आगरा। आज फादर्स डे है। मदर्स डे की तरह ही पूरे विश्व में 17 जून को फादर्स डे मनाया जाता है। अपने पिता के प्रति प्रेम को सभी के सामने रखने के लिए एक बेटे के लिए इससे बड़ा दिन कोई नहीं होता। लेकिन आज ऐसे भी पिता है जिन्हें फादर्स डे होने का मलाल है। ऐसे ही कुछ पिता आगरा के रामलाल वृद्ध आश्रम में रह रहे हैं। जिन बच्चों को उनके पिता ने उंगली पकड़कर चलना सिखाया उन्हीं बच्चों ने उन्हें उस मोड़ पर छोड़ दिया जब उन्हें बच्चों के साथ की सबसे ज्यादा जरुरत थी। यही सोचकर की आखिरकार जिन सपूतों को सम्मानजनक जीवन देने के लिए ताउम्र वो संघर्ष करते रहे उन्होंने ऐसा क्यों किया परिवार की जिस उम्र पर सबसे ज्यादा जरुरत थी तो उठा समय उन्हें वृद्ध आश्रम क्यों छोड़ दिया गया।
आज बहुत से पिता अपने बेटों के साथ इस दिवस को सेलिब्रेट कर रहे हैं लेकिन रामलाल वृद्ध आश्रम में रह रहे यह बूढे पिता एक दूसरे से पूछ रहे है कि हमसे क्या भूल हुई जो अपने ही एक पल में पराये हो गए। रामलाल वृद्ध आश्रम में पहुँचकर ऐसे ही शहर के कुछ बुजुर्गो से साथ हुई तो उनकी आँखे भर आई। कमलानगर के अशोक गुप्ता ने बताया कि पत्नी का देहांत हो गया है। अपने बच्चों के सहारे जिंदगी गुजारने के सपने देखे। दो बेटे है दोनों की शादी हो गयी। आज बेटों ने अपनी पत्नियो के लिए इस उम्र में घर से निकाल दिया। किसी बात पर दोनों बहुओ ने शर्त रख दी की या तो यह रहेंगे या फिर हम। फिर क्या था बेटों ने कूड़े की तरह बाहर फेंक दिया। आज यह बात कहते हुए उनकी आँखे भर आई और उन्होंने कहा कि ऐसे बेटो से बेऔलाद होना अच्छा है।
ट्रांसयमुना के राजेन्द्र कहते है कि जिन बच्चों को सम्मान का जीवन देने के लिए दिनरात एक करके व्यापार खड़ा किया आज जब उन्हें पैरालाइसिस हुआ तो सहारा बनने वाले बेटों ने मुंह मोड़ लिया। पैरालाइसिस पिता को वो खुद रामलाल वृद्ध आश्रम छोड़ गए और उसी दिन में मर गया। खंदारी के रशीद का कहना था कि चार बेटे होने के बाद भी आज जीवन आश्रम में बिताना पड़ रहा है। पत्नि के इंतकाल के बाद जब तक हाथपांव चले खूब काम किया लेकिन तबियत ख़राब रहने पर बेटों ने साथ छोड़ दिया। ईद निकल गयी सोचा था कि कोई तो उन्हें ईद खिलाने आयेगा लेकिन ऐसा नहीं हुआ।
इन बूढे पिताओं की वेदनाओं ने सभी के दिल को छलनी कर दिया है। रामलाल वृद्ध आश्रम के संचालक शिव प्रसाद शर्मा ने बताया कि यहाँ रहने वाले बूढे माता पिता हर वक्त टकटकी लगाये रहते हैं कि शायद उनके बेटे आ जाएँ लेकिन मौजमस्ती की जिंदगी जीने वाले उन बेटों को जिंदगी देने वाले पिता की कद्र नहीं है। आज फादर्स डे है। यहाँ रह रहे बूढे पिता से हमने बात की। बेटों से जो दर्द उन्हें मिला उसे साझा किया है। आज यह बूढे पिता उस पल को कोसते है कि आखिरकार उनके कर्म में ऐसी क्या कमी थी जो ऐसी औलाद मिली।
यह समाज का वो पहलू है जिसे अनदेखा किया जा रहा है लेकिन यह पहलू भविष्य में बहुत घातक साबित होगा। इस क्षेत्र से जुड़े एक्सपर्ट्स का कहना है कि आज की पीढ़ी लगातार बदलाव देख रही है। संस्कारो में कमी आ रही है। यही कारण है कि आज कुछ लोग अपने पिता का सम्मान नहीं करना चाहते है। ऐसे में बच्चों में शुरु से संस्कारी शिक्षा और युवा होने पर बेहतर ताल मेल पर जोर देना चाहिये।