Agra. आगरा विकास प्राधिकरण द्वारा सार्क और बिम्सटेक देशों के सैलानियों को भारतीय न मानकर विदेशी पर्यटकों के रूप में मानते हुए पथकर वसूले जाने का मामला एक बार फिर गरमाने लगा है। 21 साल पहले पथकर का प्रकरण सुप्रीम कोर्ट में भी उठ चुका है और उस दौरान कोर्ट ने भी केंद्र व प्रदेश सरकार को मिलकर फैसला लेने के निर्देश दिए थे।
वर्ष 2000 में तत्कालीन अधीक्षण पुरातत्वविद धर्मवीर शर्मा ने पर्यावरणविद एमसी मेहता के माध्यम से सुप्रीम कोर्ट में पथकर के विरोध में याचिका दायर कराई थी। उस समय सुप्रीम कोर्ट द्वारा केंद्र व प्रदेश सरकार को मिलकर तय करने के निर्देश दिए जाने के बाद संस्कृति मंत्री और मुख्यमंत्री के बीच वार्ता भी हुई थी। तत्कालीन मुख्यमंत्री राजनाथ सिंह और केंद्रीय संस्कृति मंत्री आनंद कुमार थे। दोनों की सहमति के बाद पथकर में कोई बदला नहीं किया गया। उसके बाद किसी ने भी इस मामले में पैरवी नहीं की। विकास प्राधिकरण लगातार पथकर लेता हुआ आ रहा है।
देश के किसी भी स्मारक में दो टिकट नहीं लगते केवल ताजनगरी के स्मारकों में ही दो टिकट लगाये जाते है। एक तो भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा प्रवेश शुल्क लिया जाता है तो दूसरी टिकट आगरा विकास प्राधिकरण द्वारा पथकर के नाम पर वसूली जाती है। बात यही खत्म नहीं होती। प्राधिकरण द्वारा सार्क और बिम्सटेक देशों के सैलानियों से भी पथकर वसूला जाता है।
वरिष्ठ अधिवक्ता डॉ. हरिदत्त शर्मा का कहना है कि एडीए द्वारा सार्क और बिम्सटेक देशों के सैलानियों से विदेशी पर्यटकों की तरह ही पथकर की राशि लेना खुली लूट है। उनके खिलाफ तो अपराध का मुकदमा दर्ज होना चाहिए। भारत सरकार के नियमों को प्रदेश सरकार को भी मानना होगा। यह मामला स्मारक से जुड़ा है। उसके नाम पर पथकर लिया जा रहा है। जो नियम एएसआई के लिए है वहीं प्राधिकरण के लिए भी लागू होना जरूरी है।