Agra. ‘चाय नहीं है ये बैंक है, बैंक हम बिकने नहीं देंगे, अगर बेचनी है तो शौचालय बेचो जो आपने बनवाएं हैं’ जैसे नारों से बैंक कर्मचारियों का प्रदर्शन स्थल गूंज रहा था। हर कोई बैंकों के निजीकरण के विरोध में देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को कोस रहा था। जमकर नारेबाजी हो रही थी और बैंक का हर कर्मचारी यही रहा था कि ‘यह तो सिर्फ टेलर है पिक्चर अभी बाकी है।’
बैंकों के निजीकरण के विरोध में यूनाइेड फोरम आफ बैंक यूनियन और आल इंडिया नेशनलाइज्ड बैंक आफिसर्स फेडरेशन की दो दिवसीय हड़ताल के आह्वान पर मंगलवार को भी आगरा में सार्वजनिक क्षेत्र की बैंकों में हड़ताल रही। मंगलवार को हड़ताल का दूसरा दिन था और बैंक कर्मचारियों का आक्रोश फूट रहा था और निशाना देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी थे। धरने पर बैठा हर बैंक कर्मचारी निजीकरण का विरोध करते हुए देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की कार्यप्रणाली पर सवाल उठा रहा था और उन्हें कोस भी रहा था।
बैंक कर्मचारियों ने प्रदर्शन करते हुए कहा कि बैंक कोई चाय नहीं है और हम इसे बिकने नहीं देंगे, अगर देश के प्रधानमंत्री को कुछ बेचना है तो वह शौचालय बेचे जो उन्होंने और उनकी सरकार ने बनाए हैं। उन्होंने दो टूक शब्दों में कहा कि कोरोना काल में सरकार की साख को किसने बचाया, सरकार को इस सरकार को ध्यान में रखना चाहिए, अगर सरकारी बैंक नहीं होती तो गरीबों के जनधन खाते कहां खुलते।
फेडरेशन के राज्य सदस्य अंकित सहगल ने कहा कि सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों का निजीकरण कर ग्राहकों की जमा पूंजी को औद्योगिक घरानों के हाथ में देने की तैयारी है। इसका पूरा विरोध किया जाएगा। संजय प्लेस में यूनिटेड फोरम आफ बैंक यूनियन के बैनर तले बैंक कर्मचारियाें ने एलआइसी परिसर में धरना दिया।
एआइबीईए के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष एमएम राय ने कहाकि 1969 में 21 दिन की हड़ताल कर बैंकों का राष्ट्रीयकरण कराया था, अब फिर से वही समय आ गया है। अब बैंकों का सार्वजनिक स्वरूप खतरे में है। यूनियन के संयुक्त मंत्री शैलेंद्र झा ने कहा कि सार्वजनिक बैंकों में जनता का धन जमा है, जि पर पूंजीपतियों की निगाह है, हम इसे लूटने नहीं देंगे।
बैंक कर्मचारी तान्या अग्रवाल ने बताया कि बैंक के 4 दिनों तक बंद रहने से 400 करोड़ का व्यापार प्रभावित हुआ है। बैंक देश की इकोनॉमी की बैकबोन होती है। अगर सरकार ने अपने इरादे और निजीकरण की पॉलिसी नहीं बदली तो इसका खामियाजा सरकार को उठाना पड़ेगा सरकार को यह भी ध्यान रखना चाहिए की प्राइवेट बैंक सरकार के साथ नहीं होती बल्कि सरकार की तमाम योजनाओं को सरकारी बैंक की अमलीजामा पहनाते हैं। कोरोना काल में जब 500-500 रुपये महिलाओं के खाते में आए तो उन्हें देने का काम सिर्फ सरकारी बैंकों ने ही किया।
महिला बैंक कर्मचारी शिल्पी अग्रवाल ने बताया कि अगर हर बैंक को प्राइवेट कर दिया जाएगा तो सरकार की योजना से खुले गए जनधन खाते बंद हो जाएंगे। गरीब व्यक्ति अपनी जमा पूंजी के लिए कहा जाएगा। क्योंकि प्राइवेट में जीरो बैलेंस पर खाते नहीं खुलते। अभी भी अगर सरकार की आंखें नहीं खुली तो बैंक कर्मचारी आर-पार की लड़ाई को भी तैयार हैं।