Agra. शहीदों के सम्मान और उनके परिवार की जिम्मेदारी हर सरकार लेती है लेकिन उसका कितना पालन होता है इसका जीता जागता उदाहरण शहीद कौशल रावत का परिवार है जो अपने पति के सम्मान के लिए स्थानीय प्रशासन और जनप्रतिनिधियों से लोहा लिए हुए हैं लेकिन ऐसे ही एक दूसरा मामला सामने आया है जिसने झकझोर के रख दिया है। शहीद का यह परिवार और शहीद की पत्नी लगभग 31 सालों से पति के सम्मान के लिए लड़ाई लड़ रही है।
यह शहीद धारा सिंह चाहर का परिवार है। शहीद धारा सिंह चाहर के परिवार की आर्थिक स्थिति इस समय बेहद खराब है। उनके दो बेटे हैं, दोनों पढ़ाई कर रहे हैं। खेती के नाम पर छटांक भर टुकड़ा है। घर का खर्चा चलाने तक के लिए शहीद के परिवार जन आज मोहताज हैं लेकिन सरकार को इसकी कोई चिंता नहीं है।
चेहरे पर चिंता की लकीर, सिकुड़ती खाल और आंखों में आंसू लिये, आप जिस महिला को तस्वीर में देख रहे हैं। उनका नाम बृजेश देवी है। ब्रजेश देवी का कगारोल के नगला हीरा सिंह की रहने वाली है। उनके पति धारा सिंह चाहर 1988-88 में श्रीलंका में शहीद हुए थे। तत्कालीन सरकार ने उन्हें वीर चक्र से सम्मानित किया था लेकिन 31 साल बीत जाने के बाद भी शहीद धारा सिंह को सम्मान नहीं मिला। आज भी शहीद की पत्नी सरकारी सिस्टम से दो चार हाथ करने को मजबूर है। तत्कालीन सरकार की ओर से शहीद की शहादत के दौरान जो घोषणाएं की थी आज तक वह घोषणा है धरातल पर नहीं उतर पाई है। अभी तक शहीद को उसका शहीद स्मारक व समाधि स्थल, सड़क मार्ग का नाम नहीं मिला है। पत्नी आज भी आश लगाए बैठी हैं कि उसके पति को उसकी शहादत के लिए पूरा सम्मान मिलेगा।
शहीद की पत्नी बृजेश देवी बताती हैं कि उनके पति धारा सिंह चाहर 13 जनवरी 1998-89 को श्रीलंका के बनिया सेक्टर में शहीद हुए थे। उस वक्त कंपनी कमांडर (वीएसएम) विजय सिंह के नेतृत्व में श्रीलंका के तमिल ईलम लिबरेशन टाइगर्स (LTTE) उग्रवादी संगठन के कमांडर जस्सी को मार गिराया था और खुद भी शहीद हो गए थे। मरणोपरांत सरकार ने उन्हें वीर चक्र से भी नवाजा था। बहुत सारी घोषणाएं भी की थी लेकिन एक वीर चक्र से सम्मानित शहीद की पत्नी आज भी अपने पति को सम्मान दिलाने की खातिर लड़ रही है। अभी तक धारा सिंह चाहर की शहादत की स्मृति में स्मारक तक नहीं बना है। धारा सिंह चाहर की पत्नी आज भी सरकारी दफ्तरों के चक्कर काट रही है और जिला मुख्यालय के पूर्व सैनिक नियोजन कार्यालय पहुंचकर अधिकारियों से शिकायत कर रही है। उन्होंने अधिकारियों को इस संबंध में एक पत्र भी दिया है और अधिकारियों ने भी एक बार फिर आश्वासन देकर अपना पल्ला झाड़ लिया है।
शहीद धारा सिंह चाहर की पत्नी बताती है कि परिवार की आर्थिक स्थिति बेहद खराब है। उनके दो बेटे हैं दोनों पढ़ाई कर रहे हैं। खेती के नाम पर छटांक भर टुकड़ा है। घर का खर्चा चलाने तक के लिए शहीद के परिवार जन मोहताज हैं। मृतक आश्रित कोटे से उनके चाचा को शहीद की जगह नौकरी मिली जो सीओडी आगरा में तैनात हैं लेकिन उन्होंने भी धोखा दे दिया। उन्होंने भी शहीद के परिवार की कोई भी सहायता नहीं की।
ब्रजेश देवी कहती है कि उनकी केवल अंतिम इच्छा यही है कि उनके पति को सम्मान मिले। उनकी शहादत के दौरान तत्कालीन सरकार ने जो घोषणा की थी उन घोषणाओं को पूरा कराया जाए और उनकी प्रतिमा लगाकर उनकी स्मृति में स्मारक बनवाया जाए। क्षेत्र के जनप्रतिनिधियों से भी उन्होंने मदद के लिए गुहार लगाई है लेकिन वहां से भी कोई भी सहायता नही मिली। उनके गांव में एक स्मारक तक नहीं बनाया गया है। उनकी मांग है उनके शहीद पति का कम से कम एक स्मारक बन जाए, सड़क का नाम उनके नाम पर दिया जाए जिससे उनके पति की पहचान हमेशा जिंदा रहे।
फिलहाल कुछ भी हो जिस तरह से शहीदों की पत्नी अपने शहीद पति की शहादत और उनके सम्मान के लिए सड़कों पर उतर रही हैं अधिकारियों के चक्कर लगा रही हैं, उसने सरकार और प्रशासन की कार्यप्रणाली पर सवाल जरूर खड़ा कर दिया है।