Agra. कोरोना संक्रमण को लेकर अक्सर पॉश कॉलोनियों के बाहर आपने “बाहरी व्यक्तियों के प्रवेश पर प्रतिबंध” के बोर्ड लगे हुए देखे होंगे लेकिन सोमवार को कुछ ऐसी ही तस्वीरे सामने आई जिसने यह जता दिया कि कोरोना संक्रमण कितनी गंभीर बीमारी है और इसके प्रति झुग्गी झोपड़ियों में रहने वाले लोग भी अपने स्वास्थ्य के प्रति जागरूक है।
सोशल मीडिया पर सामने आएगी तस्वीरें डीआईओएस कार्यालय के पीछे की है। जहाँ खाली जमीन पर झुग्गी झोपड़ी बनाकर वर्षो से लोग अपने परिवार के साथ रह रहे है। यहां पर लगभग 45 परिवार अपनी अपनी झुग्गी झोपड़ियां बनाकर रह रहे हैं। कोरोना संक्रमण तेजी से बढ़ा तो इन झोपड़ियों में रहने वाले युवाओं ने भी कोरोना संक्रमण से अपनों को बचाने के लिए कदम बढ़ा दिए।
झुग्गी झोपड़ियों में रहने वाले परिवारों के बालक बालिकाओं ने पहले अपने परिवार को कोरोना के प्रति जागरूक बनाया और फिर पूरी बस्ती को सुरक्षित और कोरोना से बचाने के लिए बांस और कपड़ा बांधकर रास्ता बंद कर दिया, साथ ही बाहरी लोगों के अंदर आने पर प्रतिबंध होने के पोस्टर लगा दिए। इन पोस्टरों पर इन बालक बालिकाओं ने साफ लिखा है कि
“बाहरी लोगों का आना मना है” और ‘नो मास्क-नो एंट्री’।
झुग्गी झोपड़ियों में रहने वाले युवाओं का कहना है कि पहले से ही वे सरकार की मूलभूत सुविधाओं से वंचित है। किसी के परिवार वाले फेरी और मजदूरी करते हैं तो कुछ नींबू और मिर्च टांगने का काम करते हैं और इनसे जो आए होती है उसी से अपने परिवार का गुजर-बसर करते हैं लेकिन कोरोना संक्रमण से अगर कोई संक्रमित हो गया तो फिर उसका इलाज कैसे होगा। इन सभी बातों को ध्यान में रखते हुए ही झुग्गी झोपड़ियों में रहने वाले सभी लोगों को जागरूक बनाया है। सभी के पास सैनिटाइजर हैं और मास्क का उपयोग कर रहे हैं। अगर झुग्गी झोपड़ी में रहने वाला व्यक्ति काम पर जाने के बाद शाम को जब घर लौटा है तो पहले उसे सेनीटाइज किया जाता है और फिर उसे अंदर प्रवेश दिया जाता है।
सामाजिक कार्यकर्ता नरेश पारस ने भी बताया कि जब वह इन बच्चों से मिलने के लिए पहुंचे तो उन्हें भी इन बच्चों ने अंदर नहीं आने दिया। जहां मुख्य मार्ग पर बांस बलिया लगी थी वहीं दूर से बात करने लगे। बच्चों की इस सजगता को देख नरेश पारस काफी खुश नजर आए और कहा कि पढ़ाई के साथ-साथ स्वास्थ और कोरोना की सजगता बनाए रखें। आपको बताते चलें की झुग्गी झोपड़ी में रहने वाले बच्चों को शिक्षित बनाने के लिए नरेश पारस ने लंबी लड़ाई लड़ी थी जिसके बाद उन्हें स्कूलों में दाखिला मिल पाया था।