हिंदुओं के प्रमुख त्योहारों में शामिल गंगा सप्तमी की देशभर में धूम है। जगह- जगह श्रद्धालु मां गंगा की अराधना कर रहे हैं। गंगा सप्तमी वैशाख मास के शुक्ल पक्ष में हर वर्ष मनाई जाती है। माना जाता है कि इस दिन गंगा में डुबकी लगाने से बहुत पुण्य मिलता है। गंगा सप्तमी की धूम उत्तर प्रदेश के वाराणसी जिले में भी देखने को मिली।
भगवान भोलेनाथ की नगरी के नाम से मशहूर काशी के घाटों पर भी गंगा सप्तमी की धूम रही। इस दौरान श्रद्धालुओं का जोश और उत्साह देखने लायक था। सुबह से ही काशी के घाटों पर लोगों का जमावड़ा लगा रहा। वैदिक मंत्रोचार के बीच मां गंगा की पूजा की गई और विशेष आयोजन किया गया।
हिंदू मान्यताओं के अनुसार परमपिता ब्रह्मा के कमंडल से पहली बार गंगा अवतरित हुई थी और ऋषि भागीरथ की कठोर तपस्या से खुश होकर धरती पर आई थी। पौराणिक कथाओं के अनुसारा मां गंगा का जन्म भगवान विष्णु के पैर में पैदा हुई पसीने की बूंदों से हुआ था। जबकि कुछ अन्य हिंदू मान्यताओं की माने तो गंगा की उत्पत्ति ब्रह्मा जी के कमडंल से हुई थी।
यह भी माना जाता है कि ऋषि भागीरथ ने राजा सागर के 60 हजार बेटों के उद्धार के लिए और उन्हें कपिल मुनि के श्राप से मुक्ति दिलाने के लिए धरती के लोगों की प्यास बुझाने के लिए कई सालों तक गंगा की तपस्या की थी। इस तपस्या से खुख होकर मां गंगा पृथ्वी पर आई। लेकिन धरती गंगा के आने की बात सुनकर भय महसूस करने लगी।
इस पर भागीरथ ने भगवान शंकर से निवेदन किया कि कृपया गंगा की धारा को कम करें जिससे धरती की कोई हानि न हो। तब जाकर गंगा भगवान शंकर की जटा में समाई और उसकी धार कम हुई। इसके बाद गंगा धरती पर प्रकट हुई। मां गंगा जिस दिन धरती पर प्रकट हुई वह दिन सप्तमी का था इसलिए गंगा सप्तमी मनाई जाती है।
गंगा मात्र एक नदी नहीं है बल्कि आस्था की देवी हैं किसानों के लिये प्राण दायिनी हैं। यह सवाल तो आज भी रहस्य है कि उद्योग कारखानों की रसायनों और गंदगी को अपने में समा लेने के बाद भी इसकी पवित्रता बरकरार कैसे हैं? जब किसी रहस्य का पता न चले तो उसे चमात्कार कहा जा सकता है। गंगा का यही रहस्य इस नदी को देवी गंगा बनाता है। इसकी पवित्रता और शीतलता के ही बदौलत लोगों की इसमें गहरी आस्था भी है।