आगरा। भारत को पुरुष प्रधान देश कहा जाता है लेकिन आधी आबादी ने इस तथ्य को अब मिथ्या बना दिया है। आधी आबादी किसी भी क्षेत्र में पुरुषों से कम नहीं हैं। गणतंत्र दिवस के अवसर पर आगरा की बेटियों ने प्रदेश व देश मे शहर का नाम रोशन किया है। ऐसे ही आगरा की एक बेटी व शहर की वरिष्ठ साहित्यकार ऊषा यादव को पद्मश्री सम्मान के लिए चुना गया है। भारत सरकार द्वारा दिए जाने वाले इस सम्मान घोषणा गणतंत्र दिवस के अवसर पर की गई। इस घटना से साहित्यकार डॉ उषा यादव काफी उत्साहित हैं। उनके साहित्य लेखन में सबसे ज्यादा सराहना उन्हें उनके बाल साहित्य पर लिखी किताबों को मिली। इससे पहले बालिका दिवस पर आगरा की एक बेटी को उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से विवेकानंद यूथ अवार्ड दिया गया था। व्यक्तिगत श्रेणी में मिला यह अवार्ड भी शहर की बेटी को साहित्य लेखन के लिए मिला। गणतंत्र दिवस के अवसर पर शहर की दो साहित्यकारों को अवार्ड मिलने से शहरवासी भी काफी उत्साहित हैं।
डॉ. उषा यादव नार्थ ईदगाह कालोनी की निवासी है लेकिन उनका जन्म 1948 में कानपुर में हुआ। 1966 में शादी हुई और आगरा आ गईं। उन्होंने कानपुर से ही अपनी प्रारंभिक शिक्षा ली। हिंदी और इतिहास में एमए किया और फिरपीएचडी और डी लिट किया। उनके दो बेटे और एक बेटी है। तीनों की शादी हो चुकी है। पति राज किशोर सिंह आगरा कॉलेज से प्रोफेसर पद से सेवानिवृत्त हैं।
डॉ. उषा यादव अंतर्मुखी स्वभाव की महिला हैं। उन्हें लाइम लाइट में रहना कभी पसंद नहीं रहा, शायद यही कारण है कि उन्हें भारत सरकार से इतना बढ़ा सम्मान दिए जाने के बाद भी आगरा वासी उनकी कला से अपरिचित हैं। डॉ ऊषा देवी आगरा यूनिवर्सिटी के केंद्रीय हिंदी संस्थान में प्रोफेसर के पद पर भी कार्यरत रही हैं। बच्चों का भविष्य बनाने और उन्हें उचित मार्गदर्शन देने के साथ ही ऊषा देवी ने अपनी लेखनी जारी रखी और उसी का नतीजा है कि आज उन्हें इतने बड़े सम्मान से सम्मानित किया गया है। लेखन में उन्हें इतनी रुचि है कि वह सुबह से शाम तक जब भी समय मिलता है वह कुछ न कुछ लिखती रहती हैं।
डॉ उषा यादव अभी तक 100 से अधिक साहित्य व कविताओं की पुस्तकें लिख चुके हैं उनके बाल साहित्य को काफी सराहना मिली है और लोग काफी पसंद भी आई हैं उन्होंने बताया कि पिता से साहित्य लेखन की प्रेरणा मिली उनके पिता भी बाल साहित्यकार रहे।
डॉ ऊषा यादव को जब पता चला कि उन्हें भारत सरकार द्वारा निष्पक्ष भाव से इतने बड़े पुरस्कार से सम्मानित किया गया है तो उनके खुशी के आंसू छलक गए। उन्हें विश्वास ही नहीं हुआ कि उनके साहित्य लेखन के लिए उन्हें इतने बड़े अवार्ड से सम्मानित किया जा रहा है।
डॉ. ऊषा यादव ने कहा कि आज में बहुत खुश हूं, आनंदित हूं, इसके लिए लंबी साधना की है, साहित्य साधना का फल मिला है। यह एक खुशी है, खुशी तब भी बहुत होती है जब मेरी कविताओं को बच्चे गुनगुनाते हैं और खुश होते हैं। एक और खुशी बचपन में मिली थी, वह थी लिखने की। मैं नौ साल की थी, तब कविताएं लिखना शुरू कर दिया था।
डॉ. ऊषा यादव ने बताया, मेरे पसंदीदा साहित्यकार प्रेमचंद और शरद जोशी हैं। दोनों की रचनाओं में सादगी है, अपनापन है, जिंदगी की हकीकत है। दोनों की कहानियों के पात्र अपने से लगते हैं। कविता हो या कहानी, इतनी सरल होनी चाहिए कि आम आदमी के दिल में भी उतर जाए।
वरिष्ठ साहित्यकार डॉ उषा यादव ने कहा कि लोग पूछते हैं कि अच्छा साहित्य कैसे लिखा जाता है, मैं कहती हूं कि लिखो और खूब लिखो, अच्छा अपने आप हो जाएगा, इसका कोई शॉर्ट कट फार्मूला नहीं है।
उपलब्धियां:-
1:- ऊषा यादव केंद्रीय हिंदी संस्थान में प्रोफेसर रहीं। डॉ. भीमराव आंबेडकर की कन्हैयालाल मुंशी हिंदी तथा भाषा विज्ञान विद्यापीठ में प्रोफेसर पद से सेवानिवृत्त हुईं।
2:- ऊषा यादव सांस्कृति संस्था इंद्रधनुष की अध्यक्ष, प्राच्य शोध संस्थान की सचिव हैं। और भी कई साहित्यिक संस्थाओं से जुड़ी हैं।
3:- ऊषा यादव को 1998 में यूपी सरकार से बाल साहित्य भारती, 2004 में भारतेंदु हरिश्चंद्र पुरस्कार सहित 10 से अधिक पुरस्कार मिल चुके हैं।
4:- ऊषा यादव की टुकड़े-टुकड़े सुख, सपनो का इंद्रधनुष, जाने कितने कैक्टस (कहानी संग्रह), अवामस की रात, कितने नीलकंठ, एक और अहल्या (कविता संग्रह) सहित 100 से ज्यादा किताबें प्रकाशित।