंखों से अश्रुधारा बहने लगी। कुबजा उद्धार के बाद श्रीकृष्ण ने जैसे ही कंस का वध किया, कथा स्थल पर श्रीकृष्ण के जयकारे गूंजने लगे। महाराज ने कहा कि जीवन का उद्धार चाहते हो तो भक्त कुबजा, शबरी, विदुर और केवट की तरह अपने मन की डोर श्रीहरि के हाथों में सौंप दो।
बुद्धि में अहंकार बना देता है कुरूप
कंस की दासी कुबजा उद्धार की कथा सुनाते हुए भागवताचार्य ने कहा कि कंस अभिमान का प्रतीक और कुबजा बुद्धि की प्रतीक थी। अर्थात बुद्धि के साथ अभिमान हो तो वह कुरुपता के रूप में नजर आती है। इसलिए जब कुबजा श्रीकृष्ण की शरण में आयी तो वह कुबड़ी से सुंदर स्त्री बन गई। कथा के माध्यम से बताया कि कृष्ण की भक्ति में डूबी गोपियों को समझाने गए अक्रूर जी के ज्ञान का अहंकार किस तरह टूटा। क्योंकि प्रेम में वह ज्ञान होता है जो बड़े-बड़े ज्ञानियों में नहीं होता।