आगरा। आज की युवा पीढ़ी भरत से सीखे जीवन में अनुशासन, समर्पण, संयम और त्याग। मात्र 27 वर्ष की उम्र में अयोध्या का राजपाठ मिलने के बावजूद उन्होंने सिंहासन नहीं बल्कि भाई के प्रेम को स्वीकार किया। नंगे पैर, पैदल भगवान को वापस लाने वन को गए। उनके साथ सभी गरुजन, माताएं और जनता चल पड़ी। आज राम राज्य के लिए नारों की नहीं बल्कि कौशल्या जैसी माताओं और श्रीराम व भरत जैसे पुत्रों की जरूरत है।
श्री कामतानाथ सेवा समिति द्वारा चित्रकूट धाम (कोठी मीना बाजार) में आयोजित श्रीराम कथा में आज श्री कामदगिरि पीठाधीश्वर श्रीमद् जगतगुरु राम नंदाचार्य स्वामी रामस्वरूपाचार्य महाराज ने जेठ स्वामी सेवक लघु भाई, दिनकर कुल यह रीति सुहाई… दोहे के माध्यम से कहा कि भरत ने बड़े भाई श्रीराम को हमेशा स्वामी और खुद को सेवक माना। कहा कि आज की पीढ़ी शिक्षा में बेशक आगे हैं मगर संस्कारों में पीछे होती जा रही है। घर में शासन बेशक पुत्रों का हो मगर अनुशासन वृद्धों का होना चाहिए। देश में शासन किसी का भी हो मगर अनुसासन संतों का होना चाहिए। अनुसासन ही देश और व्यक्ति को महान बनाता है। जीवन में कर्तव्य पालन को स्वीकारें।
आपस में विवाद नहीं संवाद करें
भरत के श्रीराम को वन से वापस लाने के समय राजा निषाद द्वारा भ्रमवश भरत से युद्ध की तैयारी करने की कथा का वर्णन करते हुए कहा कि संवादहीनता के कारण विवाद बढ़ते हैं। आपस में विवाद नहीं संवाद करिए आज पिता-पुत्र और सास-बहु में संवादहीनता है। समाज में संवादहीनता है। एक और नेक होकर रहिए, विवाद से मान प्रतिष्ठा और सम्पत्ति का नाश होता है।
कथा के प्रारम्भ में यज्ञाचार्य राहुल रावत ने यज्ञ सम्पन्न कराया। इस अवसर पर जगतगुरु घनश्यामाचार्य महाराज, विधायक जीएस धर्मेश, लक्ष्मी नारायण त्यागी, अध्यक्ष जय भोले, पिंकी त्यागी, दीनदयाल मित्तल, रामवीर सिंह चाहर, बनवारी लाल मित्तल, निदेशक जीएसटी प्रभाकर शर्मा, आनंद राय, अशोक फौजदार, किशोर लवानिया, अर्जुन त्यागी, सतेन्द्र पाराशर, सौरभ शर्मा, वेदांशू शर्मा, दिलीप शर्मा, अमित शर्मा, लवकेश चौधरी, रामदत्त त्यागी आदि उपस्थित रहे।
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