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रेस्क्यू किये गए जानवरों ने इस तरह मनाया क्रिसमस का जश्न

by admin

आगरा। क्रिसमस आते ही वाइल्डलाइफ एसओएस ने अपने आगरा भालू संरक्षण केंद्र और एलीफैंट कंजर्वेशन एंड केयर सेंटर में रेस्क्यू किए गए जानवरों के लिए खास उपहार तैयार कर छुट्टियों के मौसम का स्वागत किया। वन्यजीव संरक्षण संस्था के कर्मचारियों ने चमकदार लाल रंग के कपड़े पहने और क्रिसमस के रंगों से प्रेरित विशेष संरचनाओं का निर्माण किया। दोनों केंद्रों को सितारों और रिबन से सजाया गया। क्रिसमस स्टॉकिंग्स पॉपकॉर्न से भरे गए, जो हाथी और भालू के पसंदीदा है, और इन गिफ्ट्स का पता लगाने एवं जानवरों को लुभाने के लिए प्लेटफार्मों और ऊंचे पेड़ों पर लटका दिया गया।

कई क्रिसमस के उपहार हाथी और भालुओ के पसंदीदा खाने की सामग्री से भरे हुए थे जिन्हें झूले और पेड़ों पर लटका दिया गया। जिसके बाद हमारे रेस्क्यू किये जानवरों ने यह पता लगाने की कोशिश की कि किस बॉक्स में उनके मनपसंद ट्रीट हैं, जिन्हें हासिल करने के बाद हाथी और भालुओं ने आनंद से खाया। बोरी से बने स्नोमैन के अन्दर भालुओं के लिए गुड़-खजूर भर कर छुपा दिए गए और उसे उनके बाड़ों के भीतर रखा गया, टायरों से बने झूलों पर गिफ्ट के डिब्बे भी लटका दिया गए। महज़ कुछ ही देर में सारे गिफ्ट नष्ट करने के बाद इन हाथी और भालुओं ने बड़े ही चाव से अपनी पसंद की ट्रीट का लुफ्त उठाया।

वाइल्डलाइफ एसओएस के सह-संस्थापक व सीईओ कार्तिक सत्यनारायण ने कहा कि हम हर साल बड़े उत्साह के साथ क्रिसमस मनाते हैं, विशेष रूप से रेस्क्यू किये गए जानवरों के लिए। मैं गर्व से कह सकता हूं कि हमारे स्टाफ को इन गिफ्ट्स का निर्माण करने में उतना ही मजा आता है, जितना कि जानवरों को उन्हें नष्ट कर के उनके अन्दर भरे खाने का लुफ्त उठाने में।

वाइल्डलाइफ एसओएस के संरक्षण परियोजना के निदेशक, बैजूराज एम.वी ने कहा, हाथियों को अपने पसंदीदा खाने का पता लगाने में बिल्कुल समय नहीं लगा। भालूओं को देखना अधिक मनोरंजक था क्योंकि वे एक दूसरे के साथ गिफ्ट पाने की कड़ी प्रतिस्पर्धा में लगे हुए थे। यह देखना दिलचस्प था कि प्रत्येक जानवर ने अपने गिफ्ट और झूलों को एक अलग-अलग तरीके से कैसे निपटाया और ट्रीट पाने के लिए किस तरह की रणनीति भी लगाई। सभी ने इस जश्न का अच्छी तरह से आनंद लिया।

वाइल्डलाइफ एसओएस ने भारत भर में डांसिंग बेयर के अवैध और क्रूरता से भरी प्रथा को सफलतापूर्वक समाप्त किया था, और कलंदर समाज की जीवनयापन के लिए अन्य रोज़गार प्रदान करते हुए 628 भालुओं को बचाया था, जो दशकों से स्लॉथ भालू का शोषण कर रहे थे।

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