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आगरा के कवियों ने दी मां की ममता को काव्य श्रद्धांजलि

by pawan sharma

− ममता देवी वर्मा की स्मृति में आयोजित हुआ काव्य श्रद्धांजलि एवं साहित्य सम्मान समारोह
− राष्ट्रीय हास्य कवि लटूरी लट्ठ को प्रदान किया गया साहित्य रत्न सम्मान

आगरा। मां की ममता का न कोई सार है, मां के आंचल में बसा खुशियों का संसार है। समाज सेवी श्रीमती ममता देवी वर्मा की स्मृति में इन्हीं भावों के साथ आयोजित किया गया पंचम काव्य श्रद्धांजलि एवं प्रथम साहित्य रत्न सम्मान समारोह।
संजय प्लेस स्थित अवध बैंकट हॉल में हुए आयोजन का शुभारंभ मुख्य अतिथि डॉ विजय श्रीवास्तव(प्रधानाचार्य आरबीएस डिग्री कॉलेज), विशिष्ट अतिथि डॉ लवकुश मिश्रा(विभागाध्यक्ष पर्यटन एवं यात्रा प्रबंधन, विवि), संजय वर्मा(परियोजना निदेशक, एनएचएआई), राकेश शुक्ला(महासचिव महामना मालवीय मिशन संस्था), डॉ सुभाष सक्सेना(अध्यक्ष, श्रीचित्रगुप्त परिषद), डॉ रुचि चतुर्वेदी(अन्तरराष्ट्रीय कवि), विजेंद्र रायजादा(एडीओ, पंचायत विभाग) ने दीप प्रज्ज्वलित किया। कार्यक्रम संयोजक रामेंद्र प्रताप वर्मा और मोहित सक्सेना ने सभी का स्वागत किया। अतिथियों के कर कमलों द्वारा राष्ट्रीय हास्य कवि लटूरी लट्ठ का ममता देवी वर्मा प्रथम साहित्य रत्न सम्मान किया गया। इसके बाद मातृ दिवस के अवसर पर बही ममतामयी काव्य रसधारा। जिसमें जिन चरणों में आकर हमको स्वर्गधरा मिल जाती है… डॉ रुचि चतुर्वेदी, सुबह भाजपा में कटी शाम सपा के साथ, लेकिन जब पर्चा भरा चुनाव चिन्ह था हाथ… रमेश मुस्कान, जरा सा मुस्कुरा दो तुम तो मेरी शाम बन जाए, कदम रख दो तो मेरा आशियां भी धाम बन जाए…प्रीति त्रिपाठी, मां है जीती जागती स्वयं ममता की मूर्ति, मां से बड़ा कोई भगवान नहीं होता है…नीरज पाण्डेय (रायबरेली), जब हृदय में हुआ नेह का आगमन मिट गईं दूरियां, हट गया आवरण…मनोज मधुवन(सोरों), हम हदें पार करके देखेंगे, नींदें दुश्वार करके देखेंगे…हीरेंद्र ‘हृदय’,
बच्चों की खातिर बनते फौलाद हमारे बाबूजी,
अंत समय रह जाते बेऔलाद अभागे बाबूजी…
कवि मोहित सक्सेना, ताक में बैठे हैं बस्ती को जलाने वाले, लोग अब हैं ही कहां आग बुझाने वाले….
सतीश मधुप, सुध बुध भूल गए रिश्ते घर आंगन के ममता के द्वार को कपाट नहीं मिला है, इंच इंच टुकड़ों में खोज रही माई किन्तु, चूमने को लाल का ललाट नहीं मिला है…विष्णु उपाध्याय “विशु” (फिरोजाबाद), मेरे हाथ में सिर्फ इसलिए, कोई दुःख की रेखा नहीं है।
माता पिता के अलावा, मैने किसी भगवान को देखा नहीं है…लटूरी लट्ठ, श्रुति सिंह, संजय गुप्त, पदम् गौतम, राकेश निर्मल, चंद्रकांत त्रिपाठी, संजय वर्मा, सुरेंद्र बंसल, अभिषेक शर्मा, आरपी सक्सेना आदि ने काव्य पाठ कर उपस्थित सभा को मंत्रमुग्ध कर दिया। संचालन सतीश मधु ने किया।

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