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ताजनगरी से गहरा नाता रहा है शहीद भगत सिंह का, यहाँ छिपकर तैयार किया था बम

by pawan sharma

भारत की आजादी के इतिहास के सुनहरे पन्नों में 23 मार्च की तारीख भी सुनहरे अक्षरो में अँकित है। आज ही के दिन महान क्रांतिकारी शहीद भगत सिंह की शहादत हुई थी। भगत सिंह की ओर से देश में आजादी की जगी अलख को मिटाने के लिए अंग्रेजी हुकूमत ने भगत सिंह और उनके साथी सुखदेव राजगुरु को लाहौर में चोरी छुपे फांसी दे दी थी। महान क्रांतिकारी भगत सिंह का आगरा से गहरा नाता रहा है। उन्होंने अपने साथियों के साथ आगरा के नूरी दरवाजा, नाई की मंडी और हींग की मंडी में काफी समय गुजारा था।

इतिहासकार बताते है कि नवंबर, 1928 में ब्रिटिश पुलिस ऑफिसर सांडर्स को जान से मारने के बाद भगत सिंह की लाहौर में सरगर्मी से तलाश शुरु हो गयी थी। ब्रिटिश हुकूमत से बचने के लिए भगत सिंह अपने साथियों के आग्रह पर अज्ञातवास के लिए आगरा आए थे। भगत सिंह ने नूरी दरवाजा में लाला छन्नो मल को ढाई रुपए एडवांस देकर 5 रुपए महीने पर मकान किराए पर लिया और अपनी पहचान छुपाने के लिये अपने साथियों के साथ कॉलेज के छात्र बनकर रह रहे थे।

आगरा कॉलेज के रहे थे छात्र

किसी को शक न हो इसके लिए उन्‍होंने आगरा कॉलेज में बीए में एडमिशन भी ले लिया। आगरा में आगरा कॉलेज के छात्र बनकर भगत सिंह अपने क्रन्तिकारी अभियान को धार देते रहे और ब्रिटिश हुकूमत को हिलाने के लिए आगरा के इसी मकान में प्लान भी तैयार किया।

असेम्बली में विस्फोट को तैयार किया था बम

इतिहास कार बताते है कि ब्रिटिश हुकूमत को उसी की भाषा में जबाब देने के लिये उन्होंने अपने क्रन्तिकारी साथियों के साथ घर में बम बनाने की फैक्‍ट्री लगा दी। इन बम का परिक्षण भगत सिंह और उनके साथियों ने नालबंद नाला और नूरी दरवाजा के पीछे जंगलो में किया करते थे जो अब रिहायसी इलाका बन चूका है। आगरा के इसी मकान में तैयार किया गया बम से भगत सिंह ने असेम्बली में विस्फोट किया था।

8 अप्रैल, 1929 को अंग्रेजों ने सेफ्टी बिल और ट्रेड डिस्प्यूट्स बिल असेंबली में पेश किया था ये बहुत ही दमनकारी कानून थे। इसी के विरोध में भगत सिंह ने अपने साथी बटुकेस्वर के साथ असेंबली में बम फोड़ा और ‘इंकलाब जिंदाबाद’ के नारे लगाए। 

असेम्बली में विस्फोट के दौरान वो भागे नहीं बल्कि अपनी गिरफ्तारी कराई। ब्रिटिश सेना के अधिकारियों ने 28 और 29 जुलाई 1930 को सांडर्स मर्डर केस में गवाही के लिये आगरा से लोगों को बुलाया था। जिसमे छन्‍नो लाल ने ये बात स्‍वीकारी थी कि उन्‍होंने भगत सिंह को कमरा दिया था। इसी केस में 23 मार्च 1931 को लाहौर के सेंट्रल जेल में भगत सिंह सुखदेव और राजगुरू को फांसी दे दी गई।

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